कवि: अंजान

कवि: अंजान Lives in Ankleshwar, Gujarat, India

कवि,शायर,गीतकार

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White खामोश जादू तुम्हारा ऐसा दिलो में चाहत जगा रही हैं कि हुश्न के वादियों में ऐसा गजब करें दूसरा नही हैं। तुम्हारा रूप जैसे खिलता कमल हैं प्यासे धरा से जैसे मिलता बादल हैं फूलों की खुश्बू जैसे वदन से सावन का पानी भीगा रही हैं खामोश जादू तुम्हारा ऐसा दिलों में चाहत जगा रही हैं। ©कवि: अंजान

 White खामोश जादू तुम्हारा ऐसा
दिलो में चाहत जगा रही हैं
कि हुश्न के वादियों में ऐसा
गजब करें दूसरा नही हैं।

तुम्हारा रूप जैसे खिलता कमल हैं
प्यासे धरा से जैसे मिलता बादल हैं
फूलों की खुश्बू जैसे वदन से 
सावन का पानी भीगा रही हैं
खामोश जादू तुम्हारा ऐसा
दिलों में चाहत जगा रही हैं।

©कवि: अंजान

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17 Love

 White क्या कहना हैं एक शायर के
बेवफा प्रेम अंतर्मन के
तुम वफ़ा कभी न कर पाई
बेवफ़ा कभी मैं हो न पाया

तुम दिखलाती हो राह मुझें
मुझको अपने ही मंजिल की
मैं खड़ा बीच मंजधार
किनारे हो न पाया।

©कवि: अंजान

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 White हो आरजू जो मिलने की तो परमेश्वर भी मिल ही जाते है
जानें वाले तो चले गए दिल तोड़कर मगर वो याद बहुत आते हैं।

©कवि: अंजान

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 White बहुत बेकरार होकर भी न भुला पाया
हे ईश्वर मैंने  वफ़ा की बड़ी सजा पाई हैं
जब होश में था तब सम्भल न पाया
बेहोशी में ये किसने शराब पिलाई हैं?

©कवि: अंजान

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 White याद हैं वो बचपन का जमाना
गाँव का आँगन
बाग-बगीचे 
और आम।

©कवि: अंजान

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#ईश्वर #शायरी #Buddha_purnima #BudhhaPurnima #गुरु  White जब तक गुरु मिले न साकार
तब तक तेरे मन को मिले न आकार
यदि गुरु मिले न पूर्ण
तब तक ज्ञान हैं अपूर्ण

©कवि: अंजान
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