Manaswin Manu

Manaswin Manu Lives in Bhagalpur, Bihar, India

"पथ ही मेरा अब आदि-अंत । पथ मेरा जीवन और मरण ।। पथ पर चलना, पथ पर रहना, यह मुक्ति और मेरा बंधन ।।"

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#Manaswin_Manu #depression  अवसाद को स्वीकारना ही आध्यात्म है 
इससे घबराना, घबरा कर लोग ढूंढना, रिश्ते बनाना
यही बंधन है
बंधन, कभी खुशी, कभी घुटन, कभी उत्सव, कभी स्मृति है
खुशी, घुटन, उत्सव, स्मृति ये सब छलावे हैं 
छलावे नश्वर हैं 
और नश्वर हैं सारे प्रयास 

नश्वर हैं सारे प्रयास
प्रयास प्रसिद्धि के, दायित्वों के निर्वहन के, अर्थोपर्जन के
सारे प्रयास थकान हैं
और थकान से मुक्ति का एक मात्र तरीका है
अपने अवसाद को स्वीकारना 
.........................................................

अवसाद को स्वीकारना मुक्ति का मार्ग है 
पर इस मार्ग को मुश्किल बना देती हैं  'आशा' और 'प्रेरणा'
आशा कि 'पराजय' और 'अवसाद' क्षणिक हैं, 
प्रेरणा कि तिमिर के उस पार कोई शाश्वत प्रकाश है,
आशा भ्रम है
और प्रेरणा है अपने अवसाद को स्वीकार न कर पाने वाले कमजोर कायरों की कविता 

प्रेरणा कविता है 
और ये कविता लाती है
पैसा, प्रसिद्धि, रिश्ते, गर्व इत्यादि अन्य संसारिकताएं 
सांसारिकता मोह है
मोह है मुक्ति का सनातन बैरी 
किंतु मुक्ति किस्से ? संसार से ?
क्या हम स्वयं संसार नही ?
तो स्वयं से और संसार से मुक्ति का उपाय क्या ?
उपाय है ये देख पाना कि :
संसार संधान है और मुक्ति साध्य ।
इस देख पाने के मार्ग में  बाधक हैं,
सारी प्रेरणाएं, सारी आशायें, सारे प्रयास
जिनसे जन्म लेती है तृष्णा, भटकन और बन्धन 
प्रेरणा, आशा, प्रयास, तृष्णा, भटकन और बंधनों का गिर जाना ही है अवसाद
सो अवसाद ही मुक्ति है 
अवसाद को स्वीकारना है स्वीकारना इस तथ्य को
कि हम मुक्त हैं।

©Manaswin Manu
#Manaswin_Manu #Rishikesh  गंगा की अविरल निर्मलता
और हरि-हरा का धाम हूँ मैं
राम-लखन के झूले का
हिलता डुलता विश्राम हूँ मैं
रभ्या के तप की भूमि हूँ
भावों का भावावेश हूँ मैं
ऋषिकेश हूँ मैं, ऋषिकेश हूँ मैं
ऋषिकेश हूँ मैं, ऋषिकेश हूँ मैं

योग हूँ मैं, आरोग्य हूँ मैं
जप, पूजा हूँ और ध्यान हूँ मैं
सीधा, सुंदर और सहज, सरल
गंगा आरती का गान हूँ मैं
जगहित प्रभु ने विषपान किया
शिव शंकर का संदेश हूँ मैं
ऋषिकेश हूँ मैं, ऋषिकेश हूँ मैं
ऋषिकेश हूँ मैं, ऋषिकेश हूँ मैं

©Manaswin Manu

जब आर्यमा गुम हो निशा में हो तमस जब हर दिशा में रत्नाकर जब रो रहा हो भाग्य मेरा सो रहा हो हर तरफ जब हो उदासी देह घायल, नेह प्यासी कहीं भी कोई आश ना हो किसी पे जब विश्वाश ना हो तब भी तुम्हारा साथ होगा हाथों मे तुम्हारा हाथ होगा और धड़कन झूम कर के मुझसे यह कहती रहेगी ये वही है -- ये वही है ये ही है सदभाग्य तेरा ये है मन का मीत तेरा ये सनातन प्रीत तेरा ये हृदय का हर्ष तेरा ये ही है उत्कर्ष तेरा ये धड़कनों की सतसई है जो कमी थी, वो यही है है जो ये तो सब सही है ये वही है -- ये वही है ©Manaswin Manu

#sristysinghvarid #Manaswin_Manu #Sristy  जब आर्यमा गुम हो निशा में
हो तमस जब हर दिशा में
रत्नाकर जब रो रहा हो
भाग्य मेरा सो रहा हो
हर तरफ जब हो उदासी
देह घायल, नेह प्यासी
कहीं भी कोई आश ना हो
किसी पे जब विश्वाश ना हो
तब भी तुम्हारा साथ होगा
हाथों मे तुम्हारा हाथ होगा
और धड़कन झूम कर के
मुझसे यह कहती रहेगी
ये वही है -- ये वही है
ये ही है सदभाग्य तेरा
ये है मन का मीत तेरा
ये सनातन प्रीत तेरा
ये हृदय का हर्ष तेरा
ये ही है उत्कर्ष तेरा
ये धड़कनों की सतसई है
जो कमी थी, वो यही है
है जो ये तो सब सही है
ये वही है -- ये वही है

