गिरिराज

गिरिराज

कोमल भावुक और वेदना विरह के कारुणय से भरा हृदय जो जल्दी ही विश्वास कर लेने और दुसरो के दुख और सुख में कूद हँसता और कई कई रातो दुसरो के दुख के कारण रोता है और जागता है उस विशाल कमरे में अकेले , जिसे घड़ी की टिक टिक भी उन रातो सबसे अच्छी दोस्त लगती है....ये ही हु बस मैं

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