रिपुदमन झा 'पिनाकी'

रिपुदमन झा 'पिनाकी'

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शब्द की महिमा निराली, शब्द जन आधार भी। शब्द करता घाव मन में, शब्द से उपचार भी।। शब्द कोमल फूल भी है, शब्द है तलवार भी। शब्द सहलाए हृदय को , करता घातक वार भी।। शब्द मर्यादा की सीमा, शब्द सरिता धार भी। शब्द लहरों की सुनामी, शब्द ही पतवार भी।। शब्द प्यासे को दे अमृत, भूखे को आहार भी। शब्द मीठी चाशनी भी, शब्द तीखा खार भी। शब्द है रक्षाकवच और, शब्द तेज हथियार भी। शब्द दिलवाए प्रतिष्ठा, शब्द ही धिक्कार भी। शब्द बेदी साधना की, शब्द दे आकार भी। शब्द याचक की व्यथा भी, शब्द ही आभार भी।। शब्द विष‌ का बाण भी है, शब्द है अवलेह भी। शब्द तोड़े नेह नाते, शब्द बांधे नेह भी।। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#कविता #WritersSpecial  शब्द की महिमा निराली, शब्द जन आधार भी।
शब्द करता घाव मन में, शब्द से उपचार भी।।

शब्द कोमल फूल भी है, शब्द है तलवार भी।
शब्द सहलाए हृदय को , करता घातक वार भी।।

शब्द मर्यादा की सीमा, शब्द सरिता धार भी।
शब्द लहरों की सुनामी, शब्द ही पतवार भी।।

शब्द प्यासे को दे अमृत, भूखे को आहार भी।
शब्द मीठी चाशनी भी, शब्द तीखा खार भी।

शब्द है रक्षाकवच और, शब्द तेज हथियार भी।
शब्द दिलवाए प्रतिष्ठा, शब्द ही धिक्कार भी।

शब्द बेदी साधना की, शब्द दे आकार भी।
शब्द याचक की व्यथा भी, शब्द ही आभार भी।।

शब्द विष‌ का बाण भी है, शब्द है अवलेह भी।
शब्द  तोड़े  नेह  नाते, शब्द  बांधे  नेह  भी।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White जो चाहा वो पाया ही नहीं, जो पाया उसकी चाह न थी। काँटे थे दुःख के पग-पग पर, कोई भी सुख की राह न थी। ज़ंजीर रही लाचारी की, बेबस अरमान सताते रहे किस्मत ठोकर ही देती रही, मेरे ग़म की परवाह न थी। जब भी सोचा अब बहुत हुआ, अब दर्द न कोई रुलाएगा जाने कैसे एक दर्द नया, फिर टीस गया और आस रुकी। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखंड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#विचार #sad_quotes  White जो चाहा वो पाया ही नहीं,
 जो पाया उसकी चाह न थी।
काँटे थे दुःख के पग-पग पर,
 कोई भी सुख की राह न थी।
ज़ंजीर रही लाचारी की,
बेबस अरमान सताते रहे
किस्मत ठोकर ही देती रही,
 मेरे ग़म की परवाह न थी।
जब भी सोचा अब बहुत हुआ,
 अब दर्द न कोई रुलाएगा
जाने कैसे एक दर्द नया,
 फिर टीस गया और आस रुकी।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखंड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी'

#sad_quotes

13 Love

White माँ देती है जन्म हमें और अपना दूध पिलाती है। आँचल की छाँव में रखती ममता और नेह लुटाती है। ख़ुद जागती है वो रातों को ताकि हम चैन से पाएं- लोरी गा कर थपकी देकर ममतामयी हमें सुलाती है। जब सीखते हम चलना तब माँ ही ये ऊँगली धरती है। चलते - चलते जब गिरते हैं ताली से हिम्मत भरती है। करती है प्रोत्साहित हमको वो अपनी बाहें फैला कर- हर एक कदम पे लाड़ अपना ये माँ न्यौछावर करती है। पहले तो ग़लती होने पर माँ ख़ुद ही डांट लगाती है। लेकिन जब पापा डांटें तो पापा से माँ लड़ जाती है। बनकर है ढाल खड़ी होती अपने बच्चों के आगे माँ- अपनी ममता के तरकश से रक्षा के तीर चलाती है। हमको भर पेट खिला देती और माँ ख़ुद भूखे सोती है। बेफिक्र रहें हम इस ख़ातिर ख़ुद को फ़िक्रों में डुबोती है। भरती है दुआओं से दामन लेती है बलाएँ सारी माँ- हां सचमुच माँ इस धरती पर भगवान की मूरत होती है। सब हाल पता होता माँ को माँ से कुछ छुपना मुश्किल है। माँ की ममता बिन दुनिया में जीना ख़ुश रहना मुश्किल है। माँ करती है उपकार बहुत पर चाह नहीं रखती कोई- लें सात जनम फिर भी माँ का हर कर्ज़ चुकाना मुश्किल है। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki

