कहूँ अपना या ना तुमको
प्रिये कहू या प्रेयसी
या बन जाऊँ अनजान कोई
सोचू नहीं तुम को मैं अपना
दुविधा भरे मन को मेरे
तुम ही कुछ सुझाव दो
साथ रहो तुम बन के संगिनी
प्रेम में इंसान
बन जाता है कलाकार
कहने लगता है शेर
लिखने लगता है कविताएं
कोई बन कर चित्रकार
बनाने लगते है चित्र
अपने प्रेयसी के
कला से मिल जाती है पहचान
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