शुभी

शुभी Lives in Ghaziabad, Uttar Pradesh, India

कलम से कागज़ पर ख़ुद को बयां करते हैं, वो समझते हैं हम शब्दों का कारोबार करते हैं.

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Kuch yaaden wapas khinch laati hain..

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नफ़रतों की एक दिन इन्तेहा हो जाएगी डर है मुझे उस दिन फिज़ा भी मज़हबी हो जाएगी मस्जिद से जो गुज़रेगी वो मुसलमान कहलाएगी  मंदिर को छूने वाली हिन्दू हो जाएगी.

 नफ़रतों की एक दिन इन्तेहा हो जाएगी
डर है मुझे उस दिन फिज़ा भी मज़हबी हो जाएगी

मस्जिद से जो गुज़रेगी वो मुसलमान कहलाएगी 
मंदिर को छूने वाली हिन्दू हो जाएगी.

नफ़रतों की एक दिन इन्तेहा हो जाएगी डर है मुझे उस दिन फिज़ा भी मज़हबी हो जाएगी मस्जिद से जो गुज़रेगी वो मुसलमान कहलाएगी  मंदिर को छूने वाली हिन्दू हो जाएगी.

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शैतान को देखा था घर बनाते हुए, एक बच्चा देखा हर ग्रन्थ जलाते हुए| ज़हन में क़ैद है वो तस्वीर आज भी, मेमार को देखा था शहर ढहाते हुए।

 शैतान को  देखा  था  घर  बनाते हुए,
एक बच्चा देखा हर ग्रन्थ जलाते हुए|

ज़हन में क़ैद है वो तस्वीर आज भी,
मेमार को देखा था शहर ढहाते हुए।

शैतान को देखा था घर बनाते हुए, एक बच्चा देखा हर ग्रन्थ जलाते हुए| ज़हन में क़ैद है वो तस्वीर आज भी, मेमार को देखा था शहर ढहाते हुए।

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Kya kar rahe?

 Kya kar rahe?

Kya kar rahe?

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जायज़ है इश्क़ में दिल का टूट जाना भी, चाँद का आसमाँ से कभी रूठ जाना भी। तुझे पता ही नहीं तू क्या था मेरे लिए, हुआ ही नहीं मेरा ख़ुद से रूठ जाना भी। सब ने देखा है मोती टूट के बिखर गए, उस दिन हुआ एक धागे का टूट जाना भी। जा मैं नहीं कहता तू ख़ुश हो जहाँ भी हो, तूने देखा नहीं मेरी दुआ का रूठ जाना भी। एक आईना था कभी इस कमरे में मेरे, उसे देख हुआ पत्थर का लौट जाना भी।— % &

 जायज़ है इश्क़ में दिल का टूट जाना भी,
चाँद का आसमाँ से कभी रूठ जाना भी।

तुझे  पता  ही  नहीं  तू  क्या  था मेरे लिए,
हुआ ही नहीं मेरा ख़ुद से रूठ जाना भी। 

सब ने   देखा  है  मोती टूट  के बिखर गए,
उस दिन हुआ एक धागे का टूट जाना भी।

जा मैं  नहीं  कहता तू ख़ुश हो जहाँ भी हो,
तूने देखा नहीं मेरी दुआ का रूठ जाना भी।

एक  आईना  था  कभी  इस  कमरे में मेरे,
उसे  देख  हुआ  पत्थर का लौट जाना भी।— % &

जायज़ है इश्क़ में दिल का टूट जाना भी, चाँद का आसमाँ से कभी रूठ जाना भी। तुझे पता ही नहीं तू क्या था मेरे लिए, हुआ ही नहीं मेरा ख़ुद से रूठ जाना भी। सब ने देखा है मोती टूट के बिखर गए, उस दिन हुआ एक धागे का टूट जाना भी। जा मैं नहीं कहता तू ख़ुश हो जहाँ भी हो, तूने देखा नहीं मेरी दुआ का रूठ जाना भी। एक आईना था कभी इस कमरे में मेरे, उसे देख हुआ पत्थर का लौट जाना भी।— % &

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ये दरवाज़ा देख रहो हो? इसने कयी पतझड़, कयी सावन देखें हैं, पर अब हल्की नमी से अड़ जाता है, और खोलो तो ये चीख उठता है। इसकी बाज़ुओं पे चढ़ अक्सर झूल जाते थे, हो भीषण तूफ़ान, चाहे सूर्य उगलता आग, ये दरवाज़ा अपने पीछे हमें महफूज़ रखता था। वो दरवाज़े पे लगी खूँटी हमारे ख़्वाबों का बोझ उठाती थी, कयी मर्तबा दरवाज़े पे जड़ा आईना होता था, वो आईना जो हमें ख़ुद से रूबरू कराता था। इसके चेहरे की झुर्रियों में यादें समायी हैं, और कभी गर्द की पुरानी परत भी नज़र आ जाती है। दरवाज़े से आती नए रंग की खुश्बू, एक नया ज़िन्दगी का दौर लाती है। हम भूल जाते हैं, कि अब हमें पासबान बनने की ज़रूरत है। और हम भूल जाते हैं, की वो दरवाज़ा अब बूढ़ा हो चला है।— % &

 ये दरवाज़ा देख रहो हो?
इसने कयी पतझड़, कयी सावन देखें हैं,
पर अब हल्की नमी से अड़ जाता है, 
और खोलो तो ये चीख उठता है।
इसकी बाज़ुओं पे चढ़ अक्सर झूल जाते थे,
हो भीषण तूफ़ान, चाहे सूर्य उगलता आग,
ये दरवाज़ा अपने पीछे हमें महफूज़ रखता था।
वो दरवाज़े पे लगी खूँटी हमारे ख़्वाबों का बोझ उठाती थी,
कयी मर्तबा दरवाज़े पे जड़ा आईना होता था,
वो आईना जो हमें ख़ुद से रूबरू कराता था। 
इसके चेहरे की झुर्रियों में यादें समायी हैं, 
और कभी गर्द की पुरानी परत भी नज़र आ जाती है।
दरवाज़े से आती नए रंग की खुश्बू, 
एक नया ज़िन्दगी का दौर लाती है। 
हम भूल जाते हैं, 
 कि अब हमें पासबान बनने की ज़रूरत है। 
और हम भूल जाते हैं, 
की वो दरवाज़ा अब बूढ़ा हो चला है।— % &

ये दरवाज़ा देख रहो हो? इसने कयी पतझड़, कयी सावन देखें हैं, पर अब हल्की नमी से अड़ जाता है, और खोलो तो ये चीख उठता है। इसकी बाज़ुओं पे चढ़ अक्सर झूल जाते थे, हो भीषण तूफ़ान, चाहे सूर्य उगलता आग, ये दरवाज़ा अपने पीछे हमें महफूज़ रखता था। वो दरवाज़े पे लगी खूँटी हमारे ख़्वाबों का बोझ उठाती थी, कयी मर्तबा दरवाज़े पे जड़ा आईना होता था, वो आईना जो हमें ख़ुद से रूबरू कराता था। इसके चेहरे की झुर्रियों में यादें समायी हैं, और कभी गर्द की पुरानी परत भी नज़र आ जाती है। दरवाज़े से आती नए रंग की खुश्बू, एक नया ज़िन्दगी का दौर लाती है। हम भूल जाते हैं, कि अब हमें पासबान बनने की ज़रूरत है। और हम भूल जाते हैं, की वो दरवाज़ा अब बूढ़ा हो चला है।— % &

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