White कतरा कतरा , बून्द बून्द ,.....
सारी धरती पर बिखरा बिखरा ,
उकेर दिया चित्र मानो चित्रकारी सा ...
आ गई ये बूंदे आसमानों से मिलने धरा पर ,
प्रेम इतना के दूरियों को भी नजरअंदाज किया,
क्या वजूद इनका बिखरकर धरती पर ,
खुद को लूटा दिया ,
प्रेम में मिट जाने का संदेश है दिया ,
कभी ठहरी पत्ता पत्ता ,
प्रेम जो किया सौ फीसदी सच्चा ,
कभी हुस्न पे कोई चादर सी ओढाई,
बून्द बनकर चेहरे पर ठहरकर खूबसूरती बड़ाई..,
कभी जम गई बर्फ बनकर ,
कभी लुढक गई कदमो तले ,
कभी आंखों में ठहरी ख्वाब बनकर,
कभी फिसल गई आंखों से दर्द बनकर ,
कतरा कतरा ,बून्द बून्द ...
क्या क्या नाम मिले,
शायरों की है औंस की बूंद ,
तो दर्दे दिल का आँसू,
प्यासे दिल का पानी ,
तो कभी समुद्र की रवानी ,...
कतरा कतरा ,बून्द बून्द ....
©Parul (kiran)Yadav
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