Vivek Kumar shukla

Vivek Kumar shukla

मत पूछ इस पंछी से की कहाँ जाना है, पंख पसार कर उड़ चले है उन्मुक्त गगन में, जहां दिन ढ़ल जाए बस वहीं ठिकाना है, कल आज और कल की फ़िकर क्यों हो हमे, जब अपनी खिदमत करता सारा ज़माना है ।

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