बेटियाँ प्यारी होती है, परायी नहीं
बेटियाँ बाबा की आन ,
पापा की शान,
भाई का गुमान ,
माँ की छाया ,आँखों नक नूर होती है बेटियाँ,
बेटियाँ प्यारी होती है, परायी नहीं ।
ससुर का मान
पति का स्वाभिमान
सास की गृहलक्ष्मी कहलाती है बेटियाँ
एक आँगन की खुशबू को
दूसरे आँगन तक महकाती है बेटियाँ ,
बेटियाँ प्यारी होती है, परायी नहीं ।
किसी की बेटी किसी की बहू ,
किसी की बहन ,किसी की अर्धांगिनी बन
जिंदगी भर साथ निभाती है बेटियाँ,
बेटियाँ प्यारी होती है परायी नहीं ।
पीहर में जिसके आने से आती है खुशियाँ,
नन्हा सा फूल देकर कुल को आगे बढ़ाती है बेटियाँ ।
मायके में जिसकी हँसी से गूँजता घर-आँगन है,
ससुराल की गलियों में छनकती जिसकी पायल है ,
इसीलिए तो लक्ष्मी स्वरूप कहलाती है बेटियाँ ,
बेटियाँ प्यारी होती है,परायी नहीं ।।
स्वरचित कविता
रूपम सिंह
©RUPAM SINGH
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