Shivam Nahar

Shivam Nahar Lives in Gwalior, Madhya Pradesh, India

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साए . इतने काले साए खुद के, ना देख सकें चेहरा अपना, इस मन में कालिख पुती हुई, ना संग कोई ठहरा अपना, बस मिलते हैं, मुस्काते हैं, आंखों में चमक दिखे सबको, कोई पहचाने झूठे चेहरे, मन में बसते झूठे रबको, है लफ्ज़ में धारा गंगा सी, पर मन में मैल समेटे हैं, हम खुली आंख से लाश सरी, मृत्य शय्या पे लेटे हैं, कोई गले लगे मुस्कादे हम, कोई मुड़े तो गाली देते हैं, इतने टूटे से मन के हैं, कोई लाड़ करे रो देते हैं, कल खुली हवा में मन था जब, सासों में एक पुरवाई थी, उन कमरों में वापस बंद हैं, सायों से जहां लड़ाई थी, एक मन में रोशनदान मेरे, जहां केवल घुप्प अंधेरा है, मैं कहां पलटू, किसको देखूं, किन सायों ने फिर टेरा है एक डोर से बांधा है जीवन, जिसे अंतर्द्वंद्व ही काट रहा, मैं किस रास्ते पे चलूं 'शिवा', मेरा मन सब रस्ते भाग रहा, मैं चाहता हूं किसी रस्ते पे, उद्‌गम तेरे डमरू का हो, मेरे पैर में चाहें छाले हों, रास्ता तेरे संगम का हो ।। . :– शिवम् नाहर ©Shivam Nahar

#कविता #DhakeHuye #darkness #dillema #Saaye  साए
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इतने काले साए खुद के, ना देख सकें चेहरा अपना,
इस मन में कालिख पुती हुई, ना संग कोई ठहरा अपना,
बस मिलते हैं, मुस्काते हैं, आंखों में चमक दिखे सबको,
कोई पहचाने झूठे चेहरे, मन में बसते झूठे रबको,
है लफ्ज़ में धारा गंगा सी, पर मन में मैल समेटे हैं,
हम खुली आंख से लाश सरी, मृत्य शय्या पे लेटे हैं,
कोई गले लगे मुस्कादे हम, कोई मुड़े तो गाली देते हैं,
इतने टूटे से मन के हैं, कोई लाड़ करे रो देते हैं,
कल खुली हवा में मन था जब, सासों में एक पुरवाई थी,
उन कमरों में वापस बंद हैं, सायों से जहां लड़ाई थी,
एक मन में रोशनदान मेरे, जहां केवल घुप्प अंधेरा है,
मैं कहां पलटू, किसको देखूं, किन सायों ने फिर टेरा है
एक डोर से बांधा है जीवन, जिसे अंतर्द्वंद्व ही काट रहा,
मैं किस रास्ते पे चलूं 'शिवा', मेरा मन सब रस्ते भाग रहा,
मैं चाहता हूं किसी रस्ते पे, उद्‌गम तेरे डमरू का हो,
मेरे पैर में चाहें छाले हों, रास्ता तेरे संगम का हो ।।
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:– शिवम् नाहर

©Shivam Nahar

एक चिरैया शाम छत पे बैठने आई शांत मन सुनती मुझे, कुछ चहकने आई, कि वो बोले एक उड़ान, क्यों तुम नहीं भरते यार तुम अब हंसते, पहले से नहीं लगते, एक किसी दिन फिर चलो गर साथ तुम मेरे आओ तुमको वहां दिखाऊं पास जो मेरे, ये कि पीछे उस पहाड़ी पे घना जंगल तेरे मेरे जैसे कितनों का वही उपवन, जिसमें खिलती रोशनी तुमको उजारेगी जिसमें जुगनू की चमक तुमको संवारेगी, मैं कहीं चुप चाप टूटा सुन रहा था सब अब के होता ना यकीन, इंसान हो या रब, अब तो सूरज देख, ये भी ख़्याल आते हैं वो भी सुबह संग, सांझ तक छूट जाते हैं, कहते हैं जब कांच टूटे जुड़ ना पाते हैं हम वो बिखरे पक्षी हैं, उड़ना ना चाहते हैं । ©Shivam Nahar

