KaviRaj Gupta

KaviRaj Gupta

भावनाएँ कागज पे उतारता हूँ, कलम प्यार की चलाता हूँ बैर ना रखु कभी किसी से ऐसी मेरी छवी रहने दो राज कहती हैं दुनिया एक छोटा सा कवि हु मुझे कवि रहने दो

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