टूटे शाखो पर शदाबी एहतराम मत करना
पतझड़ कि दरख्तो पर कोई मौसम ए बहार मत करना
रिश्तों का हिसाब जुबां की कलाकारी के आगे
अब ऐसी भी दिलजोई बेहिसाब मत करना
नाम मेरे अपना कोई मेहरबान मत करना
अपनी फिक्रमंदी का हमे कोई दान मत करना
तुम्हारी सफगोई,सच्चाई,सहारे मुबारक हो तुमको
हो सके तो हम पर कोई एहसान मत करना
खुदी के आगाज़ को गैरो के नाम मत करना
बेवजह साफगोई कि फुजूल सी दलीलें
वो खुदा है उसकी जहां है हुकूमत है यहां
अब कौम ए अस्हाब को हमनाम मत
कहना
राजीव
©samandar Speaks
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