नया लहज़ा नई बात वो अपने अल्फाज ज़िंदगी में मुकम्मल लम्हे के इंतज़ार में, हर लम्हे की ज़िंदगी को क्यूँ ज़ाया किया जाए जो शौक़ अटे रखे हैं रोशनदानो के साथ फ़ुरसत की राह देखते , चलो हर इतवार उन्हें उतारा जाए दिल की अमावस एक मुस्कान की लौ से मिट जाती है , उसके लिए दिवाली को क्यू पुकारा जाए रिश्तों को सहेज, शौक़ सर चढ़ जाने दे , दिल की राह अपनो तक पहुँचा ए दिल ना देख राह फ़ुरसत की फ़ुरसत को आदत है इंतेज़ार करवाने की , अक्सर पहुँचीं तब जब महफ़िल सिमट जाए
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