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theMr_A3 Lives in Varanasi, Uttar Pradesh, India

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“कौन हो तुम?” “तुम कौन हो?” “हरहर महादेव... हरहर महादेव?” “हरहर महादेव?” “सुबूत क्या है?” “सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?” “ये कोई सुबूत नहीं?” “चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” “हम वेदों को नहीं जानते... सुबूत दो।” “क्या?” “पाएजामा ढीला करो?” पाएजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया, “मार डालो... मार डालो?” “ठहरो ठहरो... मैं तुम्हारा भाई हूँ... भगवान की क़सम तुम्हारा भाई हूँ।” “तो ये क्या सिलसिला है?” “जिस इलाक़े से आ रहा हूँ वो हमारे दुश्मनों का था इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा... सिर्फ़ अपनी जान बचाने के लिए एक यही चीज गलत हो गई है बाकी बिल्कुल ठीक हूं। “उड़ा दो ग़लती को।” ग़लती उड़ा दी गई... धर्मचंद भी साथ ही उड़ गया।

#SaadatHasanManto #कहानी  “कौन हो तुम?” 
“तुम कौन हो?” 
“हरहर महादेव... हरहर महादेव?” 
“हरहर महादेव?” 
“सुबूत क्या है?” 
“सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?” 
“ये कोई सुबूत नहीं?” 
“चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।” 
“हम वेदों को नहीं जानते... सुबूत दो।” 
“क्या?” 
“पाएजामा ढीला करो?”
पाएजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया, 
“मार डालो... मार डालो?” 
“ठहरो ठहरो... मैं तुम्हारा भाई हूँ... भगवान की क़सम तुम्हारा भाई हूँ।” 
“तो ये क्या सिलसिला है?” 
“जिस इलाक़े से आ रहा हूँ वो हमारे दुश्मनों का था इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा... सिर्फ़ अपनी जान बचाने के लिए एक यही चीज गलत हो गई है बाकी बिल्कुल ठीक हूं।
“उड़ा दो ग़लती को।” 

ग़लती उड़ा दी गई... धर्मचंद भी साथ ही उड़ गया।

आस्तिक हो और अगर मानते हो कि ईश्वर है, तो अपने अस्तित्व की तरफ़ देखो। इस पूरे ब्रम्हांड में ये आकाशगंगा धूल का एक कण है। इस आकाशगंगा में, ये धरती तो धूल का कण भी नहीं है। तुम? तुम्हारे होने न होने से इस ब्रम्हांड को रत्ती भर अंतर नहीं पड़ता। तुम्हारे मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजे रहें या न रहें, इस ब्रम्हांड के चलने में कोई अंतर नहीं आएगा। तुम्हारा अस्तित्व तो मज़ाक उड़ाने लायक भी नहीं है। जो मनुष्यता इस धरती को कैंसर की तरह खा रही है, एक झटके में समाप्त हो जाएगी। सूनामी और भूकंप तुम्हारा धर्म नहीं पूछेंगे। जब महामारी आएगी, वो तुम से मंत्र या आयत पढ़वा के लौट नहीं जाएगी। ब्रम्हांड तो छोड़ ही दो। इस धरती का जीवन एक साल माना जाए, तो इंसान दिसंबर की 31 तारीख के आखिरी मिनटों में आया है। ये हमारी औकात है । हम जब अपनी ही मूर्खता से मारे जाएंगे, तब भी ये पृथ्वी रहेगी। जब तक यहाँ हो, इस धरती के एहसानमंद बन के रहो। इस कि हवा और पानी के एहसानमंद बन के रहो। उसे बचा सकते हो, तो बचा लो। वो भी धरती पर एहसान करने के लिए नहीं, अपने अस्तित्व के लिए। जीवन से इतना भी मत उकता जाओ कि वक्त काटने के लिए, एक दूसरे को काटने में लग जाओ। वैसे तो तुम्हारे नायक, धूल कण के एक हिस्से पर राज करने के लिए तुम्हारी लाशों को तराज़ू पर चढ़ा रहे हैं। फिर भी मैं तुम सब को लिख के देता हूँ कि जिस बदले के तराज़ू में तो तुम एक दूसरे की लाशें चढ़ा रहे हो, न हज़ारों साल बाद उसका काँटा बराबरी पर आया है और ना कभी बराबरी पर आएगा। बहुत कम लिखा है लेकिन काफ़ी समझ लेना।

