न जीने की अब मुझे तमन्ना, न मरने का अब मुझे डर है,

"न जीने की अब मुझे तमन्ना, न मरने का अब मुझे डर है, आज के जमाने में मेरे दोस्त, नेकी बस एक भरम है, न गैरों से कोई शिकवा, न अपनों से बिछड़ने का गम है, इस मुखोंटो के शहर में, असली चेहरों का तुझे भरम है। लोग डूबते नहीं है दरिया में, क्योंकि पानी वहाँ कम है, ये तो गिराने वालों का हुनर है, जो तलाब में समुन्दर का भरम है, छीन लेते है तुमसे तुम्हारा सबकुछ, यही तो जमाने का धरम है, जो दिखते है तुझे फ़रिश्ते, वो तो बस तेरे नजरिए का भरम है। तू खुश है मैं खुश नहीं, ये बात भी लोगों के लिए क्या कफन से कम है, तेरे सुख में सुखी, दुख में दुखी दिखने वाले, तेरे दिमाग का भरम है, तू जीत जाए जग से, ये बात तेरे अपनो को भी कहाँ हजम है, ये तेरी इंसानियत है तुझे सब अच्छे दिखे, वरना ये तेरे मन का भरम है। तू निराश न हो जश्न मना, क्योंकि तुझ जैसे है खुदा का करम है, अच्छाई का दामन न छोर, क्योंकि बुराई से तरक़्क़ी बस भरम है, तू बढ़ता चल मंज़िल की ओर, संघर्षों से ही जीवन सफल है, तेरी तरक़्क़ी को रोक सकता है जमाना, मान न मान ये तेरा भरम है। ©AK Ajay Kanojiya"

 न जीने की अब मुझे तमन्ना, न मरने का अब मुझे डर है,
आज के जमाने में मेरे दोस्त, नेकी बस एक भरम है,
न गैरों से कोई शिकवा, न अपनों से बिछड़ने का गम है,
इस मुखोंटो के शहर में, असली चेहरों का तुझे भरम है।

लोग डूबते नहीं है दरिया में, क्योंकि पानी वहाँ कम है,
ये तो गिराने वालों का हुनर है, जो तलाब में समुन्दर का भरम है,
छीन लेते है तुमसे तुम्हारा सबकुछ, यही तो जमाने का धरम है,
जो दिखते है तुझे फ़रिश्ते, वो तो बस तेरे नजरिए का भरम है।

तू खुश है मैं खुश नहीं, ये बात भी लोगों के लिए क्या कफन से कम है,
तेरे सुख में सुखी, दुख में दुखी दिखने वाले, तेरे दिमाग का भरम है,
तू जीत जाए जग से, ये बात तेरे अपनो को भी कहाँ हजम है,
ये तेरी इंसानियत है तुझे सब अच्छे दिखे, वरना ये तेरे मन का भरम है।

तू निराश न हो जश्न मना, क्योंकि तुझ जैसे है खुदा का करम है,
अच्छाई का दामन न छोर, क्योंकि बुराई से तरक़्क़ी बस भरम है,
तू बढ़ता चल मंज़िल की ओर, संघर्षों से ही जीवन सफल है,
तेरी तरक़्क़ी को रोक सकता है जमाना, मान न मान ये तेरा भरम है।

©AK Ajay Kanojiya

न जीने की अब मुझे तमन्ना, न मरने का अब मुझे डर है, आज के जमाने में मेरे दोस्त, नेकी बस एक भरम है, न गैरों से कोई शिकवा, न अपनों से बिछड़ने का गम है, इस मुखोंटो के शहर में, असली चेहरों का तुझे भरम है। लोग डूबते नहीं है दरिया में, क्योंकि पानी वहाँ कम है, ये तो गिराने वालों का हुनर है, जो तलाब में समुन्दर का भरम है, छीन लेते है तुमसे तुम्हारा सबकुछ, यही तो जमाने का धरम है, जो दिखते है तुझे फ़रिश्ते, वो तो बस तेरे नजरिए का भरम है। तू खुश है मैं खुश नहीं, ये बात भी लोगों के लिए क्या कफन से कम है, तेरे सुख में सुखी, दुख में दुखी दिखने वाले, तेरे दिमाग का भरम है, तू जीत जाए जग से, ये बात तेरे अपनो को भी कहाँ हजम है, ये तेरी इंसानियत है तुझे सब अच्छे दिखे, वरना ये तेरे मन का भरम है। तू निराश न हो जश्न मना, क्योंकि तुझ जैसे है खुदा का करम है, अच्छाई का दामन न छोर, क्योंकि बुराई से तरक़्क़ी बस भरम है, तू बढ़ता चल मंज़िल की ओर, संघर्षों से ही जीवन सफल है, तेरी तरक़्क़ी को रोक सकता है जमाना, मान न मान ये तेरा भरम है। ©AK Ajay Kanojiya

"न जीने की अब मुझे तमन्ना, न मरने का अब मुझे डर है,
आज के जमाने में मेरे दोस्त, नेकी बस एक भरम है,
न गैरों से कोई शिकवा, न अपनों से बिछड़ने का गम है,
इस मुखोंटो के शहर में, असली चेहरों का तुझे भरम है।"
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