फर्श से उठा कर आस्माँ तक का सफ़र कराया हैं,
एक बाप ने सन्तान के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगाया हैं,
ज़िक्र नही है उसका कहीं क्युकी प्यार करना तो माँ ने सिखाया हैं,
उसने तो परिवार की खुशी के लिये सालों साल पसीना बहाया हैं,
कड़ी धूप मे भी उसने खुद को मसीन की तरह चलाया हैं,
एक बाप ने सन्तान के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगाया हैं।
आखिर मे मिला क्या हैं उसको की हमारे लिये किया क्या हैं,
उनको खबर कहाँ बाप ने कैसे खून पसीना एक किया तब जाके वो पल पाया हैं।
पिता से हैं जान तेरी जीये जिस सहारे पे तू उसी से वो सास मिली।
©Sumit Upadhyay
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