नितिन मिश्र (निर्मोही)

नितिन मिश्र (निर्मोही) Lives in Allahabad, Uttar Pradesh, India

इंजीनियर , स्वघोषित लेखक, कवि। प्रतापगढ़ / प्रयागराज घर - दिल्ली बसेरा

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प्रेम और आकर्षण में जितना अंतर है उतना ही अंतर प्रेम और मोह में है।

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उतना ही अंतर प्रेम और मोह में है।

Love is not a Policy its a "State of mind"

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its a "State of mind"

ये आग मज़हब, धर्म सब देखती है सूखे कुंठित दिल दिमाग मिलते ही चिंगारी बनकर जा मिलती है धधकती लपटों मे परिवर्तित होने को ये आग सबकुछ देख सकती है इसलिए वो देखती है धर्म, जाति, मज़हब फिर उसमे छुपी धार्मिक, वैचारिक कट्टरता को ये आग सुन लेती है मन में उबल रहे जेहादी नारों कों,उन्मादी जयघोषों को इस आग का मस्तिष्क भी होता है तभी तो हर बार वो नही भूलती लपेटे मे लेने से उस गरीब और अमीर को भी जो ना तो दंगाई होता है ना ही प्रदर्शनकारी वैसे तो ये आग बढ़ती रहती है मूढ़ जन रूपी हवाओं के रुख के साथ मगर नहीं जाती नहीं भटकती उन दरिया रूपी शीतल प्रबुद्ध जनों के आसपास शायद डरती है उनकी शीतलता कहीं इसे ठंडा न कर दे ये आग भेदभाव भी करती है वामपंथ, कम्युनिज्म, लिब्रलिस्म, सेक्युलिरिज़्म, हिंदुत्व, इस्लामिज़म के अलावा भी एक पंथ है "मानवपंथ" जिसे ये छूती तक नहीं या फिर शायद वो ही छूने नहीं देते वही "मानवपंथ" हर बार शायद सबकुछ राख होने से बचा लेता होगा इस आग मे जले हुए से कोई धुआँ नहीं उड़ता जो उड़ता है वो होता है एको अहं द्वितीयो नास्ति का खंडित, कट्टर विचार और उन विचारों की बलि चढ़ी इंसानियत, मरे हुए मन,जीवन भर का पश्चाताप और खून के वो आँसू जिनकी भरपाई करना शायद असम्भव हो जाता है मानवता के पूर्ण उदय तक शायद ये आग यूँ ही जलती रहेगी फैलती रहेगी कभी शाहरुख तो कभी गोपाल बनकर और जलाती रहेगी इंसानियत को ये "आग" ये "नफरत" की आग। "Nirmohi"

#Dwell_in_possibility #NitinNirmohiQuotes #विचार #delhiisburning  ये आग मज़हब, धर्म सब देखती है
सूखे कुंठित दिल दिमाग मिलते ही चिंगारी बनकर जा मिलती है 
धधकती लपटों मे परिवर्तित होने को

ये आग सबकुछ देख सकती है
इसलिए वो देखती है धर्म, जाति, मज़हब फिर उसमे छुपी धार्मिक, वैचारिक कट्टरता को

ये आग सुन लेती है
मन में उबल रहे जेहादी नारों कों,उन्मादी जयघोषों को 

इस आग का मस्तिष्क भी होता है
तभी तो हर बार वो नही भूलती लपेटे मे लेने से उस गरीब और अमीर को भी जो ना तो दंगाई होता है ना ही प्रदर्शनकारी

वैसे तो ये आग बढ़ती रहती है 
मूढ़ जन रूपी हवाओं के रुख के साथ
मगर नहीं जाती  नहीं भटकती उन दरिया रूपी शीतल प्रबुद्ध जनों के आसपास 
शायद डरती है उनकी शीतलता कहीं इसे ठंडा न कर दे

ये आग भेदभाव भी करती है
वामपंथ, कम्युनिज्म, लिब्रलिस्म, सेक्युलिरिज़्म, हिंदुत्व, इस्लामिज़म
के अलावा भी एक पंथ है "मानवपंथ" जिसे ये छूती तक नहीं
या फिर शायद वो ही छूने नहीं देते