#कविता #Light #story #poem  एक चिरैया शाम छत पे बैठने आई
शांत मन सुनती मुझे, कुछ चहकने आई,
कि वो बोले एक उड़ान, क्यों तुम नहीं भरते
यार तुम अब हंसते, पहले से नहीं लगते,
एक किसी दिन फिर चलो गर साथ तुम मेरे
आओ तुमको वहां दिखाऊं पास जो मेरे,
ये कि पीछे उस पहाड़ी पे घना जंगल
तेरे मेरे जैसे कितनों का वही उपवन,
जिसमें खिलती रोशनी तुमको उजारेगी
जिसमें जुगनू की चमक तुमको संवारेगी,
मैं कहीं चुप चाप टूटा सुन रहा था सब
अब के होता ना यकीन, इंसान हो या रब,
अब तो सूरज देख, ये भी ख़्याल आते हैं
वो भी सुबह संग, सांझ तक छूट जाते हैं,
कहते हैं जब कांच टूटे जुड़ ना पाते हैं
हम वो बिखरे पक्षी हैं, उड़ना ना चाहते हैं ।

©Shivam Nahar

संकल्प एक समय लांग जब की मेहनत, फिर और निचोड़ा इस मन को, हर कण से ख़ुद में भरा जुनूं, फिर झुलसा दिया है इस तन को, बस मन में भरा है लक्ष्य एक, कि जीवन का उद्धार करूं, मुझे सब करना इस जीवन में, पर पहले ख़ुद से प्यार करूं, देखूं उस कांच में जहां मुझे, इस अंतर्मन का मैल दिखे, और काट फेंक दूं वो रिश्ते, जिनसे निरवाना गैल दिखे, क्या छोड़ चलूं उन लोगों को, जो स्वप्न में बाधा लाते हों, और मार फेंक दूं शोर सभी, जो मेरी हार को गाते हों, इस दुनिया भर की मंशा में, मुझसे मैं जीत तो जाऊंगा, पर क्या मालूम किन रस्तों पे, किस किसको खोता जाऊंगा, फिर उठा मैं एक दिन भोर में तो, बस ढीट किया अपने मन को, मैंने ठान लिया कि श्रेष्ठ करूं, इस व्याकुल विचलित जीवन को, सीख़ वही फिर याद मुझे, आती है उन सब पर्वत से, होते ऊंची चोटी पे हम, छोटे पत्थर की करवट से, हां चलता चल ना सोच यही, सब तन्हा छोड़ के जाएंगे, कुछ साथ कृष्ण सरी के हैं, चोटी तक साथ निभाएंगे । ©Shivam Nahar

 संकल्प

एक समय लांग जब की मेहनत, फिर और निचोड़ा इस मन को,
हर कण से ख़ुद में भरा जुनूं, फिर झुलसा दिया है इस तन को,
बस मन में भरा है लक्ष्य एक, कि जीवन का उद्धार करूं,
मुझे सब करना इस जीवन में, पर पहले ख़ुद से प्यार करूं,

देखूं उस कांच में जहां मुझे, इस अंतर्मन का मैल दिखे,
और काट फेंक दूं वो रिश्ते, जिनसे निरवाना गैल दिखे,
क्या छोड़ चलूं उन लोगों को, जो स्वप्न में बाधा लाते हों,
और मार फेंक दूं शोर सभी, जो मेरी हार को गाते हों,

इस दुनिया भर की मंशा में, मुझसे मैं जीत तो जाऊंगा,
पर क्या मालूम किन रस्तों पे, किस किसको खोता जाऊंगा,

फिर उठा मैं एक दिन भोर में तो, बस ढीट किया अपने मन को,
मैंने ठान लिया कि श्रेष्ठ करूं, इस व्याकुल विचलित जीवन को,
सीख़ वही फिर याद मुझे, आती है उन सब पर्वत से,
होते ऊंची चोटी पे हम, छोटे पत्थर की करवट से,

हां चलता चल ना सोच यही, सब तन्हा छोड़ के जाएंगे,
कुछ साथ कृष्ण सरी के हैं, चोटी तक साथ निभाएंगे ।

