Dr.Shiv Mishra

Dr.Shiv Mishra Lives in New Delhi, Delhi, India

Doctor...Poet...Reader..Photographer

https://youtu.be/WbZAyzLI4n0

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#mentalHealth #leftalone #poem  शीर्षक - भ्रांति
Title - Delusion © डॉ•शिव मिश्रा 'केदार'
 बेतुके सवाल

बंधन में भी आज़ाद होना सौभाग्य है।#nojotostory #story #poem #writer #poet #Dreams

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क्या बंधन-मुक्त होना ही, आज़ाद होना है? क्या शारीरिक स्वछंदता ही उन्मुक्त होने का पर्याय है? मानता हूँ, ये मेरे कुछ बेतुके से सवाल हैं, जिनका जवाब शायद तुम ही दे सकती हो। वैसे तो यक़ीन है, पर तुमसे जुड़ी हर बात मेरे लिए "शायद" है, बस इसलिए...शायद। तुम ही क्यों...तो सच मानो इन सवालों की उत्पत्ति का कारण तुम ही हो और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मैं हूँ। तुम्हारे जूड़े में सजे फूल, बगीचे में घुट रहे थे। और तुमसे जुड़कर उन्हें खुशबू बिखेरते देखा है मैंने। मेज पर पड़ी पायल भी तुम्हारे पैरों में बँधने से पहले कहाँ  चहक रही थी।  डिबिया में पड़े झुमके, कानों में सजने से पहले, मुरझाए से पड़े थे पर तुम्हारे कानों में पड़ते ही, मजाल है कोई उन्हें खिलखिलाने से रोक पाए।  और तो और खूँटी पर टँगी तुम्हारी साड़ी का आँचल, किसी जीवित शव की भाँति ज़मीन पर रगड़ खा रहा था। मानो उसकी बेड़ियों का वजन, उसके लहराने की आशा से कहीं ज्यादा हो । पर तुम्हारी कमर पर बँधते ही हवा से अठखेलियाँ करने लगा। ये सब प्रमाण ही तो है। ये सब तुम्हारे बंधन में भी आज़ाद हैं। तुम इन सबको आज़ाद कर के भी मेरी डायरी के पन्नों में क़ैद हो, कभी न आज़ाद होने के लिए। और मैं, तुमसे जुड़े बिना आज़ाद तो हूँ पर तुम्हारे ख़यालों में क़ैद हूँ।   ऐसे बेतुके सवालों के जवाब ढूँढता, -मैं

 क्या बंधन-मुक्त होना ही, आज़ाद होना है?

क्या शारीरिक स्वछंदता ही उन्मुक्त होने का पर्याय है?

मानता हूँ, ये मेरे कुछ बेतुके से सवाल हैं, जिनका जवाब शायद तुम ही दे सकती हो। वैसे तो यक़ीन है, पर तुमसे जुड़ी हर बात मेरे लिए "शायद" है, बस इसलिए...शायद।

तुम ही क्यों...तो सच मानो इन सवालों की उत्पत्ति का कारण तुम ही हो और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मैं हूँ।

तुम्हारे जूड़े में सजे फूल, बगीचे में घुट रहे थे। और तुमसे जुड़कर उन्हें खुशबू बिखेरते देखा है मैंने।

मेज पर पड़ी पायल भी तुम्हारे पैरों में बँधने से पहले कहाँ  चहक रही थी। 

डिबिया में पड़े झुमके, कानों में सजने से पहले, मुरझाए से पड़े थे पर तुम्हारे कानों में पड़ते ही, मजाल है कोई उन्हें खिलखिलाने से रोक पाए। 

और तो और खूँटी पर टँगी तुम्हारी साड़ी का आँचल, किसी जीवित शव की भाँति ज़मीन पर रगड़ खा रहा था। मानो उसकी बेड़ियों का वजन, उसके लहराने की आशा से कहीं ज्यादा हो । पर तुम्हारी कमर पर बँधते ही हवा से अठखेलियाँ करने लगा। ये सब प्रमाण ही तो है।

ये सब तुम्हारे बंधन में भी आज़ाद हैं। तुम इन सबको आज़ाद कर के भी मेरी डायरी के पन्नों में क़ैद हो, कभी न आज़ाद होने के लिए।

और मैं, तुमसे जुड़े बिना आज़ाद तो हूँ पर तुम्हारे ख़यालों में क़ैद हूँ।

 

ऐसे बेतुके सवालों के जवाब ढूँढता,

-मैं

क्या बंधन-मुक्त होना ही, आज़ाद होना है? क्या शारीरिक स्वछंदता ही उन्मुक्त होने का पर्याय है? मानता हूँ, ये मेरे कुछ बेतुके से सवाल हैं, जिनका जवाब शायद तुम ही दे सकती हो। वैसे तो यक़ीन है, पर तुमसे जुड़ी हर बात मेरे लिए "शायद" है, बस इसलिए...शायद। तुम ही क्यों...तो सच मानो इन सवालों की उत्पत्ति का कारण तुम ही हो और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मैं हूँ। तुम्हारे जूड़े में सजे फूल, बगीचे में घुट रहे थे। और तुमसे जुड़कर उन्हें खुशबू बिखेरते देखा है मैंने। मेज पर पड़ी पायल भी तुम्हारे पैरों में बँधने से पहले कहाँ  चहक रही थी।  डिबिया में पड़े झुमके, कानों में सजने से पहले, मुरझाए से पड़े थे पर तुम्हारे कानों में पड़ते ही, मजाल है कोई उन्हें खिलखिलाने से रोक पाए।  और तो और खूँटी पर टँगी तुम्हारी साड़ी का आँचल, किसी जीवित शव की भाँति ज़मीन पर रगड़ खा रहा था। मानो उसकी बेड़ियों का वजन, उसके लहराने की आशा से कहीं ज्यादा हो । पर तुम्हारी कमर पर बँधते ही हवा से अठखेलियाँ करने लगा। ये सब प्रमाण ही तो है। ये सब तुम्हारे बंधन में भी आज़ाद हैं। तुम इन सबको आज़ाद कर के भी मेरी डायरी के पन्नों में क़ैद हो, कभी न आज़ाद होने के लिए। और मैं, तुमसे जुड़े बिना आज़ाद तो हूँ पर तुम्हारे ख़यालों में क़ैद हूँ।   ऐसे बेतुके सवालों के जवाब ढूँढता, -मैं

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