©Manaswin Manu

युग के आरंभ से अब तक किसी मनुष्य के हृदय में उत्पन्न प्रेम की सबसे गहरी और सच्ची भावना जैसी रही होगी तुम्हारे लिए मेरा प्यार वैसा ही है तुम्हारी सुंदर निश्चल आँखें और सीधी सच्ची बातें किसी पेशेवर झूठे को भी किसी मासूम बच्चे सा निर्मल कर देती हैं तो कहो मैं कैसे अपवाद रहता ? तुम्हारा प्यार, इनकार, गुस्सा सबकुछ स्वीकार है मुझे समय के अंत तक तुम्हारी प्रतीक्षा भी स्वीकार है किन्तु फिर भी एक उद्विग्नता है कि हम शीघ्र-अतिशीघ्र साथ आ जाएं ताकि इस छोटे - नश्वर जीवन मे तुम्हारे साथ थोड़ा अधिक समय बिता सकूँ ©Manaswin Manu

#100loveletters #Manaswin_Manu  युग के आरंभ से अब तक
किसी मनुष्य के हृदय में उत्पन्न
प्रेम की सबसे गहरी और सच्ची भावना
जैसी रही होगी
तुम्हारे लिए मेरा प्यार वैसा ही है

तुम्हारी सुंदर निश्चल आँखें
और सीधी सच्ची बातें
किसी पेशेवर झूठे को भी
किसी मासूम बच्चे सा निर्मल कर देती हैं
तो कहो मैं कैसे अपवाद रहता ?

तुम्हारा प्यार, इनकार, गुस्सा
सबकुछ स्वीकार है मुझे
समय के अंत तक तुम्हारी प्रतीक्षा भी स्वीकार है
किन्तु फिर भी एक उद्विग्नता है
कि हम शीघ्र-अतिशीघ्र साथ आ जाएं
ताकि इस छोटे - नश्वर जीवन मे
तुम्हारे साथ थोड़ा अधिक समय बिता सकूँ

©Manaswin Manu

मैंने प्रेम में प्रतीक्षा की है और प्रतीक्षा के हर छन में मैंने तुमसे उतना प्यार किया है जितना किया जाता है एक पूरे युग में मेरी सारी समझदारी इस एक प्रश्न के आगे हार गई थी कि बेहतर क्या है सृष्टि में पाने योग्य जो कुछ है उन सबको पाना या बिना किसी आश्वाशन के केवल तुम्हारी प्रतीक्षा करना और बिना उत्तर जाने भी मैंने तुम्हारी प्रतीक्षा को चुना ©Manaswin Manu

#100loveletters #Manaswin_Manu #letter1  मैंने प्रेम में प्रतीक्षा की है
और प्रतीक्षा के हर छन में मैंने
तुमसे उतना प्यार किया है
जितना किया जाता है एक पूरे युग में

मेरी सारी समझदारी
इस एक प्रश्न के आगे हार गई थी
कि बेहतर क्या है 
सृष्टि में पाने योग्य जो कुछ है
उन सबको पाना 
या बिना किसी आश्वाशन के
केवल तुम्हारी प्रतीक्षा करना 
और बिना उत्तर जाने भी
मैंने तुम्हारी प्रतीक्षा को चुना

©Manaswin Manu

Is anything around me real ? Do anything exist ? What if I reject all existence? The question comes "who is rejecting ?" My thoughts are rejecting. And "Who is thinking ?" Its me. So if I think, I am, I exit. (*Rene descartes*) I exist atleast as a thinking being. So my existence is certain. And existence of anything other then me, This sun, the moon, the earth, seasons, day & night, rivers and mountains, their existence is still questionable. But for me they exist. Because I can experience them. So if for me, my experience is the basis of existence of this universe. Then anything I say About this universe, Should be an absolute subjective truth. And all my thoughts, Should me my truth. Supported by the existence of this universe, Truth without exaggeration. So I am saying this, For you My friend, My love letter ,My sunflower. You exist for me And your existence Make the spring dance The rain sing The evening red And the nights dark The stars twinkle The moon smile You do this Just by existing. Just the fact that you exist makes this world a better place You make me a better human. Your existence inspires me to become better To become selfless To become loving And for this I will always love you I will always love us I love you ©Manaswin Manu

#Manaswin_Manu #Her  Is anything around me real ?
Do anything exist ?
What if I reject all existence?
The question comes "who is rejecting ?"
My thoughts are rejecting.
And "Who is thinking ?"
Its me.
So if I think, I am, I exit. (*Rene descartes*)
I exist atleast as a thinking being.
So my existence is certain.
And existence of anything other then me,
This sun, the moon, the earth,
seasons, day & night, rivers and mountains,
their existence is still questionable.
But for me they exist.
Because I can experience them.
So if for me, my experience is the basis
of existence of this universe.
Then anything I say About this universe,
Should be an absolute subjective truth.

And all my thoughts,
Should me my truth.
Supported by the existence of this universe,
Truth without exaggeration.

So I am saying this,
For you
My friend, My love letter ,My sunflower.

You exist for me
And your existence
Make the spring dance
The rain sing
The evening red
And the nights dark
The stars twinkle
The moon smile
You do this
Just by existing.

Just the fact that you exist
makes this world a better place
You make me a better human.

Your existence inspires me to become better
To become selfless
To become loving
And for this
I will always love you
I will always love us
I love you

©Manaswin Manu
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