Saket Thakur

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अपने ख्वाबों के संग औरो का भी ख्वाब बो रहा हूँ, यार देखो तो मुझे कहीं मैं शायर तो नहीं हो रहा हूँ। © साकेत ठाकुर

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जो कभी लफ्जों में ना भाव बयाँ कर पाया, उसको मैने एक लय दिया है कविता में। जो हो सका ना आजतक हासिल मुझको, उस दूरी को मैने तय किया है कविता में। जिस बाग में हुकूमत रहा काँटों का सदा, उसी बाग से गंध लिया है कविता में। उमर बंधी है पूरी कई दृश्य- अदृश्य बंधन से, मैने हर पल को स्वच्छंद जिया है कविता में। जहर जीवन में घुला है तो तय है मर जाना, पर शब्दों के संग मैने अमृत पिया है कविता में। ✍️ साकेत ठाकुर

 जो कभी लफ्जों में ना भाव बयाँ कर पाया, 
उसको मैने एक लय दिया है कविता में। 
जो हो सका ना आजतक हासिल मुझको, 
उस दूरी को मैने तय किया है कविता में। 
जिस बाग में हुकूमत रहा काँटों का सदा, 
उसी बाग से गंध लिया है कविता में। 
उमर बंधी है पूरी कई दृश्य- अदृश्य बंधन से, 
मैने हर पल को स्वच्छंद जिया है कविता में। 
जहर जीवन में घुला है तो तय है मर जाना, 
पर शब्दों के संग मैने अमृत पिया है कविता में। 
                                 ✍️ साकेत ठाकुर

जो कभी लफ्जों में ना भाव बयाँ कर पाया, उसको मैने एक लय दिया है कविता में। जो हो सका ना आजतक हासिल मुझको, उस दूरी को मैने तय किया है कविता में। जिस बाग में हुकूमत रहा काँटों का सदा, उसी बाग से गंध लिया है कविता में। उमर बंधी है पूरी कई दृश्य- अदृश्य बंधन से, मैने हर पल को स्वच्छंद जिया है कविता में। जहर जीवन में घुला है तो तय है मर जाना,

5 Love

मेरे ख्वाबों में कोई यूँ सँवरने लगे, कागज पे भाव खुद ही उतरने लगे। जानता हूँ नेह से तृप्ति उधर भी नहीं, इसी प्यास से तो वे और निखरने लगे। कुछ महक जो चुराया उनमें से जरा, वो हवाओं में घुल-घुल पसरने लगे। पात सा झर के गीरें हैं हम एक डाल से, कहीं समेटे गयें हम कहीं बिखरने लगे। आँख ही तो है सा'ब इसका क्या कीजिए, कहीं बसाये गये हम कहीं खटकने लगे। उनने रूखसत किया यूँ हुआ कुछ सितम, हम अपने भीतर में खुद ही भटकने लगे। ✍️साकेत ठाकुर २३-०३-२०१८

 मेरे ख्वाबों में कोई यूँ सँवरने लगे,
कागज पे भाव खुद ही उतरने लगे।
जानता हूँ नेह से तृप्ति उधर भी नहीं,
इसी प्यास से तो वे और निखरने लगे।
कुछ महक जो चुराया उनमें से जरा,
वो हवाओं में घुल-घुल पसरने लगे।
पात सा झर के गीरें हैं हम एक डाल से,
कहीं समेटे गयें हम कहीं बिखरने लगे।
आँख ही तो है सा'ब इसका क्या कीजिए,
कहीं बसाये गये हम कहीं खटकने लगे।
उनने रूखसत किया यूँ हुआ कुछ सितम,
हम अपने भीतर में खुद ही भटकने लगे।
                        ✍️साकेत ठाकुर
                              २३-०३-२०१८

मेरे ख्वाबों में कोई यूँ सँवरने लगे, कागज पे भाव खुद ही उतरने लगे। जानता हूँ नेह से तृप्ति उधर भी नहीं, इसी प्यास से तो वे और निखरने लगे। कुछ महक जो चुराया उनमें से जरा, वो हवाओं में घुल-घुल पसरने लगे। पात सा झर के गीरें हैं हम एक डाल से, कहीं समेटे गयें हम कहीं बिखरने लगे।

2 Love

चेहरा तो खुबसुरत पा लिये खुदा से एहसान मानो, एक दिल था जिसकी खुबसुरती ना कभी गढ़ पाये तुम। तुम सारा काम कर लोगे,पर क्या खा़क मोहब्बत करोगे, जो बोले जुबाँ से पहले,वो आँखें ही ना कभी पढ़ पाये तुम। साकेत ठाकुर

 चेहरा तो खुबसुरत पा लिये खुदा से एहसान मानो,
एक दिल था जिसकी खुबसुरती ना कभी गढ़ पाये तुम।
तुम सारा काम कर लोगे,पर क्या खा़क मोहब्बत करोगे,
जो बोले जुबाँ से पहले,वो आँखें ही ना कभी पढ़ पाये तुम।
                                   साकेत ठाकुर

# चेहरा तो खुबसुरत पा लिये खुदा से एहसान मानो, एक दिल था जिसकी खुबसुरती ना कभी गढ़ पाये तुम। तुम सारा काम कर लोगे,पर क्या खा़क मोहब्बत करोगे, जो बोले जुबाँ से पहले,वो आँखें ही ना कभी पढ़ पाये तुम। साकेत ठाकुर

2 Love

सब मुश्किल में हैं यहाँ साहब, दर्द ही दर्द है जहाँ तहाँ साहब, क्यों ये मसला नहीं हल हो पाता, आप उलझे हैं कहाँ कहाँ साहब। साकेत ठाकुर

#विचार #कहाँ  सब मुश्किल में हैं यहाँ साहब,
 दर्द ही दर्द है जहाँ तहाँ साहब,
क्यों ये मसला नहीं हल हो पाता,
आप उलझे हैं कहाँ कहाँ साहब।
             साकेत ठाकुर

#कहाँ साहब

3 Love

मैगलेन को पूरी धरती नापने में जीतनी मशक्कत करनी पडी, ईश्क में मुझे तुम तक आने में उतनी ही मशक्कत करनी पडी। साकेत ठाकुर

 मैगलेन को पूरी धरती नापने में जीतनी मशक्कत करनी पडी,
ईश्क में मुझे तुम तक आने में उतनी ही मशक्कत करनी पडी।
                                         साकेत ठाकुर

मैगलेन को पूरी धरती नापने में जीतनी मशक्कत करनी पडी, ईश्क में मुझे तुम तक आने में उतनी ही मशक्कत करनी पडी। साकेत ठाकुर

4 Love

teri pratiksha me thahra..

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