SATYA PRAKASH

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EDITOR- SAMPADA NEWS GORAKHPUR- U. P.

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थक कर बैठा हूँ, हार कर नही । सिर्फ बाजी हाथ से निकली है, ज़िन्दगी तो नही ।। ©SATYA PRAKASH

#Satya  थक कर बैठा हूँ, हार कर नही ।
सिर्फ बाजी हाथ से निकली है, ज़िन्दगी तो नही ।।

©SATYA PRAKASH

#Satya

55 Love

शास्त्रार्थ में क्रोध आने का अर्थ है – हार मान लेना . जैसा कि सभी जानते हैं कि आद्य शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार ऐतिहासिक शास्त्रार्थ चला था. उस शास्त्रार्थ में निर्णायिका थीं – मंडन मिश्र की धर्मपत्नी "देवी भारती". हार-जीत का निर्णय होना बाक़ी था, लेकिन शास्त्रार्थ के अंतिम दौर में "देवी भारती" को अचानक किसी आवश्यक काम से जाना पड़ गया. जाने से पहले देवी भारती ने दोनों विद्वानों के गले में फूलों की एक एक माला डालते हुए कहा, ये दोनों मालाएं मेरी अनुपस्थिति में आपकी हार और जीत का फैसला करेंगी. लोगों को यह बात विचित्र लगी परन्तु आद्य शंकराचार्य ने मुस्कराते हुए सर झुकाकर उनकी बात को स्वीकार कर लिया. देवी भारती वहाँ से चली गईं और शास्त्रार्थ की प्रक्रिया चलती रही. जब देवी भारती वापस लौटीं तो शास्त्रार्थ सुन रहे अन्य विद्वान उनको बताने के लिए आगे बढ़े कि उनकी अनुपस्थिति में क्या क्या चर्चा हुई. लेकिन देवी भारती ने उन्हें रोक दिया और खुद ही अपनी निर्णायक नजरों से आद्य शंकराचार्य और मंडन मिश्र को बारी-बारी से देखा... और आद्य शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में विजयी घोषित कर दिया. वैसे वहाँ उपस्थित ज्यादातर दर्शक भी यही मान रहे थे लेकिन उनको भी आश्चर्य था कि बिना शास्त्रार्थ को सुने देवी भारती ने एकदम सही निर्णय कैसे सुना दिया. एक विद्वान ने देवी भारती से अत्यंत नम्रतापूर्वक जिज्ञासा की – हे देवी! आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गई थीं, फिर वापस लौटते ही आपने बिना किसी से पूछे ऐसा निर्णय कैसे दे दिया? देवी भारती ने मुस्कुराकर जवाब दिया – जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है और उसे अपनी हार की झलक दिखने लगती है तो वह क्रोधित होने लगता है. मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध की ताप से सूख चुकी है, जबकि शंकराचार्य जी की माला के फूल अभी भी पहले की भाँति ताजे हैं, इससे पता चलता है कि मेरे पति क्रोधित हो गए थे. विदुषी देवी भारती की यह बात सुनकर वहाँ मौजूद सभी दर्शक उनकी जय जयकार करने लगे. आज पहले की तरह शास्त्रार्थ नहीं होते हैं लेकिन सोशल मीडिया ने दूर दूर रहने वालों को शास्त्रार्थ का माध्यम उपलब्ध करा दिया. सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा (शास्त्रार्थ) का परिणाम भी देवी भारती के सिद्धांत से ज्ञात किया जा सकता है. अगर किसी बिषय पर कोई चर्चा हो रही हो और कोई व्यक्ति नाराज होकर तर्क और तथ्य देने के बजाय अभद्र भाषा बोलने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि वह व्यक्ति अपनी हार स्वीकार कर चुका है. अज्ञानता के कारण अहंकार होता है और अहंकार के टूटने से क्रोध आता है जबकि विद्वान् व्यक्ति हमेशा तर्क और तथ्य की बात करता है और विनम्र बना रहता है. ©SATYA PRAKASH

#जानकारी #Satya  शास्त्रार्थ में क्रोध आने का अर्थ है – हार मान लेना
.
जैसा कि सभी जानते हैं कि
आद्य शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार ऐतिहासिक शास्त्रार्थ चला था.
उस शास्त्रार्थ में निर्णायिका थीं – मंडन मिश्र की धर्मपत्नी "देवी भारती".

हार-जीत का निर्णय होना
बाक़ी था, लेकिन शास्त्रार्थ के अंतिम दौर में "देवी भारती" को अचानक किसी आवश्यक काम से जाना पड़ गया.

जाने से पहले देवी भारती ने दोनों विद्वानों के गले में फूलों की एक एक माला डालते हुए कहा, ये दोनों मालाएं मेरी अनुपस्थिति में
आपकी हार और जीत का फैसला करेंगी.
लोगों को यह बात विचित्र लगी परन्तु आद्य शंकराचार्य ने मुस्कराते हुए सर झुकाकर उनकी बात को स्वीकार कर लिया.
देवी भारती वहाँ से चली गईं और शास्त्रार्थ की प्रक्रिया चलती रही.

जब देवी भारती वापस लौटीं तो शास्त्रार्थ सुन रहे अन्य विद्वान उनको बताने के लिए आगे बढ़े कि उनकी अनुपस्थिति में क्या क्या चर्चा हुई.
लेकिन देवी भारती ने उन्हें
रोक दिया और खुद ही अपनी निर्णायक नजरों से आद्य शंकराचार्य और मंडन मिश्र को बारी-बारी से देखा...
और आद्य शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में विजयी घोषित
कर दिया.

