टूटे जब भी तारे (part 2)
विस्मित जगत के इस हृदय में,कोई गहन विलीन हो रहा है,
शब्दों की वीणा में,कोई मंत्र रच रहा है।
समझ के परे में,कोई विद्यावान हो रहा है,
शिखाओं की चुभन में,कोई अलंकृत छवि हो रहा है।
टूटे जब भी तारे,मुझे ही मांगोगे ना?
टूटे जब भी तारे,मुझे ही मांगोगे ना?
ईश्क की सीधी रेखा में,कोई विशेष हो रहा है,
जीवन की साखी वो अटूट रेखा में,कोई अविस्मरणीय हो रहा है।
झील सी आंखे पंकज मुख में, कोई छुप रहा है,
सांस भी मद्दम लय में, इनमें सुकून रहा है।
टूटे जब भी तारे,मुझे ही मांगोगे ना?
टूटे जब भी तारे,मुझे ही मांगोगे ना?
©Ankit verma 'utkarsh'
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