©Shivam Nahar

#alone #संकल्प #हिंदी #कविता #Nojoto

23 Love

सुनो भाई जो घर अपना, तुम दूर जहां में बसा आये, मेरे यार घरों को आजाना, जब भी इस माँ की पुकार आये, सिखा रहे हो ना बच्चों को, देश है वीर जवानों का, लोकगीत के बंध सभी, जादू इस देश की बातों का, बैठो वृधों के साथ कभी, जीवन का ज्ञान भी ले लेना, सजदा करना, पाँव छूना, उनको सम्मान भी दे देना, सीख यही देना सबको, कोई ज़्यादा नहीं ना कम है जी, ये वसुधा बंधी एक सोच से है, वो वासुधैव कुठूम्भकम जी, हैँ सैतालिस की पैदावर, कोई गीत विजय का गाओ रे, ओ झूम के नाचो मतवालों, कोई रज के सोहर गाओ रे, आज़ाद हुए हो जश्न करो, अरे बांध तिरंगा सीने से, हर दिन ये गौरव याद रखो, जो मिला है खून पसीने से, अरे आओ सपूतों यज्ञ करो, आहुति देदो जीवन की, इस जग में ऐसा नीर नहीं, जो आग करे ठंडी मैन की, आओ माटी से लेप करें, गंग-जमुना स्नान करें, आओ फिरसे हम सब मिलके, बस जय-२ हिंदुस्तान कहें । ©Shivam Nahar

#कविता #Independence  सुनो भाई जो घर अपना, तुम दूर जहां में बसा आये,
मेरे यार घरों को आजाना, जब भी इस माँ की पुकार आये,
सिखा रहे हो ना बच्चों को,  देश है वीर जवानों का,
लोकगीत के बंध सभी, जादू इस देश की बातों का,
बैठो वृधों के साथ कभी, जीवन का ज्ञान भी ले लेना,
सजदा करना, पाँव छूना, उनको सम्मान भी दे देना,
सीख यही देना सबको, कोई ज़्यादा नहीं ना कम है जी,
ये वसुधा बंधी एक सोच से है, वो वासुधैव कुठूम्भकम जी,
हैँ सैतालिस की पैदावर, कोई गीत विजय का गाओ रे,
ओ झूम के नाचो मतवालों, कोई रज के सोहर गाओ रे,
आज़ाद हुए हो जश्न करो, अरे बांध तिरंगा सीने से,
हर दिन ये गौरव याद रखो, जो मिला है खून पसीने से,
अरे आओ सपूतों यज्ञ करो, आहुति देदो जीवन की,
इस जग में ऐसा नीर नहीं, जो आग करे ठंडी मैन की,
आओ माटी से लेप करें, गंग-जमुना स्नान करें,
आओ फिरसे हम सब मिलके,  बस जय-२ हिंदुस्तान कहें ।

©Shivam Nahar

इस दिल में अब कोई प्रेम नहीं, ना साथ बचे कोई अपने, हर नस में घुटन है दौड़ रही, इन आंख में टूटे हैं सपने, मैं फ़िर भी ख़ुद को साध, कभी तो क्षण–२ करके जीता हूं, कुछ लोग समय संग छूट गए,एक प्रेम के गम को पीता हूं । . मैं रात में तन्हा जागा सा, ख़ुद की परछाईं से डरता हूं, हां चीख रहीं अब भी यादें, मैं प्रेम उसी से करता हूं, कि कहीं वो कहती दीवारें, लिपटी चादर में चिंताएं, मैं तन्हा छूट गया गर यहां, फिर किस से करूंगा आशाएं, कोई थामे हाथ और संग चलदे, कोई गले लगाए घर करदे, कोई बैठ मुझे फिर समझाए, इस मुर्दे में सांसें भरदे । . मैं टूट के जब भी शीशे सा, टुकड़े टुकड़े सा होता हूं, मुझे डर लगता है दूरी से, अपनों के गम को ढोता हूं, एक नदिया जिससे था प्रेम बड़ा, उसके आगे ही झुकना था, उस तट से दूर निकल गए वो, उन्हें थोड़ा सा और रुकना था । . :- शिवम नाहर ©Shivam Nahar

