वो अंतर्द्वंद्व के अग्नि में जली जा रही थी...... | हिंदी कविता

"वो अंतर्द्वंद्व के अग्नि में जली जा रही थी...... वो द्विधावोध से द्विधाग्रस्त हुए जा रही थी......! शायद एहसास हो गया था उसे सच का.......... बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी......!! समाज के बहाने.....! सास के ताने..........! शायद मिल जायें कुछ बहाने...................... सोच के सागर में डुबकी लगाए जा रही थी.....! शायद एहसास हो गया था उसे सच का.......... बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी......!! वंश बढ़ाने की ये कैसी प्रथा है..., स्त्री बिना वंश कैसे बढ़ता है.....! फिर वंश के लिए सिर्फ़ बेटा ही पर्याप्त कैसे........ बेटी नहीं होगी तो बेटे पेड़ पे उगेंगे जैसे............ !! दोगलेपन से भरे समाज के............ मंदबुद्धि सोच पे हँसे जा रही थी.....!! शायद एहसास हो गया था उसे सच का.......... बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी........!! ©Priyanjali"

 वो अंतर्द्वंद्व के अग्नि में जली जा रही थी......      
     वो द्विधावोध से द्विधाग्रस्त हुए जा रही थी......!      
     शायद एहसास हो गया था उसे सच का..........     
            बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी......!!

  समाज के बहाने.....!
   सास के ताने..........!
शायद मिल जायें कुछ बहाने......................
 सोच के सागर में डुबकी लगाए जा रही थी.....!
     शायद एहसास हो गया था उसे सच का..........     
              बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी......!!

वंश बढ़ाने की ये कैसी प्रथा है...,
स्त्री बिना वंश कैसे बढ़ता है.....!
फिर वंश के लिए सिर्फ़ बेटा ही पर्याप्त कैसे........
  बेटी नहीं होगी तो बेटे पेड़ पे उगेंगे जैसे............ !!
दोगलेपन से भरे समाज के............
  मंदबुद्धि सोच पे हँसे जा रही थी.....!!
  शायद एहसास हो गया था उसे सच का..........     
            बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी........!!

©Priyanjali

वो अंतर्द्वंद्व के अग्नि में जली जा रही थी...... वो द्विधावोध से द्विधाग्रस्त हुए जा रही थी......! शायद एहसास हो गया था उसे सच का.......... बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी......!! समाज के बहाने.....! सास के ताने..........! शायद मिल जायें कुछ बहाने...................... सोच के सागर में डुबकी लगाए जा रही थी.....! शायद एहसास हो गया था उसे सच का.......... बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी......!! वंश बढ़ाने की ये कैसी प्रथा है..., स्त्री बिना वंश कैसे बढ़ता है.....! फिर वंश के लिए सिर्फ़ बेटा ही पर्याप्त कैसे........ बेटी नहीं होगी तो बेटे पेड़ पे उगेंगे जैसे............ !! दोगलेपन से भरे समाज के............ मंदबुद्धि सोच पे हँसे जा रही थी.....!! शायद एहसास हो गया था उसे सच का.......... बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी........!! ©Priyanjali

वो अंतर्द्वंद्व के अग्नि में जली जा रही थी......
वो द्विधावोध से द्विधाग्रस्त हुए जा रही थी......!
शायद एहसास हो गया था उसे सच का..........
बेटा नहीं बेटी गर्भ में उसके पंख पसारे जा रही थी......!!

समाज के बहाने.....!
सास के ताने..........!
शायद मिल जायें कुछ बहाने...................

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