ख़ुद को कुछ इस तरह बहलाया करो,
अपनी आँख का आँसू ना ज़ाया करो।
रुक जा, अभी उसे आना है,
ये कहकर, मौत को भी ठुकराया करो।
साथ चलते कंधे ही काम आने है एक दिन,
यूँ ही सबको गले से लगाया करो।।
सिगरेट सा धीरे-धीरे जल रहा था वो,
अंदर ही अंदर मचल रहा था वो।।
पता था ज़िंदगी राख बन जाएगी उसकी,
फिर भी अंगारों पर चल रहा था वो।।
मंज़िल तक पहुँचना तो मुमकिन ही नहीं था,
बेवजह ही बार-बार गिर कर सँभल रहा था वो।।
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