sunita sonawrites

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जब कोई दिल टूट कर बिखर जाता है यक़ीन मानो वो अल्फ़ाज़ बनकर पन्नो पर निखर जाता है

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बीते दिनों के कुछ अनुभव

बीते दिनों के कुछ अनुभव

Monday, 21 November | 09:35 pm

96 Bookings

Expired
#कविता  बरसात अबकी जब तुम आना ,तो,
मेरा बचपन साथ ले आना,
"छपाक" से तरबतर बचपन,
ज़िम्मेदारियों की परिभाषा से मुक्त,
किसी कॉपी के पन्नो के लगातार फटने की आवाज़
और उन पन्नो पर मंझे हुए कलाकार सी,
चलती उंगलिया और उनसे तैयार होती ,
सपनों की सुनहरी कश्तियाँ,
छत की नाली की झांकती आंखों पर,
अपने ही किसी नन्हे कपड़े की पट्टी बांधकर,
पूरे छत को स्वीमिंग पूल में बदल कर,
एक विजेता सा एहसास होना,और,
फिर डुबकियां लगाता ,खिलखिलाता बचपन,
जाने कहाँ छुप गए वो दिन,कहीं नजर नही आते,
"बरसात"अबकी जब तुम आना,तो,
मेरा बचपन साथ ले आना।

©sunita sonawrites

bachpan aur barish

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#कविता #बचपन  बरसात अबकी जब तुम आना ,तो,
मेरा बचपन साथ ले आना,
"छपाक" से तरबतर बचपन,
ज़िम्मेदारियों की परिभाषा से मुक्त,
किसी कॉपी के पन्नो के लगातार फटने की आवाज़
और उन पन्नो पर मंझे हुए कलाकार सी,
चलती उंगलिया और उनसे तैयार होती ,
सपनों की सुनहरी कश्तियाँ,
छत की नाली की झांकती आंखों पर,
अपने ही किसी नन्हे कपड़े की पट्टी बांधकर,
पूरे छत को स्वीमिंग पूल में बदल कर,
एक विजेता सा एहसास होना,और,
फिर डुबकियां लगाता ,खिलखिलाता बचपन,
जाने कहाँ छुप गए वो दिन,कहीं नजर नही आते,
"बरसात"अबकी जब तुम आना,तो,
मेरा बचपन साथ ले आना।

©sunita sonawrites

#बचपन और बारिश#

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बहुत दिनों बाद एक बार फिर आपके बीच

बहुत दिनों बाद एक बार फिर आपके बीच

Friday, 22 July | 09:00 pm

49 Bookings

Expired
 कुछ ज़ख्म हलक में उम्र भर अल्फ़ाज़ बनकर अटके रह जाते हैं
अंदर रहे तो नासूर और बाहर निकले तो तमाशा बन जाते हैं।

©sunita sonawrites

#dard# #nasoor# #mere ehsas#

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नारी आज भी कहाँ आज़ाद है आज भी सुनती है, ऐसे चलो,ये मत पहनो,ऐसे क्यों किया इतनी जोर से हंसने की क्या ज़रूरत थी, जगह जगह सेल्फी क्यों लेती हो, तुम्हे वहां बोलने की क्या जरूरत थी, पचास की उम्र मे अब सलवार कमीज ही पहनो जीन्स पहनने की अब उम्र नही रही बालों को क्यों कलर करती हो नेचुरल सफेदी रहने दो, लिखती हो ठीक है मगर गोष्ठी में क्यों जाना, नारी को पसंद है दुर्गापूजा के भंडारे का खाना अपनी हमउम्र बहनों के ,दोस्तो के साथ , भीड़ में घुसकर हाथों में गर्म भंडारा लिये बाहर आना और फिर तमाम् हिदायते सुनना, अच्छा लगता है क्या इस तरह भीड़ में जाना? आज के बदलते वक्त की बात करो तो, एक जवाब सुनो "मर्द आज भी खड़ा होकर पेशाब करता है,तुम करोगी क्या? और बस नारी की चुप्पी और उधर किला फतह। ©sunita sonawrites

#कविता #Naari  नारी आज भी कहाँ आज़ाद है
आज भी सुनती है,
ऐसे चलो,ये मत पहनो,ऐसे क्यों किया
इतनी जोर से हंसने की क्या ज़रूरत थी,
जगह जगह सेल्फी क्यों लेती हो,
तुम्हे वहां बोलने की क्या जरूरत थी,
पचास की उम्र मे अब सलवार कमीज ही पहनो
जीन्स पहनने की अब उम्र नही रही
बालों को क्यों कलर करती हो
नेचुरल सफेदी रहने दो,
लिखती हो ठीक है मगर गोष्ठी में क्यों जाना,
नारी को पसंद है दुर्गापूजा के भंडारे का खाना
अपनी हमउम्र बहनों के ,दोस्तो के साथ ,
भीड़ में घुसकर हाथों में गर्म भंडारा लिये बाहर आना
और फिर तमाम् हिदायते सुनना,
अच्छा लगता है क्या इस तरह भीड़ में जाना?
आज के बदलते वक्त की बात करो तो,
एक जवाब सुनो
"मर्द आज भी खड़ा होकर पेशाब करता है,तुम करोगी क्या?
और बस नारी की चुप्पी और उधर किला फतह।

©sunita sonawrites

#Naari ka jeevan#

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