इतना काला आदमी तो चमार ही हो सकता है।
हम सब की अब आदत सी बन गयी है हर रोज़ किसी न किसी को उसके रंग रूप, पहनावे से उसे जज करना, हर किसी ने अपने परिवार से देखा और सिखा है कि जब भी कोई शेड्यूल ट्राइब जनजाति से आए , तो उसको पुरानी सी ग्लास, या कप में चाय देते हैं..
जब मैं और एक मित्र हमलोगों के ही एक मयूचुअल फ्रेंड के घर पर गए थे। मित्र ने मुझे तो एक बढ़िया ग्लास में चाय दी, जबकि मेरे साथी दोस्त को एक गंदी सी ग्लास में।
दरअसल, कभी जातिवाद का सामना हुआ नहीं था, इसलिए इस किस्म के भेदभाव का अदाज़ा नहीं था मुझे। चाय पीने के बाद हमलोग वहां से घर की ओर निकल गए लेकिन गंदी ग्लास में चाय वाली बात मुझे लगातार परेशान कर रही थी।
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