जिस्म तन्हा है, रूह आकेली है
आंखे नम है ,धड़कने सुखी है
दिल में शोर है, कानों में शान्ति है
हांथो में कंगन है, पांव में बेड़ी है
बाहर सेवरा है , अन्दर घना अंधेरा है
भला ज़िंदगी खेलती ये कैसी आंखमिचौली है।
कुछ वादे बराबरी के
तुमने कुछ वादे किए थे ,
आज उन्हे भी याद कर लो ना
कभी मैं देर से जागु
तो चाय तुम भी बना दो ना
कभी मैं रोटी बनाऊ
तो सब्जी तुम भी धो दो ना
कभी जल्दी काम पर जाऊ
तो घर को थोड़ा तुम भी सवार दो ना
कभी घर वाले अपमान करे
तो मेरे सम्मान मे तुम भी कुछ कहो ना
कभी मैं गम मै रहु
तो मेरे चहरे पर हल्की सी मुस्कान लाओ ना
कभी गुमसुम रात बिते
तो कुछ बाते भी कर लो ना
कहा था साथ रिश्ते निभाएंगे
तो मुझे अपने बराबर कर दो ना ।
आज फिर से मुलाकात हुई उनसे
जनाब का आपना ही सबाब था
तिखी निगाहो का रुबाब था ।
धोती - कुर्ता मे क्या कहर बरसा गऐ थे
हम तो अपन दिल बस वही हार गए थे ।
नशीली निगाहे
और गुलाबी होठो के संग तो
देशी अवतार में
प्रदेशी शराब लगा रहे थे ।
प्रदेशी बाबू देशी दंग में ढल रहे थे
लगता है हमारे इश्क के रंग में रंग रहे थे ।
फिर हमने भी उनकी तारीफो के पुल बांध दिये
और वो भी थोड़ा मुस्काये ,
और घबराये वहा से चल दिए ।
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