#कविता #mothers_day  White 


माँ  देती  है  जन्म  हमें  और  अपना  दूध  पिलाती  है।
आँचल  की छाँव में रखती  ममता और नेह लुटाती  है।
ख़ुद  जागती  है  वो  रातों  को  ताकि हम चैन से पाएं-
लोरी  गा  कर थपकी देकर  ममतामयी हमें सुलाती है।

जब सीखते हम चलना तब माँ ही ये ऊँगली धरती है।
चलते - चलते जब गिरते हैं ताली से हिम्मत भरती है।
करती है प्रोत्साहित हमको वो अपनी बाहें फैला कर-
हर एक कदम पे लाड़ अपना ये माँ न्यौछावर करती है।

पहले तो ग़लती होने पर माँ ख़ुद ही डांट लगाती है।
लेकिन जब पापा डांटें तो पापा से माँ लड़ जाती है।
बनकर है ढाल खड़ी होती अपने बच्चों के आगे माँ-
अपनी ममता के तरकश से रक्षा के तीर चलाती है।

हमको भर पेट खिला देती और माँ ख़ुद भूखे सोती है।
बेफिक्र रहें हम इस ख़ातिर ख़ुद को फ़िक्रों में डुबोती है।
भरती है दुआओं से दामन लेती है बलाएँ सारी माँ-
हां सचमुच माँ इस धरती पर भगवान की मूरत होती है।

सब हाल पता होता माँ को माँ से कुछ छुपना मुश्किल है।
माँ की ममता बिन दुनिया में जीना ख़ुश रहना मुश्किल है।
माँ करती है उपकार बहुत पर चाह नहीं रखती कोई-
लें सात जनम फिर भी माँ का हर कर्ज़ चुकाना मुश्किल है।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki

#mothers_day

11 Love

अजी नौकरी का भी अपना मज़ा है। जहां अपनी चलती नही कुछ रज़ा है। हुकम हाकिमों का बजाते रहो बस- यहांँ ज़िन्दगी हर घड़ी इक क़ज़ा है। दवाबों तनावों की बोझिल फ़ज़ा है। बिना पाप के भोगता नित सज़ा है। सवालों जवाबों से परहेज़ कर चल- यहाँ कोई सुनता नहीं इल्तिज़ा है। रहो जब तलक भी किसी नौकरी में। न कुछ और सोचो कभी ज़िन्दगी में। भुला दो सभी रिश्ते नाते जरूरत- लगा दो अरे आग अपनी ख़ुशी में। नियम हाकिमों के नए रोज बनते। कि साहब यहां ख़ुद ही उलझन में रहते। करें गलतियांँ हम तो सुनते हैं बातें - मगर इनकी ग़लती मुनासिब ही रहते। करो हर घड़ी सबकी तीमारदारी। जताए बिना अपनी कोई लचारी। न छुट्टी, न अर्जी, न आराम कुछ दिन- लगाए रखो नौकरी की बिमारी। ज़हन में ख़याल इसका ही जा-ब-ज़ा हो। अमल हुक़म हो चाहे बेजा बजा हो। चलेगी नहीं हुक्म उदूली एक भी - कि इसमें तुम्हारी न बेशक रज़ा हो। पड़ो चाहे बीमार या मर ही जाओ। मगर नौकरी अपनी पहले बचाओ। न जो कर सको तो अभी बात सुन लो- उठाओ ये झोला तुरत घर को जाओ। कभी कुछ न सोचो सिवा नौकरी के। नहीं तुम हो कुछ भी बिना नौकरी के। चलाता है घर बार यह नौकरी ही - करो रात - दिन हक़ अदा नौकरी के। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki

#नौकरी #विचार  अजी नौकरी का भी  अपना मज़ा है।
जहां अपनी चलती नही कुछ रज़ा है।
हुकम  हाकिमों  का  बजाते रहो बस-
यहांँ  ज़िन्दगी  हर घड़ी  इक क़ज़ा है।

दवाबों तनावों  की बोझिल फ़ज़ा है।
बिना  पाप  के  भोगता  नित सज़ा है।
सवालों जवाबों से परहेज़ कर चल-
यहाँ  कोई  सुनता  नहीं  इल्तिज़ा  है।

रहो जब तलक भी किसी नौकरी में।
न कुछ और सोचो कभी ज़िन्दगी में।
भुला  दो  सभी  रिश्ते नाते  जरूरत-
लगा  दो  अरे  आग अपनी ख़ुशी में।

नियम  हाकिमों  के  नए  रोज  बनते।
कि साहब यहां ख़ुद ही उलझन में रहते।
करें गलतियांँ  हम  तो  सुनते  हैं  बातें -
मगर इनकी ग़लती मुनासिब ही रहते।

