ये क्या है जो मुझे, मेरा होने नहीं देता....तड़पाता दिन रात है, पर रोने नहीं देता
डूबा देता है मुझे मेरे ही विचारों में, सवालों में, जवाबों में, विकारों में.......
खींच लाता है कहीं बीच से, मुझे आगे होने नहीं देता
ये मन की गहराइयां, तन्हाईयां, परेशानियां..हम किसे बताते....
उलझाता रहता और मुझे सुलझने नहीं देता
नासूर सा बन बह रहा है, मेरे हर कतरे में अब....
तू ही संभाल मौला, कि ये दर्द सोने नहीं देता
भटकाता है मुझे, मेरे सफ़र से, मंजिल से, मेरे हर ख़्वाब से......
पंख काट लेता है, और उड़ने नहीं देता
झांका और देखा, मन को, तन को, धड़कन को, बदन में होते हर कंपन को.....और पाया...
ये सिर्फ़ एक डर है, निराशा है....
जो मुझे मेरा होने नहीं देता
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