Abhishek Jain Sagar

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गीत गंगा

गीत गंगा

Monday, 15 February | 07:00 pm

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#एक_मुक्तक #शायरी

दिन गुज़रता नही रात कटती नही बस अकेला सा जीवन हुआ प्यार में साथ सुधिया है मेरे ये सौभाग्य है तुमने सोपी थी जो मुझको उपहार में... यू बिछड़ के वो मुझसे अलग हो गई सोचती है की मुझको भूला जाएगी दर्द के आशू आँखों से छलकेगे जब बस उसी क्षण वो मुझको वहाँ पाएगी मेरे शीशे से दिल में तेरा रूप था रूप अनगिन किये तुमने संहार में साथ सुधिया है मेरे ये सौभाग्य है तुमने सोपी थी जो मुझको उपहार में... हाथ मेहंदी रची माथ बिंदिया सजीरंच भर भी कमी थी ना श्रृंगार में बाह साजन की है चाह प्रियतम की है सारी खुशिया है समृद्ध परिवार है पर वो घड़िया जो हमने गुज़री कभीक्या वो मिल पाएगी इस नए प्यार में साथ सुधिया है मेरे ये सौभाग्य है तुमने सोपी थी जो मुझको उपहार में... सामने कुण्ड है देव ग्रह सामने ऐसे माला का खुलना क्या संयोग है हाथो से कण्ठ में बांधना हार का हार कोई नही प्रेम की जीत है न बराती न पंडित न जयमाल है बिन महुरत के परिणय हुआ प्यार में दिन गुज़रता नही रात कटती नही बस अकेला सा जीवन हुआ प्यार में...

#RDV18 विरह गीत दिन गुज़रता नही रात कटती नही बस अकेला सा जीवन हुआ प्यार में साथ सुधिया है मेरे ये सौभाग्य है तुमने सोपी थी जो मुझको उपहार में... यू बिछड़ के वो मुझसे अलग हो गई सोचती है की मुझको भूला जाएगी दर्द के आशू आँखों से छलकेगे जब बस उसी क्षण वो मुझको वहाँ पाएगी मेरे शीशे से दिल में तेरा रूप था रूप अनगिन किये तुमने संहार में

#RDV18 विरह गीत दिन गुज़रता नही रात कटती नही बस अकेला सा जीवन हुआ प्यार में साथ सुधिया है मेरे ये सौभाग्य है तुमने सोपी थी जो मुझको उपहार में... यू बिछड़ के वो मुझसे अलग हो गई सोचती है की मुझको भूला जाएगी दर्द के आशू आँखों से छलकेगे जब बस उसी क्षण वो मुझको वहाँ पाएगी मेरे शीशे से दिल में तेरा रूप था रूप अनगिन किये तुमने संहार में

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बनकर जो दीप जले है सिर कफन बाँध निकले है जिनके कौशल को लख कर दुश्मन के कदम हिले है #शहीदों को नमन #

#शहीदों  बनकर जो दीप जले है सिर कफन बाँध निकले है
जिनके कौशल को लख कर दुश्मन के कदम हिले है
#शहीदों को नमन #

बनकर जो दीप जले है सिर कफन बाँध निकले है जिनके कौशल को लख कर दुश्मन के कदम हिले है # शहीदों को नमन #

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