दुर्मिल सवैया छंद
मन में छवि प्रीतम की रखिके,मन के सब बंद किवाड़ करूं।
बस मैं करती यह आस सखी,बिसरे मन मीत न,धीर धरूं।
चित मोह लियो मनमोहन ने,अब श्याम बिना नहि काहु वरूं।
तजकै दुनियां जब जान लगूं,वह सूरत नैनन माहि भरूं।
©Dr Nutan Sharma Naval
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