Satish agrahari

Satish agrahari Lives in Kanpur, Uttar Pradesh, India

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jindagi ki kahani

jindagi ki kahani

Monday, 8 August | 12:30 am

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हर एक भाषा में तुम्हारी प्रतीक्षा से लथपथ हू, किसी भी सपने को मोड़ता हू अपने तरफ मगर तुम बहुत दूर निकल जाती हो, बहुत आगे कौन सी भाषा में तुम हो सकती हो पास (?) कोई भी भाषा नही इस लोक में जिसके सहारे उतर सकू उस पार जहा तुम्हारे होने की भनक है थोड़ी सी उम्मीद पर किस भाषा में करू विश्वास, मेरी प्रतिक्षा से ईश्वर भी थक चुके है और प्रेम से तुम दूर दिखती हो, भागता हू बेधड़क मेरे और तुम्हारे बीच की दूरी कोई बेशुमार भूख है खत्म ही नही होती कब तक इसके निगलने तक बचता रहूंगा (!) याद करने पर भी मुझसे छूट रही हो कोई भी स्मृति जहन में इतनी देर नही ठहरती की तुम्हारी बारिश की बनी हुए आंख मेरी तरफ देखकर, दया दिखा सके कुछ देर याद तक में , तुम्हारे जाने की गीत बचा है आती हुई तुम, बहुत कम याद आती हो तुम भाषाओं की पकड़ से बाहर हो चुप से भरी किसी दुख की तरह, हरेक कविता की लंबी दौड़ है तुम्हारी छाव को छूने की। ✍🏼 सतीश अग्रहरि ©Satish agrahari

#intimacy #लव  हर एक भाषा में
तुम्हारी प्रतीक्षा से लथपथ हू,
किसी भी सपने को मोड़ता हू अपने तरफ
मगर तुम बहुत दूर निकल जाती हो, बहुत आगे

कौन सी भाषा में तुम हो सकती हो पास (?)
कोई भी भाषा नही इस लोक में जिसके सहारे उतर सकू उस पार
जहा तुम्हारे होने की भनक है थोड़ी सी

उम्मीद पर किस भाषा में करू विश्वास,
मेरी प्रतिक्षा से ईश्वर भी थक चुके है
और प्रेम से तुम

दूर दिखती हो, भागता हू बेधड़क
मेरे और तुम्हारे बीच की दूरी 
कोई बेशुमार भूख है खत्म ही नही होती
कब तक इसके निगलने तक बचता रहूंगा (!)

याद करने पर भी मुझसे छूट रही हो
कोई भी स्मृति जहन में इतनी देर नही ठहरती
की तुम्हारी बारिश की बनी हुए आंख
मेरी तरफ देखकर, दया दिखा सके कुछ देर

याद तक में , तुम्हारे जाने की गीत बचा है
आती हुई तुम,  बहुत कम याद आती हो

तुम भाषाओं की पकड़ से बाहर हो
चुप से भरी किसी दुख की तरह,
हरेक कविता की लंबी दौड़ है
तुम्हारी छाव को छूने की।

             ✍🏼 सतीश अग्रहरि

©Satish agrahari

#intimacy

11 Love

हर एक भाषा में तुम्हारी प्रतीक्षा से लथपथ हू, किसी भी सपने को मोड़ता हू अपने तरफ मगर तुम बहुत दूर निकल जाती हो, बहुत आगे कौन सी भाषा में तुम हो सकती हो पास (?) कोई भी भाषा नही इस लोक में जिसके सहारे उतर सकू उस पार जहा तुम्हारे होने की भनक है थोड़ी सी उम्मीद पर किस भाषा में करू विश्वास, मेरी प्रतिक्षा से ईश्वर भी थक चुके है और प्रेम से तुम दूर दिखती हो, भागता हू बेधड़क मेरे और तुम्हारे बीच की दूरी कोई बेशुमार भूख है खत्म ही नही होती कब तक इसके निगंके तक बचता रहूंगा (!) याद करने पर भी मुझसे छूट रही हो कोई भी स्मृति जहन में इतनी देर नही ठहरती की तुम्हारी बारिश की बनी हुए आंख मेरी तरफ देखकर, दया दिखा सके कुछ देर याद तक में , तुम्हारे जाने की गीत बचा है आती हुई तुम, बहुत कम याद आती हो तुम भाषाओं की पकड़ से बाहर हो चुप से भरी किसी दुख की तरह, हरेक कविता की लंबी दौड़ है तुम्हारी छाव को छूने की। ✍🏼 सतीश अग्रहरि ©Satish agrahari

#लव  हर एक भाषा में
तुम्हारी प्रतीक्षा से लथपथ हू,
किसी भी सपने को मोड़ता हू अपने तरफ
मगर तुम बहुत दूर निकल जाती हो, बहुत आगे

कौन सी भाषा में तुम हो सकती हो पास (?)
कोई भी भाषा नही इस लोक में जिसके सहारे उतर सकू उस पार
जहा तुम्हारे होने की भनक है थोड़ी सी

उम्मीद पर किस भाषा में करू विश्वास,
मेरी प्रतिक्षा से ईश्वर भी थक चुके है
और प्रेम से तुम

दूर दिखती हो, भागता हू बेधड़क
मेरे और तुम्हारे बीच की दूरी 
कोई बेशुमार भूख है खत्म ही नही होती
कब तक इसके निगंके तक बचता रहूंगा (!)

