सच कहती हूँ लेखन बन गया है आज मेरा जुनून, भड़ास निक

"सच कहती हूँ लेखन बन गया है आज मेरा जुनून, भड़ास निकालती हृदय की शब्दों को मैं चुन-चुन। उठते-बैठते,सोते-जागते अल्फ़ाज़ों की उठा-पटक, चलती रहती मेरे मन-मस्तिष्क मे हर पल,हर क्षण। हाँ करती हूँ मैं नशा हर दिन पर ये गलत तो नही! मुझे है लेखन का नशा जो मुझ पर छाया रहता है। घुट-घुट कर कब तक जीती मै एहसासों के बीच, कैसे निष्कृय बनी रहती मै भला होठो को भीच। लब खोलना जहाँ हो तौहीन वहाँ कलम बोलती है, लफ़्ज़ों की जुबां जाने कितनो के ही दिल तोड़ती है। जब से हुआ लिखने का नशा हर रिश्ता संभल गया, लत ऐसी लगी हृदय का गुंबार सरा पन्नों पे बह गया। जब लगता मन भारी-भारी सा इक कविता का जाम, थोरी शेरो-शायरी या ग़ज़ल लिख मैं पी जाया करती। देश,समाज,गाँव,गलियों की बातें सबसे साझा करती, जो नही उचित लगे मुझको उसे आईना हूँ दिखलाती। इसे मै जुनून कहूँ अपना या फिर कहूँ नशा लेखन का, बिन इसके लगे है मुझको अधूँरा सा पन्ना जीवन का।। ©ArchanaTiwari_Tanuja"

 सच कहती हूँ लेखन बन गया है आज मेरा जुनून,
भड़ास निकालती हृदय की शब्दों को मैं चुन-चुन।

उठते-बैठते,सोते-जागते अल्फ़ाज़ों की उठा-पटक,
चलती रहती मेरे मन-मस्तिष्क मे हर पल,हर क्षण।

हाँ करती हूँ मैं नशा हर दिन पर ये गलत तो नही!
मुझे है लेखन का नशा जो मुझ पर छाया रहता है।

घुट-घुट कर कब तक जीती मै एहसासों के बीच,
कैसे निष्कृय बनी रहती  मै भला होठो को भीच।

लब खोलना जहाँ हो तौहीन वहाँ कलम बोलती है,
लफ़्ज़ों की जुबां जाने कितनो के ही दिल तोड़ती है।

जब से हुआ लिखने का नशा हर रिश्ता संभल गया,
लत ऐसी लगी हृदय का गुंबार सरा पन्नों पे बह गया।

जब लगता मन भारी-भारी सा इक कविता का जाम,
थोरी शेरो-शायरी या ग़ज़ल लिख मैं पी जाया करती।

देश,समाज,गाँव,गलियों की बातें सबसे साझा करती,
जो नही उचित लगे मुझको उसे आईना हूँ दिखलाती।

इसे मै जुनून कहूँ अपना या फिर कहूँ नशा लेखन का,
बिन इसके लगे है मुझको अधूँरा सा पन्ना जीवन का।।

©ArchanaTiwari_Tanuja

सच कहती हूँ लेखन बन गया है आज मेरा जुनून, भड़ास निकालती हृदय की शब्दों को मैं चुन-चुन। उठते-बैठते,सोते-जागते अल्फ़ाज़ों की उठा-पटक, चलती रहती मेरे मन-मस्तिष्क मे हर पल,हर क्षण। हाँ करती हूँ मैं नशा हर दिन पर ये गलत तो नही! मुझे है लेखन का नशा जो मुझ पर छाया रहता है। घुट-घुट कर कब तक जीती मै एहसासों के बीच, कैसे निष्कृय बनी रहती मै भला होठो को भीच। लब खोलना जहाँ हो तौहीन वहाँ कलम बोलती है, लफ़्ज़ों की जुबां जाने कितनो के ही दिल तोड़ती है। जब से हुआ लिखने का नशा हर रिश्ता संभल गया, लत ऐसी लगी हृदय का गुंबार सरा पन्नों पे बह गया। जब लगता मन भारी-भारी सा इक कविता का जाम, थोरी शेरो-शायरी या ग़ज़ल लिख मैं पी जाया करती। देश,समाज,गाँव,गलियों की बातें सबसे साझा करती, जो नही उचित लगे मुझको उसे आईना हूँ दिखलाती। इसे मै जुनून कहूँ अपना या फिर कहूँ नशा लेखन का, बिन इसके लगे है मुझको अधूँरा सा पन्ना जीवन का।। ©ArchanaTiwari_Tanuja

#लेखन_मेरा_जुनून#hindiwritwrs
08/05/2021

लेखन मेरा जुनून....

सच कहती हूँ लेखन बन गया है आज मेरा जुनून,
भड़ास निकालती हृदय की शब्दों को मैं चुन-चुन।

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