Asrvoicer

Asrvoicer Lives in Tehri, Uttarakhand, India

myself Anil Singh Rawat from Uttarakhand Tehri garhwal. i love voiceover i want just try it. how can speak here

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 Voicer 
Anil Rawat 
Writer
Pankaj Rawat

teri buraiyon

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*तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है, और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है // *ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है // तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है // *थक* गया है हर *शख़्स* काम करते करते // तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है। *गांव* चलो *वक्त ही वक्त* है सबके पास !! तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है // *मौन* होकर *फोन* पर *रिश्ते* निभाए जा रहे हैं // तू इस *मशीनी दौर* को *परिवार* कहता है // जिनकी *सेवा* में *खपा* देते थे जीवन सारा, तू उन *माँ बाप* को अब *भार* कहता है // *वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे, तू *दस्तूर* निभाने को *रिश्तेदार* कहता है // बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें* // तु अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार* कहता है // बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाडी* में // पूरा *परिवार* भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है // अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं // तू इस *नये दौर* को *संस्कार* कहता है *........//* मेरा गढ़वाल मेरा स्वर्ग पंकज रावत

 *तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है,

और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है //

*ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है //

तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है //

*थक* गया है हर *शख़्स* काम करते करते //

तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है।

*गांव* चलो *वक्त ही वक्त* है सबके पास !!

तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है //

*मौन* होकर *फोन* पर *रिश्ते* निभाए जा रहे हैं //

तू इस *मशीनी दौर* को *परिवार* कहता है //

जिनकी *सेवा* में *खपा* देते थे जीवन सारा,

तू उन *माँ बाप* को अब *भार* कहता है //

*वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे,

तू *दस्तूर* निभाने को *रिश्तेदार* कहता है //

बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें* //

तु अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार* कहता है //

बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाडी* में //

पूरा *परिवार* भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है //

अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं //

तू इस *नये दौर* को *संस्कार* कहता है *........//*
   मेरा गढ़वाल मेरा स्वर्ग
      पंकज रावत

*तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है, और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है // *ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है // तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है // *थक* गया है हर *शख़्स* काम करते करते // तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है। *गांव* चलो *वक्त ही वक्त* है सबके पास !! तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है // *मौन* होकर *फोन* पर *रिश्ते* निभाए जा रहे हैं // तू इस *मशीनी दौर* को *परिवार* कहता है // जिनकी *सेवा* में *खपा* देते थे जीवन सारा, तू उन *माँ बाप* को अब *भार* कहता है // *वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे, तू *दस्तूर* निभाने को *रिश्तेदार* कहता है // बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें* // तु अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार* कहता है // बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाडी* में // पूरा *परिवार* भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है // अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं // तू इस *नये दौर* को *संस्कार* कहता है *........//* मेरा गढ़वाल मेरा स्वर्ग पंकज रावत

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