Aanand

Aanand Lives in Patna, Bihar, India

@samandar_ke_pyaase

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कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ , कि खुदखुशी कर लूँ । और बाँट दूँ सारी तकलीफ़ें , उलझने इस जहाँ को । लेकिन कैसे ये सवाल रोज़ सताता है ? फंदे के साथ एक मसला है अपना, कद जो छोटा है । चाकू या छुरिया अपने किसी काम की नही क्योंकि , पहले भी ये कुछ बिगाड़ नही पायीं है मेरा । डूबना एक अच्छा उपाय था लेक़िन , कमबख्त हमने बचपन मे तैरना सिख लिया । ऐसे न जाने कितने तरीक़े रोज़ आकर चले जाते है ख़यालो से । लेकिन इस मर्ज़ की कोई गुंजाइश नही दिखती । कभी कभी मैं सोचता हूँ आसमान के तख्ती पर लिख दूँ, अपने मौत का फरमान, लेकिन बादल उसे मिटा देता है । कभी मैं सोचता हूँ पहाड़ के ऊंचे टीले से छलांग लगा दूँ , लेकिन वो भी मेरे करीब नही । हाँ , अब मैं रोज़ थोड़ा थोड़ा मरता हूँ अपने ज़हन में , और हर रोज़ खुद के लाश को इक्कठा करके , एक ऊँचा टीला बना रहा हूँ । किसी दिन खुद के लाशों से बने टीले से कूद के देखूँगा , जान जाती है या नही । ©Aanand

#कविता #EveningBlush  कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ ,
कि खुदखुशी कर लूँ ।
और बाँट दूँ सारी तकलीफ़ें , उलझने इस जहाँ को ।
लेकिन कैसे ये सवाल रोज़ सताता है ?
फंदे के साथ एक मसला है अपना,
कद जो छोटा है ।
चाकू या छुरिया अपने किसी काम की नही क्योंकि ,
पहले भी ये कुछ बिगाड़ नही पायीं है मेरा ।
डूबना एक अच्छा उपाय था लेक़िन ,
कमबख्त हमने बचपन मे तैरना सिख लिया ।
ऐसे न जाने कितने तरीक़े रोज़ आकर चले जाते है ख़यालो से ।
लेकिन इस मर्ज़ की कोई गुंजाइश नही दिखती ।
कभी कभी मैं सोचता हूँ आसमान के तख्ती पर लिख दूँ,
अपने मौत का फरमान, 
लेकिन बादल उसे मिटा देता है ।
कभी मैं सोचता हूँ पहाड़ के ऊंचे टीले से छलांग लगा दूँ ,
लेकिन वो भी मेरे करीब नही ।
हाँ , अब मैं रोज़ थोड़ा थोड़ा मरता हूँ अपने ज़हन में ,
और हर रोज़ खुद के लाश को इक्कठा करके ,
एक ऊँचा टीला बना रहा हूँ ।
किसी दिन खुद के लाशों से बने टीले से कूद के देखूँगा ,
जान जाती है या नही ।

©Aanand

कभी कभी यूँ ही । #EveningBlush

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तेरी याद.... टूट कर जिंदगी से बिखर जाऊँगा , तेरी यादों में गुजरे सफर के लिए । तुझ में खो जाऊँ या तुझमे मिल जाऊं मैं, या तो सो जाऊँगा उम्र भर के लिए । वो जो बातें हुईं आधी-आधी सही , हमने हर मतले को पूरे दिल से सुना । राहें तेरी अलग - हरकतें भी अलग , फिर भी हसरत को दिल के सहारे बुना । कब से बैठा हूँ मैं तेरे दीदार को , कह दो क्या है हुकम मुंतज़ार के लिए ।

#संगीत  तेरी याद....      


टूट कर जिंदगी से बिखर जाऊँगा ,
तेरी यादों में गुजरे सफर के लिए ।
तुझ में खो जाऊँ या तुझमे मिल जाऊं मैं,
या तो सो जाऊँगा उम्र भर के लिए ।

वो जो बातें हुईं आधी-आधी सही ,
हमने हर मतले को पूरे दिल से सुना ।
राहें तेरी अलग - हरकतें भी अलग ,
फिर भी हसरत को दिल के सहारे बुना ।
कब से बैठा हूँ मैं तेरे दीदार को ,
कह दो क्या है हुकम मुंतज़ार के लिए ।

तेरी याद ।

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ख़्वाहिश और जरुरत क्या चाहता हूँ जिंदगी मैं तुझसे ? शायद....बस इतना की होठो पर हसीं , दिल मे मोह्हबत ज़माने से इज्ज़त ,लोगो से सोहबत । उम्मीद की आस , बरसो की प्यास तेरे मेरे दरमियां अटूट एक विश्वास । शायद ... जब आग लगेगी इश्क़ में तो , हम एक दूजे के सहारे हो । उस सागर का हम रूप लिए , दोनों के अलग किनारे हो । क्या चाहता हूँ जिंदगी मैं तुझसे ? शायद...

 ख़्वाहिश और जरुरत 


क्या चाहता हूँ जिंदगी मैं तुझसे ?
शायद....बस इतना की
होठो पर हसीं , दिल मे मोह्हबत 
ज़माने से इज्ज़त ,लोगो से सोहबत ।
उम्मीद की आस , बरसो की प्यास 
तेरे मेरे दरमियां अटूट एक विश्वास ।
शायद ...
जब आग लगेगी इश्क़ में तो ,
हम एक दूजे के सहारे हो ।
उस सागर का हम रूप लिए ,
दोनों के अलग किनारे हो ।
क्या चाहता हूँ जिंदगी मैं तुझसे ?
शायद...

# क्या चाहता हूँ जिंदगी मैं तुझसे

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