अनूप 'समर'

अनूप 'समर' Lives in Moradabad, Uttar Pradesh, India

सुलझा हुआ इंसान हूँ उलझे मिज़ाज़ का.. 🎉🎉

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#Lafzdilsebyanoops #theincomparable #theuniques #Anoopsamar #lafzdilse   जिंदगी में कहीं मैं ज़िंदगी ढूंढता हूं!
               ढूंढने जब चलूं एक खुशी ढूंढता हूं!

सूरतें आदमी सी मिली हर तरफ़!
                आदमी में भी मै आदमी ढूंढता हूं!

भूलसे हम गये शक़्ल तक इन दिनों!
              मैं तो फिर से वहीं सादगी ढूंढता हूं!

पाँव तक टोकने लग गये अब मुझे!
              दौड़ने की वज़ह लाज़िमी ढूंढता हूं!

जो लबों पर चढ़े,फिर उतर न सके!
              अब तो ऐसी कहीं शायरी ढूंढता हूं!

ढूँढ़ ही लूंगा मैं शराबों में दरिया कई!
            उस कदर की कोई तिश्नगी ढूंढता हूं!

जो शिकायत करूँ सूखे दरिया से मैं!
           अपनी आँखों मे भी मैं नमी ढूंढता हूं!

©अनूप 'समर'

कभी रंगीन तो कभी ज़ाफ़रानी लगती हैं! मेरी कहानी तो बस मेरी कहानी लगती हैं! कौन कहता हैं मोहब्बत चार दिन की है! अज़ी हम से पूछो सारी जवानी लगती हैं! मोहब्बत का सबब कौन समझा हैं यहाँ! लोगों को तो बस मीरा दीवानी लगती हैं! शक्ल कैसी भी हो जब दिल आ जाये तो! इश्क के अंधे को बस वो सुहानी लगती हैं! जिधर देखिये बस कौवे के चोंच में मोती! ये अज़ब खुदा की कारस्तानी लगती हैं! ©अनूप 'समर'

#theincomparable #theuniques #Anoopsamar #LafDilse  कभी रंगीन तो कभी ज़ाफ़रानी लगती हैं!
         मेरी कहानी तो बस मेरी कहानी लगती हैं!

कौन कहता हैं मोहब्बत चार दिन की है!
          अज़ी हम से पूछो सारी जवानी लगती हैं!

मोहब्बत का सबब कौन समझा हैं यहाँ!
           लोगों को तो बस मीरा दीवानी लगती हैं!

शक्ल कैसी भी हो जब दिल आ जाये तो!
        इश्क के अंधे को बस वो सुहानी लगती हैं!

जिधर देखिये बस कौवे के चोंच में मोती!
           ये अज़ब खुदा की कारस्तानी लगती हैं!

©अनूप 'समर'

साल बदलने से क्या बदलता है मेरे हिसाब से शायद कुछ भी नहीं....!! लेकिन जब किसी टाइम फ़्रेम में कुछ ऐसी घटनाएं घटी हों जिनकी स्मृतियाँ अभी भी हमारे वर्तमान का नवीन हिस्सा बनी हुई हैं न चाहते हुए भी , तब हम चाहने लगते है कि ये चीजें पुरानी हो जाये किसी न किसी बहाने से इन पर अतीत का ठप्पा लग जाये ताकि हम आगे बढ़ जाएं....!! इसी आगे बढ़ने के क्रम में आज हम एक रेखा पार कर रहे है और एक टाइम फ्रेम से दूसरे में दाखिल हो रहे है जैसे कोई नाव का यात्री एक नाव छोड़कर दूसरे में चढ़ता है और दुखों का भारी बैग पुरानी नाव पर छोड़कर, कुछ अच्छी यादे स्मृति शेष के रूप में जेब मे रखकर, मन मे कुछ मीठा सा रहस्य लिए होठो पे सौम्य मुस्कान के साथ दूसरी नाव पर दाखिल होता है. हालांकि कहने से कुछ होना नहीं है फिर भी नववर्ष की हार्दिक एवं अनंत शुभकामनाएँ सभी को... ❤️ ©अनूप 'समर'

#happynewyear2023 #boat  साल बदलने से क्या बदलता है मेरे हिसाब से शायद कुछ भी नहीं....!!

लेकिन जब किसी टाइम फ़्रेम में कुछ ऐसी घटनाएं घटी हों जिनकी स्मृतियाँ अभी भी हमारे वर्तमान का नवीन हिस्सा बनी हुई हैं न चाहते हुए भी , तब हम चाहने लगते है कि ये चीजें पुरानी हो जाये किसी न किसी बहाने से इन पर अतीत का ठप्पा लग जाये ताकि हम आगे बढ़ जाएं....!!

