Divya prakash_ sisodiya

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मै कुछ नहीं ,,,फिर भी कुछ तो हूं जों तुम समझते हो।

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धूप से अपने बसंत की शुरुवात करने वाला मै, जीवन के जिस छोर पर खड़ा हूं, वहां का बसंत धूप जैसा नहीं, अंगुरी में फंसी किसी अंगूठी की तरह, सांसों ने कंठ को जकड़ लिया है, फिर भी प्राण जिंदा है। प्राणों से अपनी मृत्यु की कथा लिखने वाला मै, मृत्यु के जिस छोर पर खड़ा हूं, वहां की मृत्यु इतनी सहज नहीं, श्रेष्ठता के तरकश में नुकीले बाणों को भरकर, भीष्म की शैया की तरह रिस रहे है मेरे जख्म, फिर भी प्राण जिंदा है।।

#poem  धूप से अपने बसंत की शुरुवात करने वाला मै,
जीवन के जिस छोर पर  खड़ा हूं,
वहां का बसंत धूप जैसा नहीं,
अंगुरी में फंसी किसी अंगूठी की तरह,
सांसों ने कंठ को जकड़ लिया है,
फिर भी प्राण जिंदा है।

प्राणों से अपनी मृत्यु की कथा लिखने वाला मै,
मृत्यु के जिस छोर पर खड़ा हूं,
वहां की मृत्यु इतनी सहज नहीं,
श्रेष्ठता के तरकश में नुकीले बाणों को भरकर,
भीष्म की शैया की तरह रिस रहे है मेरे जख्म,
फिर भी प्राण जिंदा है।।

# मृत्यु और जीवन

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