Priyanshu Gupta

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#december_or_january_ka_rishta #ज़िन्दगी #december #january #Rishta

जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा करना, नफ़रत स्वाभाविक है, छीना जो है बहुत कुछ, बच्चों से पिता को, बहन से भाई को, पत्नी से पति को, ना जाने कितने रिश्तों से रिश्तों को, कारोबार, ऐशो आराम, सुख चैन, फ़ेहरिस्त लंबी है, द्वेष है, क्रोध है, नाराज़गी है, इच्छा यह सभी की है, कब जाओगे, कब आएगी चैन की नींद, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस। लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने, नदियों को साफ़ पानी, पेड़ों को हरियाली, पहाड़ों को झरने, बेघर पशु-पक्षियों को घर, धड़कनों को सांसें, जीवन को अर्थ, रिश्तों को प्यार, बागों में फूलों की बहार, सर्दी की बर्फ़, गर्मी को ठंडी हवाएं, सूखे को बरसात, ज़िंदगी को मौसमी सौगात, रखना याद हर हार के बाद है जीत, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस। दुखों को नहीं खुशियों को याद रखना, मिली है जो सीख, उसे संभाल रखना, प्रकृति से अब और मत खेलना, संसार सब का है, याद रखना, ज़्यादा नहीं, थोड़े की है ज़रूरत, लालच भरी ज़िंदगी की, बदलनी है सूरत, खुशियों से भरा साल दो हज़ार इक्कीस है नज़दीक, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस। प्रियांशु गुप्ता "प्रियांस" ✍

 जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा करना, 
नफ़रत स्वाभाविक है, छीना जो है बहुत कुछ,
बच्चों से पिता को, बहन से भाई को, 
पत्नी से पति को, ना जाने कितने रिश्तों से रिश्तों को,
कारोबार, ऐशो आराम, सुख चैन, फ़ेहरिस्त लंबी है,
द्वेष है, क्रोध है, नाराज़गी है,
इच्छा यह सभी की है, कब जाओगे,
कब आएगी चैन की नींद, 
जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।

लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने, नदियों को साफ़ पानी,
पेड़ों को हरियाली, पहाड़ों को झरने, 
बेघर पशु-पक्षियों को घर, धड़कनों को सांसें,
जीवन को अर्थ, रिश्तों को प्यार, बागों में फूलों की बहार,
सर्दी की बर्फ़, गर्मी को ठंडी हवाएं, सूखे को बरसात,
ज़िंदगी को मौसमी सौगात, रखना याद 
हर हार के बाद है जीत,
जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।

दुखों को नहीं खुशियों को याद रखना,
मिली है जो सीख, उसे संभाल रखना,
प्रकृति से  अब और मत खेलना, संसार सब का है, 
याद रखना, ज़्यादा नहीं, थोड़े की है ज़रूरत,
लालच भरी ज़िंदगी की, बदलनी है सूरत,
खुशियों से भरा साल दो हज़ार इक्कीस है नज़दीक, 
जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।

प्रियांशु गुप्ता "प्रियांस" ✍

जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा करना, नफ़रत स्वाभाविक है, छीना जो है बहुत कुछ, बच्चों से पिता को, बहन से भाई को, पत्नी से पति को, ना जाने कितने रिश्तों से रिश्तों को, कारोबार, ऐशो आराम, सुख चैन, फ़ेहरिस्त लंबी है, द्वेष है, क्रोध है, नाराज़गी है, इच्छा यह सभी की है, कब जाओगे, कब आएगी चैन की नींद, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस। लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने, नदियों को साफ़ पानी, पेड़ों को हरियाली, पहाड़ों को झरने, बेघर पशु-पक्षियों को घर, धड़कनों को सांसें, जीवन को अर्थ, रिश्तों को प्यार, बागों में फूलों की बहार, सर्दी की बर्फ़, गर्मी को ठंडी हवाएं, सूखे को बरसात, ज़िंदगी को मौसमी सौगात, रखना याद हर हार के बाद है जीत, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस। दुखों को नहीं खुशियों को याद रखना, मिली है जो सीख, उसे संभाल रखना, प्रकृति से अब और मत खेलना, संसार सब का है, याद रखना, ज़्यादा नहीं, थोड़े की है ज़रूरत, लालच भरी ज़िंदगी की, बदलनी है सूरत, खुशियों से भरा साल दो हज़ार इक्कीस है नज़दीक, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस। प्रियांशु गुप्ता "प्रियांस" ✍

