क्यों व्यथित है ,मन मेरा
क्यों पिरो रहा है,ह्रदय !
क्यों हो रहा है ,संघर्ष
हृदय या मन में ?
कुछ मन कि , न मानी,
या हृदय कि !
ये गजब कि है ,विडंबना
क्यों हो रहा है , विचलित
मन या हृदय ?
मैं दूर जाता हूं,दोनों से !
खींच लाते हैं, बार -बार
ये परिस्थिया उलझाती है
डगमगाती है !
मेरे हृदय और मन को,
अघात पहुंचाती है !
©बद्रीनाथ✍️
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