वही "मानवपंथ" हर बार शायद सबकुछ राख होने से बचा लेता होगा

इस आग मे जले हुए से कोई धुआँ नहीं उड़ता
जो उड़ता है वो होता है एको अहं द्वितीयो नास्ति का खंडित, कट्टर विचार
और उन विचारों की बलि चढ़ी इंसानियत, मरे हुए मन,जीवन भर का पश्चाताप और खून के वो आँसू जिनकी भरपाई करना शायद असम्भव हो जाता है

मानवता के पूर्ण उदय तक 
शायद
ये आग यूँ ही जलती रहेगी फैलती रहेगी कभी शाहरुख तो कभी गोपाल बनकर और जलाती रहेगी इंसानियत को

ये "आग"

ये "नफरत" की आग।


"Nirmohi"

"हम भारत के लोग" है मूल यही यही मंत्र है है जीत यही यही सभ्यता यही स्वाभिमानी यंत्र है एक उजली पुस्तक न्याय की एक झंडा फहरे तेज सा ये सब मिश्रित कर जो चले गणतंत्र है! गणतंत्र है! गणतंत्र है!

#nitin_nirmohi #republic_day #jai_hind  "हम भारत के लोग" है मूल यही यही मंत्र है
है जीत यही यही सभ्यता यही स्वाभिमानी यंत्र है
एक उजली पुस्तक न्याय की एक झंडा फहरे तेज सा
ये सब मिश्रित कर जो चले
गणतंत्र है! गणतंत्र है! गणतंत्र है!

परमात्मा की कारीगरी तो देखो कितनी अजीब है हम सब को बना कर खुद गायब हो गया। आंखे बनाई देखने के लिये पर वो दिखता बंद आंखों से है।।

#नोजोटोहिंदी #हिन्दीविचार #ईश्वर #विचार  परमात्मा की कारीगरी तो देखो कितनी अजीब है
हम सब को बना कर खुद गायब हो गया। 
आंखे बनाई देखने के लिये
पर वो दिखता बंद आंखों से है।।

इरादा तुम्हारा था जाने का फिर तो कहो फिर से कैसे ठहर गए तुम ज़हालत की यूँ तो थी ऊँची दीवारें बताओ तो कैसे निकल गए तुम "गुनाह" नहीं हैं तुम्हारे ये माना तो क्यूँ कह रहे हो "सुधर" गए तुम मिलाई जो आँखें सनम आज खुद से कहो आईने से क्यूँ डर गए तुम मुझे था उठाने का वादा किया तो मुझे ही गिरा क्यूँ संवर गए तुम मुझे था हंसाने का वादा किया तो मुझे ही रुला क्यूँ मुकर गए तुम तुम ही जमीं होते तुम ही दीवारें मगर छोड़ दिल का महल गए तुम तुमने कहा था जो बदले वो "काफिर" कहो आज कैसे "बदल" गए तुम??

#NitinNirmohiQuotes #ghazalnitinnirmohi #शायरी #nojotoghazal  इरादा तुम्हारा था जाने का फिर तो
कहो फिर से कैसे ठहर गए तुम

ज़हालत की यूँ तो थी ऊँची दीवारें
बताओ तो कैसे निकल गए तुम

"गुनाह" नहीं हैं तुम्हारे ये माना
तो क्यूँ कह रहे हो "सुधर" गए तुम

मिलाई जो आँखें सनम आज खुद से
कहो आईने से क्यूँ डर गए तुम

मुझे था उठाने का वादा किया तो
मुझे ही गिरा क्यूँ संवर गए तुम

मुझे था हंसाने का वादा किया तो
मुझे ही रुला क्यूँ मुकर गए तुम

तुम ही जमीं होते तुम ही दीवारें
मगर छोड़ दिल का महल गए तुम

तुमने कहा था जो बदले वो "काफिर"
कहो आज कैसे "बदल" गए तुम??
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