N.K. Sharma

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#कविता

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गीत कुछ भी नहीं है तेरा,कुछ भी नहीं है मेरा। मतलब के सारे नाते,कुछ दिन का है यह डेरा। चंद दिन की जिंदगानी, हंसकरके तू बिता दे। आ बैठ कभी आकर, दिल की मुझे सुना दे। रह जायेगा यहीं पर,कोठी,महल ये तेरा। कुछ भी नहीं है तेरा, कुछ भी नहीं है मेरा। दिल खोलकर तू जी ले, कुछ जिंदगी में अपनी। कुछ वक्त तू बिता दे, बस बंदगी में अपनी। खुद से भी खुद मिलाकर,पसरा क्यों मन अँधेरा। कुछ भी नहीं है तेरा, कुछ भी नहीं है मेरा। तुझको नहीं है फुर्सत, फुर्सत नहीं है मुझको। अनमोल जिंदगी यह, मिलनी नहीं फिर हमको, काहे का तेरा मेरा,बस कुछ दिनों का डेरा। कुछ भी नहीं है तेरा,कुछ भी नहीं है मेरा। पीटेंगे तेरी छाती, रोयेंगे तेरे साथी, जायेगा तू अकेला, छूटेंगे पोते नाती। चिर नींद में जो सोया देखेगा कब सवेरा। कुछ भी नहीं है तेरा कुछ भी नहीं है मेरा। गीतकार नवल किशोर शर्मा 'नवल' बिलारी मुरादाबाद ©N.K. Sharma

#alone  गीत
कुछ भी नहीं है तेरा,कुछ भी नहीं है मेरा। 
मतलब के सारे नाते,कुछ दिन का है यह डेरा।
 
चंद दिन की जिंदगानी, 
हंसकरके तू बिता दे। 
आ बैठ कभी आकर, 
दिल की मुझे सुना दे। 

रह जायेगा यहीं पर,कोठी,महल ये तेरा।
कुछ भी नहीं है तेरा, कुछ भी नहीं है मेरा। 
 
दिल खोलकर तू जी ले,
कुछ जिंदगी में अपनी। 
कुछ वक्त तू बिता दे,
बस बंदगी में अपनी। 
 
खुद से भी खुद मिलाकर,पसरा क्यों मन अँधेरा।
कुछ भी नहीं है तेरा, कुछ भी नहीं है मेरा। 

तुझको नहीं है फुर्सत, 
फुर्सत नहीं है मुझको। 
अनमोल जिंदगी यह, 
मिलनी नहीं फिर हमको,
 
काहे का तेरा मेरा,बस कुछ दिनों का डेरा।
कुछ भी नहीं है तेरा,कुछ भी नहीं है मेरा।

पीटेंगे तेरी छाती, 
रोयेंगे तेरे साथी, 
जायेगा तू अकेला,
छूटेंगे पोते नाती।

चिर नींद में जो सोया देखेगा कब सवेरा।
कुछ भी नहीं है तेरा कुछ भी नहीं है मेरा। 

गीतकार
नवल किशोर शर्मा 'नवल'
बिलारी मुरादाबाद

©N.K. Sharma

#alone

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#मुक्तक #भरोसा #लोग #पीर #नवल

#FourlinePoetry मुक्तक दरबारी कवियों का कोई, नैतिक स्वाभिमान नहीं है। जनपीड़ा को स्वर दे ऐसा, उनका कोई गान नहीं है। सिर्फ तमाशा बंदर सा ही, खेल मदारी का असली, मंचों पर कुछ कवियों को अब दायित्वों का भान नहीं है। ©N.K. Sharma

#fourlinepoetry  #FourlinePoetry  मुक्तक 

दरबारी कवियों का कोई,
नैतिक  स्वाभिमान नहीं है। 
जनपीड़ा को स्वर दे ऐसा,
उनका कोई गान नहीं है।
सिर्फ तमाशा बंदर सा ही,
खेल मदारी का असली,
मंचों पर कुछ कवियों को अब
दायित्वों का भान नहीं है।

©N.K. Sharma

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दोहा पाकीज़ा दामन रहे, करे कौन संज्ञान। धब्बों पर करते गुमां, आज यहाँ इंसान।। ©N.K. Sharma

#समाज #Smile  दोहा 

पाकीज़ा दामन रहे,
करे कौन संज्ञान।
धब्बों पर करते गुमां,
आज यहाँ इंसान।।

©N.K. Sharma

#Smile

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