" शमी सतीश " (Satish Girotiya) Lives in Bhopal, Madhya Pradesh, India

◆ Poet , Shaayar & Short Story writer ✍️ ◆ Single_but_Happy ◆Life_is_too_complicated_but_still_beautiful ◆ 🎂 15 December 1990 ◆ 📲 9806301200, 8109251834

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#वो_शहर  "वो शहर"

जब हम कोई शहर छोड़ते हैं तो , हमसे सिर्फ़ वो शहर नहीं छूटता है , 
हमसे छूटता है एक किराए का कमरा, जिसमें हमने कई साल बिताए होते हैं, 

छूटता है हमसे एक मोहल्ला , एक गली जो हमारी हर आहट पहचानती है। 
छूटती है हमसे एक किराने की दुकान , एक नाई की दुकान  और एक जनरल स्टोर , 

 हर शाम दोस्तों के साथ इकट्ठा होने वाला अड्डा , शहर के चौराहे पर, वो एक चाय की दुकान। 
छूट जाते हैं वो पड़ोसी , जो कब अजनबी होकर भी सगे रिश्तेदार बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता ।। 

पीछे छोड़ आते हैं हम, वो एक लड़की जिसे चाहकर भी अपने दिल की बात ना कह पाए कभी, 
उसके घर के बाहर चंद मिनट खड़े होकर, मन ही मन अलविदा कह आते हैं, 
ये सोचकर के शायद अब जिंदगी में हम दोबारा ना मिले कभी ।। 

घर लौट के आने की खुशी में हम देख ही नहीं पाते के कितना कुछ छूट रहा है पीछे हमसे।। 
एक बड़ी सी वक्त की गठरी में, हम चंद सालों की यादें ठूस - ठूस कर ले आते हैं। 

जिंदगी में जब भी कभी ये गठरी खोलते है, तो हर बार कुछ पल इधर - उधर बिखर जाते हैं। 
ये पल, आंखों में आंसू और होंठो पर मुस्कुराहट बनकर, उभर आते हैं।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
#याद  White "याद"

जब हम कोई शहर छोड़ते हैं तो , हमसे सिर्फ़ वो शहर नहीं छूटता है , 
हमसे छूटता है वो किराए का कमरा जिसमें हमने कई साल बिताए होते हैं, 

छूटता है हमसे इस मोहल्ला , इक गली जो हमारी हर आहट पहचानती है। 
छूटती है हमसे एक किराने की दुकान , एक नई की दुकान , एक जनरल स्टोर , 

सबसे खास हर शाम दोस्तों के साथ इकट्ठा होने वाला अड्डा , वो एक चाय की दुकान। 
छूट जाते हैं एक पड़ोसी  जो कब अजनबी होकर भी सगे रिश्तेदार बन जाते हैं पता ही नहीं चलता ।। 

पीछे छोड़ आते हैं हम वो एक लड़की जिसे हम चाहते थे, मगर कभी उसे कह ही नहीं पाए, 
उसके घर के बाहर उसे कुछ चांद मिनट खड़े होकर अलविदा कह आते हैं, शायद अब दोबारा हम नहीं मिलने कभी ।। 

घर लौट के आने की खुशी में हम देख ही नहीं पाते के कितना कुछ छूट रहा है पीछे हमसे।। 
एक बड़ी सी वक्त की गठरी में हम चंद सालों की यादें ठूस कर ले आते हैं। 

जिंदगी में जब भी ये गठरी खोलते है , हर बार कुछ पल इधर उधर बिखर जाते हैं। 
ये पल आंसू और होंठो पर मुस्कुराहट बनकर, उभर आते हैं।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)

#याद

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#city_life  घर लौट के आने का एहसास, कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो,

पीछे छूटा हुआ शहर, किराए का कमरा, पीछे छूटे हुए दोस्त,

उनसे सब से जुड़ी यादें , अक्सर बेचैन कर ही देती हैं।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)

#city_life

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#Free  White तुम्हारे जो हो ना सकेंगे, 
मलाल तो रहेगा इसका ज़िंदगी भर मुझे। 

बेवफ़ा हो जाएंगे तुम्हारी नज़रों में हम इक रोज़, 
वफ़ा करते करते ।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)

#Free

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#SAD  White वो जो रफ्ता-रफ्ता मुँह फिराता रहा हमसे , 

वो किश्तों-किश्तों में दूर जाता रहा हमसे।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)

#SAD

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 कभी सुबह लिखा, कभी शाम लिखा हमने, 
हर लफ्ज़ तुम्हारे ही नाम लिखा हमने । 

तुम्हें लिखा, हर नज़्म, हर शायरी में, 
बस कहीं, तुम्हारा नाम नहीं लिखा हमने।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)

कभी सुबह लिखा, कभी शाम लिखा हमने, हर लफ्ज़ तुम्हारे ही नाम लिखा हमने । तुम्हें लिखा, हर नज़्म, हर शायरी में, बस कहीं, तुम्हारा नाम नहीं लिखा हमने। ©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)

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