Aashutosh Kumar

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कहाँ ले जाऊँ दिल, दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा, मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है

कहाँ ले जाऊँ दिल, दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा, मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है

572 Love

अब हलो हाय में ही बात हुआ करती है रास्ता चलते मुलाक़ात हुआ करती है दिन निकलता है तो चल पड़ता हूं सूरज की तरह थक के गिर पड़ता हूं जब रात हुआ करती है रोज़ इक ताज़ा ग़ज़ल कोई कहां तक लिक्खे रोज़ ही तुझमें नयी बात हुआ करती है

अब हलो हाय में ही बात हुआ करती है रास्ता चलते मुलाक़ात हुआ करती है दिन निकलता है तो चल पड़ता हूं सूरज की तरह थक के गिर पड़ता हूं जब रात हुआ करती है रोज़ इक ताज़ा ग़ज़ल कोई कहां तक लिक्खे रोज़ ही तुझमें नयी बात हुआ करती है

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