#कविता #LateNight  इस दिल में अब कोई प्रेम नहीं, ना साथ बचे कोई अपने,
हर नस में घुटन है दौड़ रही, इन आंख में टूटे हैं सपने,
मैं फ़िर भी ख़ुद को साध, कभी तो क्षण–२ करके जीता हूं,
कुछ लोग समय संग छूट गए,एक प्रेम के गम को पीता हूं ।
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मैं रात में तन्हा जागा सा, ख़ुद की परछाईं से डरता हूं,
हां चीख रहीं अब भी यादें, मैं प्रेम उसी से करता हूं,
कि कहीं वो कहती दीवारें, लिपटी चादर में चिंताएं,
मैं तन्हा छूट गया गर यहां, फिर किस से करूंगा आशाएं,
कोई थामे हाथ और संग चलदे, कोई गले लगाए घर करदे,
कोई बैठ मुझे फिर समझाए, इस मुर्दे में सांसें भरदे ।
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मैं टूट के जब भी शीशे सा, टुकड़े टुकड़े सा होता हूं,
मुझे डर लगता है दूरी से, अपनों के गम को ढोता हूं,
एक नदिया जिससे था प्रेम बड़ा, उसके आगे ही झुकना था,
उस तट से दूर निकल गए वो, उन्हें थोड़ा सा और रुकना था ।
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:- शिवम नाहर

©Shivam Nahar

#Poetry #LateNight

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दो पक्षी . एक मौन बस गया है मन में और चिंतन हैं उन आंखों में, वो देख रहा है अंदर तक जीवन की गहरी रातों में, कुछ भाव नए मन में उसके कुछ कैद पड़े हैं सीने में, एक पल में कितना कुछ सोच रहा, विचलित है ऐसे जीने में, थी कथा यही एक चिड़िया के, बस संग वो रहना चाहता था , हर दिशा उड़ सके संग उसके, उसके संग बहना चाहता था, थी हवा सभी ही संग उनके और हर टहनी मुस्काती थी, हां हर ज़र्रे, हर कोने में, सूरज की लाली छा जाती थी एक पलक झपकते ही जैसे दिन बदल गया कोई उनके, जिन पंखों से इतना प्रेम किया कोई पंख कतर गया था उनके, कभी गले लगाए याद कोई, कभी खोया हुआ है भीड़ में वो, जो एक चिरैया छोड़ गई खोजे उसको ही नीड़ में वो, कंकड़, काग़ज़, पत्थर, पत्ती, लाए थे संग ढोके रस्सी, अब घर में सब कुछ है उसके, ना है उस चिड़िया की हस्ती । . :– शिवम नाहर ©Shivam Nahar

#कविता #tales #us  दो पक्षी
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एक मौन बस गया है मन में और चिंतन हैं उन आंखों में,
वो देख रहा है अंदर तक जीवन की गहरी रातों में,
कुछ भाव नए मन में उसके कुछ कैद पड़े हैं सीने में,
एक पल में कितना कुछ सोच रहा, विचलित है ऐसे जीने में,
थी कथा यही एक चिड़िया के, बस संग वो रहना चाहता था ,
हर दिशा उड़ सके संग उसके, उसके संग बहना चाहता था,
थी हवा सभी ही संग उनके और हर टहनी मुस्काती थी,
हां हर ज़र्रे, हर कोने में, सूरज की लाली छा जाती थी
एक पलक झपकते ही जैसे दिन बदल गया कोई उनके,
जिन पंखों से इतना प्रेम किया कोई पंख कतर गया था उनके,
कभी गले लगाए याद कोई, कभी खोया हुआ है भीड़ में वो,
जो एक चिरैया छोड़ गई खोजे उसको ही नीड़ में वो,
कंकड़, काग़ज़, पत्थर, पत्ती, लाए थे संग ढोके रस्सी,
अब घर में सब कुछ है उसके, ना है उस चिड़िया की हस्ती ।
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:– शिवम नाहर

©Shivam Nahar

#tales #Love #us

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