Ankit Dubey

Ankit Dubey Lives in New Delhi, Delhi, India

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रिश्तों को पोशाक समझने वालों, एक दिन पोशाक नही होगा बदन पे। पोशाक भी साले आज कल इतराने लगे, रिश्तों को नई पोशाक दिखाकर जलाने लगे। वो रिश्ते जो कभी रूह से हुआ करते थे, वो भी आज नई पोशाक की तलाश में मंडराने लगे।। रिश्ते जो एक पोशाक को रूह से लगाए रखते थे, कम्बख़्त वो भी नई पोशाक के लिए पैसे बचाने लगे। ये नई पोशाकें न जाने क्यों इतना इतराती है.. ये भी तो कुछ दिन बाद पुराने होकर उतारे जाने है। आखिर में ये सब बिन पोशाक के नज़र आते है, रिश्तों की दुनिया में टूटे और नंगे बदन रह जाते है। रिश्ते जो आज भी रूह से निभाए जाते है,बमुश्किल पाये जाते है, लेकिन वो ही तो हमेशा खुश नज़र आते है।। रचना सम्पादन (विजेंद्र प्रताप) (अंकित दुबे)

#रिश्तों_की_पोशाक #Nojoto  रिश्तों को पोशाक समझने वालों, एक दिन पोशाक नही होगा बदन पे।
पोशाक भी साले आज कल इतराने लगे,
रिश्तों को नई पोशाक दिखाकर जलाने लगे।
वो रिश्ते जो कभी रूह से हुआ करते थे,
वो भी आज नई पोशाक की तलाश में मंडराने लगे।।
रिश्ते जो एक पोशाक को रूह से लगाए रखते थे,
कम्बख़्त वो भी नई पोशाक के लिए पैसे बचाने लगे।
ये नई पोशाकें न जाने क्यों इतना इतराती है..
ये भी तो कुछ दिन बाद पुराने होकर उतारे जाने है।
आखिर में ये सब बिन पोशाक के नज़र आते है,
रिश्तों की दुनिया में टूटे और नंगे बदन रह जाते है।
रिश्ते जो आज भी रूह से निभाए जाते है,बमुश्किल पाये जाते है,
लेकिन वो ही तो हमेशा खुश नज़र आते है।।
                  
रचना                            सम्पादन
(विजेंद्र प्रताप)                (अंकित दुबे)

चूल्हे से उठता धुआं साथ में महक रोटियों की, वो बचपन का ज़माना, शाम को खेल के आना। वो माँ के हाथ खाना,बड़े ही चाव से खाना , आती है याद आज भी वो सबक रोटियों की।।

 चूल्हे से उठता धुआं साथ में महक रोटियों की,
वो बचपन का ज़माना, शाम को खेल के आना।
वो माँ के हाथ खाना,बड़े ही चाव से खाना ,
आती है याद आज भी वो सबक रोटियों की।।

चूल्हे से उठता धुआं साथ में महक रोटियों की, वो बचपन का ज़माना, शाम को खेल के आना। वो माँ के हाथ खाना,बड़े ही चाव से खाना , आती है याद आज भी वो सबक रोटियों की।।

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चंद लकीरें क्या बढ़ाती दूरियां हमारे दरम्यां ये सरहदों की दीवार न होती तो हम एक होते..

#सरहद #kavishala #Nojoto  चंद लकीरें क्या बढ़ाती दूरियां हमारे दरम्यां
ये सरहदों की दीवार न होती तो हम एक होते..

ख़्वाब चुनें मैंने ऐसे..जहाँ न मंज़िल थी न रास्ते थे कोई। जहाँ सफ़र थी ये ज़िन्दगी और मैं ज़िन्दगी का सफ़रनामा लिख रहा हूँ जैसे।।

#kavishala #safarnama #Nojoto  ख़्वाब चुनें मैंने ऐसे..जहाँ न मंज़िल थी
न रास्ते थे कोई।
जहाँ सफ़र थी ये ज़िन्दगी
और मैं ज़िन्दगी का सफ़रनामा लिख रहा हूँ जैसे।।

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#Nojoto #बस

#बस अभी #Nojoto

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