5 Love

कितना अजीब है ना, दिसंबर और जनवरी का रिश्ता? जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा, दोनों काफ़ी नाज़ुक हैं, दोनो में गहराई है, दोनों वक़्त के राही हैं, दोनों ने ठोकर खायी है, यूँ तो दोनों का है वही चेहरा-वही रंग, उतनी ही तारीखें और उतनी ही ठंड, पर पहचान अलग है दोनों की अलग है अंदाज़ और अलग हैं ढंग, एक अन्त है, एक शुरुआत जैसे रात से सुबह, और सुबह से रात, एक में याद है, दूसरे में आस, एक को है तजुर्बा, दूसरे को विश्वास, दोनों जुड़े हुए हैं ऐसे धागे के दो छोर के जैसे, पर देखो दूर रहकर भी साथ निभाते हैं कैसे जो दिसंबर छोड़ के जाता है, उसे जनवरी अपनाता है, और जो जनवरी के वादे हैं, उन्हें दिसम्बर निभाता है, कैसे जनवरी से दिसम्बर के सफर में 11 महीने लग जाते हैं, लेकिन दिसम्बर से जनवरी बस 1 पल में पहुंच जाते हैं, जब ये दूर जाते हैं तो हाल बदल देते हैं, और जब पास आते हैं, तो साल बदल देते हैं। प्रियांशु गुप्ता "प्रियांस"✍

 कितना अजीब है ना, दिसंबर और जनवरी का रिश्ता?
जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा,
दोनों काफ़ी नाज़ुक हैं, दोनो में गहराई है,
दोनों वक़्त के राही हैं, दोनों ने ठोकर खायी है,
यूँ तो दोनों का है वही चेहरा-वही रंग,
उतनी ही तारीखें और उतनी ही ठंड,
पर पहचान अलग है दोनों की
अलग है अंदाज़ और अलग हैं ढंग,
एक अन्त है, एक शुरुआत
जैसे रात से सुबह, और सुबह से रात,
एक में याद है, दूसरे में आस,
एक को है तजुर्बा, दूसरे को विश्वास,
दोनों जुड़े हुए हैं ऐसे धागे के दो छोर के जैसे,
पर देखो दूर रहकर भी साथ निभाते हैं कैसे
जो दिसंबर छोड़ के जाता है, उसे जनवरी अपनाता है,
और जो जनवरी के वादे हैं, उन्हें दिसम्बर निभाता है,
कैसे जनवरी से दिसम्बर के सफर में 11 महीने लग जाते हैं,
लेकिन दिसम्बर से जनवरी बस 1 पल में पहुंच जाते हैं,
जब ये दूर जाते हैं तो हाल बदल देते हैं,
और जब पास आते हैं, तो साल बदल देते हैं।

प्रियांशु गुप्ता "प्रियांस"✍

कितना अजीब है ना, दिसंबर और जनवरी का रिश्ता? जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा, दोनों काफ़ी नाज़ुक हैं, दोनो में गहराई है, दोनों वक़्त के राही हैं, दोनों ने ठोकर खायी है, यूँ तो दोनों का है वही चेहरा-वही रंग, उतनी ही तारीखें और उतनी ही ठंड, पर पहचान अलग है दोनों की अलग है अंदाज़ और अलग हैं ढंग, एक अन्त है, एक शुरुआत जैसे रात से सुबह, और सुबह से रात, एक में याद है, दूसरे में आस, एक को है तजुर्बा, दूसरे को विश्वास, दोनों जुड़े हुए हैं ऐसे धागे के दो छोर के जैसे, पर देखो दूर रहकर भी साथ निभाते हैं कैसे जो दिसंबर छोड़ के जाता है, उसे जनवरी अपनाता है, और जो जनवरी के वादे हैं, उन्हें दिसम्बर निभाता है, कैसे जनवरी से दिसम्बर के सफर में 11 महीने लग जाते हैं, लेकिन दिसम्बर से जनवरी बस 1 पल में पहुंच जाते हैं, जब ये दूर जाते हैं तो हाल बदल देते हैं, और जब पास आते हैं, तो साल बदल देते हैं। प्रियांशु गुप्ता "प्रियांस"✍

6 Love

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