याद करने पर भी मुझसे छूट रही हो
कोई भी स्मृति जहन में इतनी देर नही ठहरती
की तुम्हारी बारिश की बनी हुए आंख
मेरी तरफ देखकर, दया दिखा सके कुछ देर

याद तक में , तुम्हारे जाने की गीत बचा है
आती हुई तुम,  बहुत कम याद आती हो

तुम भाषाओं की पकड़ से बाहर हो
चुप से भरी किसी दुख की तरह,
हरेक कविता की लंबी दौड़ है
तुम्हारी छाव को छूने की।

             ✍🏼 सतीश अग्रहरि

©Satish agrahari

love #Love

11 Love

खुद का दायरा बढ़ा , मुझे सिमटने पर मजबूर कर दिया, मैं सोचता रहा सभी के बारे में, सबने मेरे बारे में सोचना बंद कर दिया.... घनघोर अंधेरा कभी मेरा पहचान हुआ करता था, रोमांचक, अद्भुत, आश्चर्य मेरे लिए इस्तेमाल हुआ करता था, यूं ही कुछ देसी– विदेशी मुझे नजरो और कैमरों में कैद किया करते थे... बेहद खुशी होती है, जब कोई अपना समझता है, मानो जैसे कोई मंदिर का चौखट छूता है, और मुझ पर आहिस्ते से कदम रखता है.. जिंदा हूं मैं क्या दिखाई नही देता, चीखता नही हू , शायद इसीलिए सुनाई नही देता, कभी आओगे नजदीक तो बाते केरेंगे हम, तुम अल्फाज इस्तेमाल करना, जवाब में तुमको मद्धम हवाओ से छू जायेंगे हम... ©Satish agrahari

#ज़िन्दगी #sagarkinare  खुद का दायरा बढ़ा ,
मुझे सिमटने पर मजबूर कर दिया,
मैं सोचता रहा सभी के बारे में,
सबने मेरे बारे में सोचना बंद कर दिया....

घनघोर अंधेरा कभी मेरा पहचान हुआ करता था,
रोमांचक, अद्भुत, आश्चर्य मेरे लिए इस्तेमाल हुआ करता था,
यूं ही कुछ देसी– विदेशी मुझे नजरो और कैमरों में कैद किया करते थे...

बेहद खुशी होती है,
जब कोई अपना समझता है,
मानो जैसे कोई मंदिर का चौखट छूता है,
और मुझ पर आहिस्ते से कदम रखता है..

जिंदा हूं मैं क्या दिखाई नही देता,
चीखता नही हू , शायद इसीलिए सुनाई नही देता,
कभी आओगे नजदीक तो बाते केरेंगे हम,
तुम अल्फाज इस्तेमाल करना,
जवाब में तुमको मद्धम हवाओ से छू जायेंगे हम...

©Satish agrahari

#sagarkinare

11 Love

#लव

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ला दिए हैं किसान सड़कों पर सब्र का इम्तिहान सड़कों पर कैद कर ली कुबेर ने संसद आ गया संविधान सड़कों पर आइए मुल्क देखिए साहब पूजा,कीरत,अजान,सड़कों पर सच कहो क्या कचोटते ही नहीं मरते हलधर महान सड़कों पर आपकी रहजनी के कारण है आज हिंदुस्तान सड़कों पर और कुछ दिन जो ठहर जाइए ये उगता दिख जाए धान सड़कों पर देख ली भूमि-पुत्र की ताकत रख दिया आसमान सड़कों पर रेडियो पर तो बात करते हैं दीजिए कुछ बयान सड़कों पर। ✍️ सतीश अग्रहरि ©Satish agrahari

#farmersprotest  ला दिए हैं किसान सड़कों पर
  सब्र का इम्तिहान सड़कों पर
  कैद कर ली कुबेर ने संसद
      आ गया संविधान सड़कों पर 
आइए मुल्क देखिए साहब 
     पूजा,कीरत,अजान,सड़कों पर 
सच कहो क्या कचोटते ही नहीं
 मरते हलधर महान सड़कों पर 
आपकी रहजनी के कारण है
 आज हिंदुस्तान सड़कों पर  
   और कुछ दिन जो ठहर जाइए ये
 उगता दिख जाए धान सड़कों पर
  देख ली भूमि-पुत्र की ताकत
   रख दिया आसमान सड़कों पर
 रेडियो पर तो बात करते हैं  
दीजिए कुछ बयान सड़कों पर।

✍️ सतीश अग्रहरि

©Satish agrahari
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