तूफ़ान बनके आया बंगाल में कहर, दिखता है तबाही | हिंदी कविता

"तूफ़ान बनके आया बंगाल में कहर, दिखता है तबाही में रीमाल का असर, उजड़ी है कई बस्ती उखड़े हजारों पेड़, कुदरत के सामने हुआ विज्ञान बेअसर, विकराल हवाएं थीं बारिश भी बेशुमार, आए हैं इसकी जद में देखो कई शहर, गर्मी से तप रहा है बेहाल हुआ जीवन, मौसम की त्रासदी से अवाम पुर-असर, लू की चपेट लील गई हैं कई जानें, यह नौतपा का रौद्र रूप कैसे हो बसर, हम कैद घरों में ही रहने को हुए बेबस, सुनसान पड़ी सड़कें गमगीन दोपहर, गुंजन थे बदनसीब सुबह देख ना सके, गर्दिश भरी रातों का होता नहीं सहर, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ•प्र• ©Shashi Bhushan Mishra"

 तूफ़ान  बनके  आया  बंगाल में कहर, 
दिखता है तबाही में रीमाल का असर,

उजड़ी है कई बस्ती उखड़े हजारों पेड़,
कुदरत के सामने हुआ विज्ञान बेअसर,

विकराल हवाएं थीं बारिश भी बेशुमार,
आए हैं इसकी जद में देखो कई शहर, 

गर्मी से तप रहा है बेहाल हुआ जीवन, 
मौसम की त्रासदी से अवाम पुर-असर,

लू की  चपेट  लील  गई  हैं कई  जानें,
यह नौतपा का रौद्र रूप कैसे हो बसर,

हम कैद घरों में ही रहने को हुए बेबस, 
सुनसान पड़ी  सड़कें  गमगीन दोपहर,

गुंजन थे बदनसीब सुबह देख ना सके, 
गर्दिश भरी  रातों का  होता नहीं सहर,
     ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
              प्रयागराज उ•प्र•

©Shashi Bhushan Mishra

तूफ़ान बनके आया बंगाल में कहर, दिखता है तबाही में रीमाल का असर, उजड़ी है कई बस्ती उखड़े हजारों पेड़, कुदरत के सामने हुआ विज्ञान बेअसर, विकराल हवाएं थीं बारिश भी बेशुमार, आए हैं इसकी जद में देखो कई शहर, गर्मी से तप रहा है बेहाल हुआ जीवन, मौसम की त्रासदी से अवाम पुर-असर, लू की चपेट लील गई हैं कई जानें, यह नौतपा का रौद्र रूप कैसे हो बसर, हम कैद घरों में ही रहने को हुए बेबस, सुनसान पड़ी सड़कें गमगीन दोपहर, गुंजन थे बदनसीब सुबह देख ना सके, गर्दिश भरी रातों का होता नहीं सहर, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ•प्र• ©Shashi Bhushan Mishra

#तूफ़ान बनके आया#

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