करो  हर  घड़ी  सबकी  तीमारदारी।
जताए  बिना  अपनी  कोई  लचारी।
न छुट्टी, न अर्जी, न आराम कुछ दिन-
लगाए  रखो  नौकरी  की   बिमारी।

ज़हन में ख़याल इसका ही जा-ब-ज़ा हो।
अमल  हुक़म  हो  चाहे  बेजा  बजा  हो।
चलेगी  नहीं  हुक्म  उदूली  एक  भी -
कि  इसमें  तुम्हारी  न  बेशक  रज़ा  हो।

पड़ो चाहे बीमार या मर ही जाओ।
मगर नौकरी अपनी पहले बचाओ।
न जो कर सको तो अभी बात सुन लो-
उठाओ ये झोला तुरत घर को जाओ।

कभी  कुछ न सोचो सिवा नौकरी के।
नहीं तुम हो कुछ भी बिना नौकरी के।
चलाता  है  घर  बार  यह  नौकरी  ही -
करो रात - दिन हक़ अदा नौकरी के।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki

White लोकतंत्र के महापर्व पर खुले हृदय से दान करें। देश को शक्तिशाली बनाएं आओ हम मतदान करें।। करना है मतदान जरूरी आम आदमी का अधिकार। कर मतदान चुनाव में अबके बनें नागरिक जिम्मेदार।। सोचें समझें सही से परखें फिर अपना मतदान करें। कुशल प्रशासक के जरिये नवभारत का निर्माण करें।। पड़ें कभी न किसी लोभ में सही गलत का ध्यान रखें। अपने मत अधिकार का हरदम कर्म वचन से मान रखें।। संवैधानिक अधिकारों से जन जन को आहूत करें। जाति धर्म से ऊपर उठकर भारत को मजबूत करें।। रिपुदमन झा "पिनाकी" धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki

#चुनाव #election2024  White लोकतंत्र  के  महापर्व  पर  खुले  हृदय से दान करें।
देश को शक्तिशाली बनाएं आओ हम मतदान करें।।

करना है मतदान जरूरी आम आदमी का अधिकार।
कर मतदान चुनाव में अबके बनें नागरिक जिम्मेदार।।

सोचें समझें सही से परखें फिर अपना मतदान करें।
कुशल प्रशासक के जरिये नवभारत का निर्माण करें।।

पड़ें कभी न किसी लोभ में सही गलत का ध्यान रखें।
अपने मत अधिकार का हरदम कर्म वचन से मान रखें।।

संवैधानिक अधिकारों से जन जन को आहूत करें।
जाति धर्म से ऊपर उठकर भारत को मजबूत करें।।

रिपुदमन झा "पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki

#election2024

10 Love

रघुवर जय जय जय श्री राम हर नैया को पार लगाए राम तुम्हारा नाम रघुवर जय जय जय श्री राम।। जगत पिता तुम सबके स्वामी हम बालक मूरख खलकामी सबके सब गुण दोष तू जाने तुम जगपालक अंतर्यामी तेरा तुझको सौंप दूं अपने भले बुरे सब काम। रघुवर जय जय जय श्री राम।। रघुकुल भूषण दशरथ नंदन कौशल्या सुत हे जग वंदन आस निराश में प्राण फंसे हैं दूर करो दु:ख हे दुख भंजन। भटक रहा हूँ भव सागर में दो चरणों में धाम। रघुवर जय जय जय श्री राम।। करुणा सागर पालनहारे सब दुखिया के तुम ही सहारे जिसका कोई नहीं जगत में राम तुम्हीं उसके रखवारे। तुम्हें जपे जो सांझ सकारे बनते बिगड़े काम। रघुवर जय जय जय श्री राम।। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki

#जयश्रीराम #कविता  रघुवर जय जय जय श्री राम
हर नैया को पार लगाए राम तुम्हारा नाम
रघुवर जय जय जय श्री राम।।

जगत पिता तुम सबके स्वामी
हम  बालक मूरख  खलकामी
सबके सब गुण दोष तू जाने
तुम जगपालक अंतर्यामी
तेरा तुझको सौंप दूं अपने भले बुरे सब काम।
रघुवर जय जय जय श्री राम।।

रघुकुल भूषण दशरथ नंदन
कौशल्या सुत हे जग वंदन
आस निराश में प्राण फंसे हैं
दूर करो दु:ख हे दुख भंजन।
भटक रहा हूँ भव सागर में दो चरणों में धाम।
रघुवर जय जय जय श्री राम।।

करुणा सागर       पालनहारे
सब दुखिया के तुम ही सहारे
जिसका कोई नहीं जगत में
राम  तुम्हीं  उसके  रखवारे।
तुम्हें जपे जो सांझ सकारे बनते बिगड़े काम।
रघुवर जय जय जय श्री राम।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki
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