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I like to write poetries so much..... I 'm goldmedlist of the maharaja sayajirao university Vadodara
नव-भारत राजनीति चौंगे से चिपके धरने पे बैंठे किसान तो कहीं पटरी पे पसरे माँग रहे आरक्षण दान इक्कीसवीं वीं सदी में भी पैरों में पडी बेड़ियां क्या कुछ नहीं कर सकती हैं बेटीयां धर्म के नाम पर लड़-कट मरो तुम क्या यही कह गए राम रहीम ? कहां तुम ईश्वर-अल्लाह को ढूँढ रहे? वो हममे-तुममे तो बस रहे चाँद तक तो पहुँच चुके पर सोच अभी भी गिरी पडी है बरसो बाद आज सवेरा आया जब तब क्यो घर में छीप बैठे हैं हम? अभिजात्य -अवर की खाई मिट रही होगें हम -तुम एक समान जिसमें ना हो कोई आंदोलन -आरक्षण ना ही हो झगड़ा हिंदू -मुस्लिम,सिखों में । आओं यह नव -भारत से अब न्याया करे हम -तुम मिलकर आओं यह नव-भारत को मिलकर और नवीन बनाए हम-तुम। - प्रीति चौहान ©Preeti Chauhan
Preeti Chauhan
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कल तक इन नन्हें नन्हें पैरों में आज पापा की चप्पल भी आने लगी भईया तुम इतने बड़े कब हो गये। छोटी छोटी चीजों पर आज भी लडते रहते और बडे बडे गिफ्ट आए दिन लाया करते भईया तुम इतने बड़े कब हो गये। खुद भले ही डाँट ले पर मजाल किसी की जो कोई आंख उठाकर भी देख ले भईया तुम इतने बड़े कब हो गये। हजारों दर्द सहते पर कुछ न कभी कहते मुस्कुराते चेहरे पर दर्द की सिक्सत ना झलकती भईया तुम इतने बड़े कब हो गये। कल ही तो हम साथ खेला करते थे कभी चोकलेट तो कभी मैगी के लिए लडा़ करते भईया तुम इतने बड़े कब हो गये। अपनी मस्ती में सब भूल जाने वाले आज पापा की दवाई याद से लाया करते भईया तुम इतने बड़े कब हो गये। कल तक रीमोट कार के लिए जिद्द करने वाले आज मेरी पसंद नापसंद का ख्याल रखने लगे भईया तुम इतने बड़े कब हो गये। - प्रीति चौहान ©Preeti Chauhan
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आधुनिकता छोटे कपड़ों से नहीं, बडे विचारों से आती हैं। ©Preeti Chauhan
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एहसास जमीन से उठाकर गोद में बैठाया तुमने हर बार उछाल मारती बार-२ बचाया तुमने । कभी अजनबी तो कभी अपनो सी बन अपने होने का एहसास कराया तुमने । हर बार कोशिशें की गिराने की पर कभी झुकने तक ना दिया तुमने । कभी रोशनी तो कभी चांदनी रात में सही - गलत का पाठ पढा़या तुमने । ©Preeti Chauhan
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औकात से बडे सपने समझदार लोग नहीं देखते। ©Preeti Chauhan
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