समझते हो तुम तन्हा खुद को,
यहां और भी लोग तन्हा हैं...
लगता है तुमको कि तुम ही गुजरे हो इन हालातों से,
पर जनाब यहां हर किसी के चेहरे पर झूठी मुस्कान का पहरा है...
पहना है नकाब यहां हर किसी ने,
जिसके पीछे इक हंसता और इक रोता चेहरा है...
झांक कर देखो उनकी इस गहरी खामोशी में,
उनका दिल कभी इधर तो कभी उधर भटकता है...
नहीं मिल रहा उनको कोई सुकून अब,
उनका दर्द तुमसे भी कहीं ज्यादा गहरा है...
खामोशी भी सुन लोगे तुम उनकी,
अगर लगे वो दर्द तुमको अपना है...
©shreshthi khandelwal
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