वैसे वहाँ उपस्थित ज्यादातर दर्शक भी यही मान रहे थे लेकिन उनको भी आश्चर्य था कि बिना शास्त्रार्थ को सुने देवी भारती ने एकदम सही निर्णय कैसे सुना दिया.

एक विद्वान ने देवी भारती से अत्यंत नम्रतापूर्वक जिज्ञासा की – हे देवी! आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गई थीं, फिर वापस लौटते ही आपने बिना किसी से पूछे ऐसा निर्णय
कैसे दे दिया?

देवी भारती ने मुस्कुराकर जवाब दिया – जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है और उसे अपनी हार की झलक दिखने लगती है तो वह क्रोधित होने लगता है.
मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध की ताप से सूख चुकी है, जबकि शंकराचार्य जी की माला के फूल अभी भी पहले की भाँति ताजे हैं,
इससे पता चलता है कि मेरे पति क्रोधित हो गए थे.

विदुषी देवी भारती की यह बात सुनकर वहाँ मौजूद सभी दर्शक उनकी जय जयकार करने लगे.

आज पहले की तरह शास्त्रार्थ नहीं होते हैं लेकिन सोशल मीडिया ने दूर दूर रहने वालों को शास्त्रार्थ का माध्यम उपलब्ध करा दिया. सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा (शास्त्रार्थ) का परिणाम भी देवी भारती के सिद्धांत से ज्ञात किया जा सकता है.

अगर किसी बिषय पर कोई चर्चा हो रही हो और कोई व्यक्ति नाराज होकर तर्क और तथ्य देने के बजाय अभद्र भाषा बोलने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि वह
व्यक्ति अपनी हार स्वीकार कर चुका है.
अज्ञानता के कारण अहंकार होता है और अहंकार के टूटने से क्रोध आता है जबकि विद्वान् व्यक्ति हमेशा तर्क और तथ्य की बात करता है और विनम्र बना रहता है.

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#Satya

42 Love

धर्मो रक्षति रक्षितः ©SATYA PRAKASH

#पौराणिककथा  धर्मो रक्षति रक्षितः

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धर्मो रक्षति रक्षितः

43 Love

ह्रदय बिचारति बारहिं बारा, कवन भाँति लंकापति मारा। अति सुकुमार जुगल मम बारे, निशाचर सुभट महाबल भारे।। अर्थ:  जब श्रीरामचंद्रजी रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटते हैं, तब माता कौशल्या अपने हृदय में बार-बार यह विचार कर रही हैं कि इन्होंने रावण को कैसे मारा होगा। मेरे दोनों बालक तो अत्यंत सुकुमार हैं और राक्षस योद्धा तो महाबलवान थे। इस सबके अतिरिक्त लक्ष्मण और सीता सहित प्रभु राम जी को देखकर मन ही मन परमानंद में मग्न हो रही हैं। ©SATYA PRAKASH

#NojotoRamleela  ह्रदय बिचारति बारहिं बारा,
कवन भाँति लंकापति मारा।
अति सुकुमार जुगल मम बारे,
निशाचर सुभट महाबल भारे।।


अर्थ:  जब श्रीरामचंद्रजी रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटते हैं, तब माता कौशल्या अपने हृदय में बार-बार यह विचार कर रही हैं कि इन्होंने रावण को कैसे मारा होगा। मेरे दोनों बालक तो अत्यंत सुकुमार हैं और राक्षस योद्धा तो महाबलवान थे। इस सबके अतिरिक्त लक्ष्मण और सीता सहित प्रभु राम जी को देखकर मन ही मन परमानंद में मग्न हो रही हैं।

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माँ #NojotoRamleela

51 Love

अनुचित उचित काज कछु होई, समुझि करिय भल कह सब कोई। सहसा करि पाछे पछिताहीं, कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।   अर्थ: किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह जानकर करना चाहिए, उसी को सभी लोग भला कहते हैं। जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं,  उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं कहता। ©SATYA PRAKASH

#crimestory  अनुचित उचित काज कछु होई,
समुझि करिय भल कह सब कोई।
सहसा करि पाछे पछिताहीं,
कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं।।  


अर्थ: किसी भी कार्य का परिणाम उचित होगा या अनुचित, यह जानकर करना चाहिए, उसी को सभी लोग भला कहते हैं। जो बिना विचारे काम करते हैं वे बाद में पछताते हैं,  उनको वेद और विद्वान कोई भी बुद्धिमान नहीं कहता।

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#crimestory

42 Love

करमनास जल सुरसरि परई, तेहि काे कहहु शीश नहिं धरई। उलटा नाम जपत जग जाना, बालमीकि भये ब्रह्मसमाना।।  अर्थ: कर्मनास का जल (अशुद्ध से अशुद्ध जल भी) यदि गंगा में पड़ जाए तो कहो उसे कौन नहीं सिर पर रखता है? अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार को विदित है की उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए। ©SATYA PRAKASH

#NojotoRamleela  करमनास जल सुरसरि परई,
तेहि काे कहहु शीश नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना,
बालमीकि भये ब्रह्मसमाना।। 


अर्थ: कर्मनास का जल (अशुद्ध से अशुद्ध जल भी) यदि गंगा में पड़ जाए तो कहो उसे कौन नहीं सिर पर रखता है? अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार को विदित है की उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए।

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जय श्री राम 🙏🕉️🚩 #NojotoRamleela

39 Love

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