Aniket Mishra

Aniket Mishra Lives in Allahabad, Uttar Pradesh, India

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जैसे सब कुछ खत्म हो गया। कुछ महसूस होता नहीं।। मौसम का रंग बेरंग हो गया। अब आंखो में वो चमक नहीं।। थोड़ा दर्द है। पर दर्द का इलाज नहीं मिलता।। हां सब ठीक है।। पर सब ठीक नहीं लगता।। सूर्य के प्रकाश में । घोर अंधेरा छाया है।। किसी की याद में। आंखो में आंसू आया है।। मेरे दिल के आसमां में। तेरे वजूद का परिंदा है।। सब कुछ ख़त्म हुआ। पर मुझमें अभी तू जिंदा है।।

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मौसम का रंग बेरंग हो गया।
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पर दर्द का इलाज नहीं मिलता।।
हां सब ठीक है।।
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सूर्य के प्रकाश में ।
घोर अंधेरा छाया है।।
किसी की याद में।
आंखो में आंसू आया है।।

मेरे दिल के आसमां में।
तेरे वजूद का परिंदा है।।
सब कुछ ख़त्म हुआ।
पर मुझमें अभी तू जिंदा है।।

कहीं धूप,कहीं छांव,कहीं हवाएं ,तो कहीं ये बरस रहें हैं। जैसे किसी की याद में , ये मौसम भी तड़प रहें हैं।।

#शायरी #मौसम #Aniketmishra #nojotohindi #hindipoetry  कहीं धूप,कहीं छांव,कहीं हवाएं ,तो कहीं ये बरस रहें हैं।
जैसे  किसी  की  याद  में , ये  मौसम  भी  तड़प  रहें हैं।।

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29 Love

दिसंबर, चाय और ठंड कुल्हड़ संग गर्म चाय को, होठों से लगाया तो ऐसा लगा। जैसे , दिसम्बर के महीने में, तेरे होठों ने मेरे होठों को छुआ।।

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जैसे , दिसम्बर के महीने में, तेरे होठों ने मेरे होठों को छुआ।।

वादे अब कैसे खुद को समझाऊँ मैं। जी करता है मर जाऊँ मैं।। तुम तो पल भर में चले गये । अब किसको वादे याद दिलाऊँ मैं।।

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जी  करता  है   मर  जाऊँ  मैं।।
तुम  तो  पल भर  में  चले  गये ।
अब किसको वादे याद दिलाऊँ मैं।।

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67 Love

#KisanDiwas सर्द हवाएं चल रही हैं , घोर कुहासा छाया है। ठंड पड़ी है इतनी फिर भी, फावड़ा उसने उठाया है।। वह फसल सीचनें निकल पड़ा है , ताल तलइया से। चुभन ठंड की सहन कर रहा, दुर्बल छीण शरीरिया से।। जैसे , तैसे ठंड गुजरे फिर गर्म हवाएं चलती हैं। ग्रीष्म ऋतु की दोपहर में , कड़कड़ाती धूप बरसती हैं।। अपनी माटी का चंदन करके,तीक्ष्ण व्यथाओं से गुजरे। कभी बाढ़ , तो कभी ओले , कभी सूखे से गुजरे।। इसी वेदना में जी कर वो ,सब को दाने खिलाता हैं। सत् सत् नमन हैं उनकों , वो तो अन्नदाता हैं।।

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ठंड पड़ी है इतनी फिर भी, फावड़ा उसने उठाया है।।

वह  फसल  सीचनें  निकल  पड़ा  है ,  ताल  तलइया  से।
चुभन  ठंड  की  सहन कर रहा, दुर्बल छीण शरीरिया से।।

जैसे  , तैसे  ठंड  गुजरे  फिर  गर्म  हवाएं  चलती  हैं।
ग्रीष्म ऋतु की दोपहर में , कड़कड़ाती धूप बरसती हैं।।

अपनी माटी का चंदन करके,तीक्ष्ण व्यथाओं  से गुजरे।
कभी  बाढ़ , तो  कभी  ओले , कभी  सूखे  से गुजरे।।

 इसी वेदना में जी कर वो ,सब को दाने खिलाता हैं।
 सत्  सत्  नमन  हैं  उनकों , वो  तो  अन्नदाता  हैं।।

#अन्नदाता सर्द हवाएं चल रही हैं , घोर कुहासा छाया है। ठंड पड़ी है इतनी फिर भी, फावड़ा उसने उठाया है।। वह फसल सीचनें निकल पड़ा है , ताल तलइया से। चुभन ठंड की सहन कर रहा, दुर्बल छीण शरीरिया से।। जैसे , तैसे ठंड गुजरे फिर गर्म हवाएं चलती हैं।

64 Love

काश की हम चाय हो जाते, काश की हम चाय हो जाते । और वो अपने ओठों से हमें लगाते।। मैं कुल्हड से उसका जी भर दीदार करता । जब हमको वो धीरे-धीरे फूंक मारते ।।

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मैं कुल्हड से उसका जी भर दीदार करता ।
जब हमको वो धीरे-धीरे फूंक मारते ।।
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