शब्द की महिमा निराली, शब्द जन आधार भी।
शब्द करता घाव मन में, शब्द से उपचार भी।।
शब्द कोमल फूल भी है, शब्द है तलवार भी।
शब्द सहलाए हृदय को , करता घातक वार भी।।
शब्द मर्यादा की सीमा, शब्द सरिता धार भी।
शब्द लहरों की सुनामी, शब्द ही पतवार भी।।
शब्द प्यासे को दे अमृत, भूखे को आहार भी।
शब्द मीठी चाशनी भी, शब्द तीखा खार भी।
शब्द है रक्षाकवच और, शब्द तेज हथियार भी।
शब्द दिलवाए प्रतिष्ठा, शब्द ही धिक्कार भी।
शब्द बेदी साधना की, शब्द दे आकार भी।
शब्द याचक की व्यथा भी, शब्द ही आभार भी।।
शब्द विष का बाण भी है, शब्द है अवलेह भी।
शब्द तोड़े नेह नाते, शब्द बांधे नेह भी।।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक
©रिपुदमन झा 'पिनाकी'
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