इसी आगे बढ़ने के क्रम में आज हम एक रेखा पार कर रहे है और एक टाइम फ्रेम से दूसरे में दाखिल हो रहे है जैसे कोई नाव का यात्री एक नाव छोड़कर दूसरे में चढ़ता है और दुखों का भारी बैग पुरानी नाव पर छोड़कर, कुछ अच्छी यादे स्मृति शेष के रूप में जेब मे रखकर, मन मे कुछ मीठा सा रहस्य लिए होठो पे सौम्य मुस्कान के साथ दूसरी नाव पर दाखिल होता है.

हालांकि कहने से कुछ होना नहीं है फिर भी नववर्ष की हार्दिक एवं अनंत शुभकामनाएँ सभी को... ❤️

©अनूप 'समर'

कितनी बेदम है तुम्हारी हाकिमी कहते हैं! लोग बातों को तुम्हारी काग़ज़ी कहते हैं! गुनाहों की गली से तो मैं बच आया यारों! पर शराफत को मेरी बुज़दिली कहते हैं! आप क्या समझोगे मेरे दर्द को मेरे हुज़ूर! आप तो हर बात को दिल्लगी कहते हैं! नहीं समझे ये मीरा की मुहब्बत श्याम से! पागल लोग उसको भी बावरी कहते हैं! कौन सी जाने तुम्हारी आँख पे हैं पट्टियाँ बस्तियाँ जलने को भी रोशनी कहते हैं! भूलके सारी मुहब्बत और सारी मस्तियाँ! उम्र ढलने को ही तो ज़िन्दगी कहते हैं! भूख से बेहाल किसी के लड़खड़ाने पर! लाेग उसकी बेबसी को बेख़ुदी कहते हैं! ©अनूप 'समर'

#RailTrack  कितनी बेदम है तुम्हारी हाकिमी कहते हैं!
       लोग बातों को तुम्हारी काग़ज़ी कहते हैं!

गुनाहों की गली से तो मैं बच आया यारों!
        पर शराफत को मेरी बुज़दिली कहते हैं!

आप क्या समझोगे मेरे दर्द को मेरे हुज़ूर!
         आप तो हर बात को दिल्लगी कहते हैं!

नहीं समझे ये मीरा की मुहब्बत श्याम से!
        पागल लोग उसको भी बावरी कहते हैं!

कौन सी जाने तुम्हारी आँख पे हैं पट्टियाँ
         बस्तियाँ जलने को भी रोशनी कहते हैं!

भूलके सारी मुहब्बत और सारी मस्तियाँ!
         उम्र ढलने को ही तो ज़िन्दगी कहते हैं!

भूख से बेहाल किसी के लड़खड़ाने पर!
      लाेग उसकी बेबसी को बेख़ुदी कहते हैं!

©अनूप 'समर'

#RailTrack

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कितनी बेदम है तुम्हारी हाकिमी कहते हैं! लोग बातों को तुम्हारी काग़ज़ी कहते हैं! गुनाहों की गली से तो मैं बच आया यारों! पर शराफत को मेरी बुज़दिली कहते हैं! ©अनूप 'समर'

#RailTrack  कितनी बेदम है तुम्हारी हाकिमी कहते हैं!
       लोग बातों को तुम्हारी काग़ज़ी कहते हैं!

गुनाहों की गली से तो मैं बच आया यारों!
        पर शराफत को मेरी बुज़दिली कहते हैं!

©अनूप 'समर'

#RailTrack

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#Quotes    चल दोनों एक दूजे को खत लिखते हैं! 
       कुछ बात कुछ बात-बे-बात लिखते हैं!

साथ साथ भीगी हुई बरसात लिखते हैं!
        और हिज़्र में काटी हुई रात लिखते हैं! 

दोनों मिलकर तेरी मेरी बात लिखते हैं!
       कुछ सच्चे कुछ झूठे हालात लिखते हैं!

चल बेहद और बेइंतहा याद लिखते हैं!
      आओ हम वस्ल की वारदात लिखते हैं! 

चारगों में  ढलती हुई  शाम लिखते हैं!
       हाथों में जब थामा था हाथ लिखते हैं!

चल दोनों एक दूजे को खत लिखते हैं!
      मिलकर एक मुकम्मल बात लिखते हैं!

©अनूप 'समर'

#Quotes 

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