#Dwell_in_possibility #बात  आस्तिक हो और अगर मानते हो कि ईश्वर है, तो अपने अस्तित्व की तरफ़ देखो। इस पूरे ब्रम्हांड में ये आकाशगंगा धूल का एक कण है। इस आकाशगंगा में, ये धरती तो धूल का कण भी नहीं है। तुम? तुम्हारे होने न होने से इस ब्रम्हांड को रत्ती भर अंतर नहीं पड़ता। तुम्हारे मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजे रहें या न रहें, इस ब्रम्हांड के चलने में कोई अंतर नहीं आएगा। तुम्हारा अस्तित्व तो मज़ाक उड़ाने लायक भी नहीं है।  जो मनुष्यता इस धरती को कैंसर की तरह खा रही है, एक झटके में समाप्त हो जाएगी। सूनामी और भूकंप तुम्हारा धर्म नहीं पूछेंगे। जब महामारी आएगी, वो तुम से मंत्र या आयत पढ़वा के लौट नहीं जाएगी। ब्रम्हांड तो छोड़ ही दो। इस धरती का जीवन एक साल माना जाए, तो इंसान दिसंबर की 31 तारीख के आखिरी मिनटों में आया है। ये हमारी औकात है । हम जब अपनी ही मूर्खता से मारे जाएंगे, तब भी ये पृथ्वी रहेगी। जब तक यहाँ हो, इस धरती के एहसानमंद बन के रहो। इस कि हवा और पानी के एहसानमंद बन के रहो। उसे बचा सकते हो, तो बचा लो। वो भी धरती पर एहसान करने के लिए नहीं, अपने अस्तित्व के लिए। जीवन से इतना भी मत उकता जाओ कि वक्त काटने के लिए, एक दूसरे को काटने में लग जाओ। वैसे तो तुम्हारे नायक, धूल कण के एक हिस्से पर राज करने के लिए तुम्हारी लाशों को तराज़ू पर चढ़ा रहे हैं।

फिर भी मैं तुम सब को लिख के देता हूँ कि जिस बदले के तराज़ू में तो तुम एक दूसरे की लाशें चढ़ा रहे हो, न हज़ारों साल बाद उसका काँटा बराबरी पर आया है और ना कभी बराबरी पर आएगा। 
बहुत कम लिखा है लेकिन काफ़ी समझ लेना।
#बात  Saadat Hasan Manto

lines by Saadat Hasan Manto

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"धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी" शंका की बू सूंघ के दौड़े, अंधे जंगली कुत्तों जैसी दाँत गाड़ के चीर फाड़ के, नोच खाएगी डेमोक्रेसी फिर कौओं का झुंड बनाकर, लाश पे काँय काँय करेगी धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी कुंठाओं के नाखूनों को, नर्म माँस का चस्का भाए लाल हैं गुस्से से जो माथे, किसके खूँ से प्यास बुझाएँ हर दूजे आदम के भीतर, हत्यारे का बीज छुपा है ज़हर बुझे धर्मों का पानी, रोज़ उसी को सींच रहा है बेकारी सस्ते दामों पर, खाद उसे सप्लाय करेगी धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी प्रजातंत्र के कार्डबोर्ड पर, साँप और सीढ़ी रचा गया है सीढ़ी का विज्ञापन देकर, साँप सभी को पचा गया है जो प्रयोगशाला के मूषक, अक्लों से बेरोज़गार हैं बाहुबल की राह दिखाती, हिंसा उनका रोज़गार है तानाशाह की प्रबल प्रेरणा, मूषक को महाकाय करेगी धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी भीड़ थी किसकी कौन मरा है, इसमें सबकी दिलचस्पी है सबके अपने हित हैं यारों, सबके हाथ मे एक पर्ची है पर्ची से लीडर का भाषण, मार के रट्टा बक देंगे वो भीड़ के आगे लाओ उनको, चिंदी चिंदी उधड़ेंगे वो फिर उनके चिथड़ों पे सत्ता, वोटों का व्यवसाय करेगी धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी - पुनीत शर्मा

#Dwell_in_possibility #कविता #PuneetSharma #DelhiPeace  "धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी"

शंका की बू सूंघ के दौड़े, अंधे जंगली कुत्तों जैसी
दाँत गाड़ के चीर फाड़ के, नोच खाएगी डेमोक्रेसी
फिर कौओं का झुंड बनाकर, लाश पे काँय काँय करेगी
धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी
कुंठाओं के नाखूनों को, नर्म माँस का चस्का भाए
लाल हैं गुस्से से जो माथे, किसके खूँ से प्यास बुझाएँ
हर दूजे आदम के भीतर, हत्यारे का बीज छुपा है
ज़हर बुझे धर्मों का पानी, रोज़ उसी को सींच रहा है
बेकारी सस्ते दामों पर, खाद उसे सप्लाय करेगी
धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी
प्रजातंत्र के कार्डबोर्ड पर, साँप और सीढ़ी रचा गया है
सीढ़ी का विज्ञापन देकर, साँप सभी को पचा गया है
जो प्रयोगशाला के मूषक, अक्लों से बेरोज़गार हैं
बाहुबल की राह दिखाती, हिंसा उनका रोज़गार है
तानाशाह की प्रबल प्रेरणा, मूषक को महाकाय करेगी
धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी
भीड़ थी किसकी कौन मरा है, इसमें सबकी दिलचस्पी है
सबके अपने हित हैं यारों, सबके हाथ मे एक पर्ची है
पर्ची से लीडर का भाषण, मार के रट्टा बक देंगे वो
भीड़ के आगे लाओ उनको, चिंदी चिंदी उधड़ेंगे वो
फिर उनके चिथड़ों पे सत्ता, वोटों का व्यवसाय करेगी
धर्मराज तुम मातम गाओ, भीड़ हमारा न्याय करेगी

- पुनीत शर्मा
#कविता  😜

Thanks to Saeed Rahi Saheb for such beautiful lines.

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#विचार

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