अपनी अना की सोहबत बचाता रहा हर बोली पर मगर, जरूरत | हिंदी Shayari

"अपनी अना की सोहबत बचाता रहा हर बोली पर मगर, जरूरत के आगे कभी बिक नहीं सके स्वाद होता है उसी रोटी का लज्जत से भरपूर जो दोनो तरफ से पूरी सिंक ना सके मंजिल तभी लिपटती है हवा बनकर कामयाबी की जब पाँव किसी एक डगर पर टिक ना सके लिखते-लिखते ना जाने क्या-क्या लिख डाला पर जो लिखना था, वही लिख ना सके"

 अपनी अना की सोहबत बचाता रहा हर बोली पर
 मगर, जरूरत के आगे कभी बिक नहीं सके

स्वाद होता है उसी रोटी का लज्जत से भरपूर
जो दोनो तरफ से पूरी सिंक ना सके

मंजिल तभी लिपटती है हवा बनकर कामयाबी की
जब पाँव किसी एक डगर पर टिक ना सके

लिखते-लिखते ना जाने क्या-क्या लिख डाला
पर जो लिखना था, वही लिख ना सके

अपनी अना की सोहबत बचाता रहा हर बोली पर मगर, जरूरत के आगे कभी बिक नहीं सके स्वाद होता है उसी रोटी का लज्जत से भरपूर जो दोनो तरफ से पूरी सिंक ना सके मंजिल तभी लिपटती है हवा बनकर कामयाबी की जब पाँव किसी एक डगर पर टिक ना सके लिखते-लिखते ना जाने क्या-क्या लिख डाला पर जो लिखना था, वही लिख ना सके

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