Shweta Mishra

Shweta Mishra Lives in Pratapgarh City, Uttar Pradesh, India

इश्क़ लिखा कुतुबखाने कि हर किताब में वो कलमकार भी सोच में पड़ा के नफ़रत ए इश्क़ पनपे भी तो कैसे उसके रुआब में।।

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#poetcommunity #writing #mywords #Quote
#Quotes  झुकी नजरें....
महज़ खौफ नहीं है हर दफा
इबादत ए इश्क़ भी
निगाहों को झुकना सिखा देता है।

©Shweta Mishra( अंबर)

# syahi

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ये बारिश, ये फूल, ये हवाओं का आँचल ये सर्दियाँ, ये, पतझड, ये तपन ये सावन की हरियाली के पल ये नदियाँ, ये पहाड़ ये पक्षियों का कलरव, कोलाहल हमने पाया है तुमसे शायद बिना कर्म के तुम जीवन दायिनी हो और हम? हम आदत से मजबूर हैं हम उस मजबूरी में भी मगरूर हैं आज तुम्हें बचाने को लिखेंगे कल फिर हम ही यही दोहरायेंगे आज हम प्रण करेंगे कल फिर हम भूल जायेंगे फिर ये वादे, ये प्रण, ये झूठे ग्यान ये हम क्यूं करें, क्यूं लिखें? ©️shweta ambar

#WorldEnvironmentDay #poem  ये बारिश, ये फूल,
ये हवाओं का आँचल
ये सर्दियाँ, ये, पतझड, ये तपन
ये सावन की हरियाली के पल
ये नदियाँ, ये पहाड़ 
ये पक्षियों का कलरव, कोलाहल
हमने पाया है तुमसे
शायद बिना कर्म के
तुम जीवन दायिनी हो और हम?
हम आदत से मजबूर हैं
हम उस मजबूरी में भी मगरूर हैं 
आज तुम्हें बचाने को लिखेंगे
कल फिर हम ही यही दोहरायेंगे
आज हम प्रण करेंगे 
कल फिर हम भूल जायेंगे
फिर
ये वादे, ये प्रण, ये झूठे ग्यान
ये हम क्यूं करें, क्यूं लिखें? 


©️shweta ambar

लौट रहे हैं लोग फिर उसी गाँव में बेनूर कहकर छोड़ा था कल जिसे लौट रहे हैं वापस फिर उसी बरगद और पीपल की छाँव में।।

#villagelove #Nature #poem  लौट रहे हैं लोग 
फिर उसी गाँव में
बेनूर कहकर छोड़ा था कल जिसे 
लौट रहे हैं वापस 
फिर उसी बरगद और पीपल की छाँव में।।

पटरी पर लाने को ये ज़िंदगी रहना पड़ता है घर से दूर कमाना पड़ता है और संतोषी बनना पड़ता है आधे पेट खाने में ताकि दे सके बच्चों को बीवी को दो वक्त रोटी दूर छूटे गाँव में और हो सके गुजारा बेपटरी की जिंदगी का पर ये तो सर्वथा सिद्ध है शायद इस मानव निर्मित पटरी पर नहीं पड़ती जरूरत उस दो वक्त वाली रोटी की।।

#aurangabadcase #labourerlife #Patri #poem  पटरी पर लाने को
ये ज़िंदगी 
रहना पड़ता है
घर से दूर 
कमाना पड़ता है 
और संतोषी बनना पड़ता है
आधे पेट खाने में 
ताकि दे सके
बच्चों को बीवी को
दो वक्त रोटी
दूर छूटे गाँव में 
और हो सके 
गुजारा बेपटरी की जिंदगी का
पर ये तो 
सर्वथा सिद्ध है शायद
इस मानव निर्मित पटरी पर
नहीं पड़ती जरूरत 
उस दो वक्त वाली रोटी की।।

कचनार पे यौवन चढ़ा साथ लज्जा संभारे।। सुनती सारे अट्टहास फिर भी है मौन धारे।। क्या खता मेरी हैं देख जो बावरे भ्रमर सारे।। आरा ए रंग बचे कैसे सोचती ये मन मारे।। हुज़रा मिले आराईश ये मेरी रखूं किनारे।।

#kachnarkikali #Beauty #Nature  कचनार पे 
यौवन चढ़ा साथ
लज्जा संभारे।।

सुनती सारे
अट्टहास फिर भी
है मौन धारे।।

क्या खता मेरी
हैं देख जो बावरे 
भ्रमर सारे।। 

आरा ए रंग
बचे कैसे सोचती 
ये मन मारे।। 

हुज़रा मिले
आराईश ये मेरी
रखूं किनारे।।
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