Ravindra Shrivastava

Ravindra Shrivastava "Deepak" Lives in Patna, Bihar, India

क्या मैं लिखूं खुद के बारे में... एक खुली किताब हुँ मैं, जो भी चाहे पढ़ ले मुझको, लहरों में चलता, गतिशील ब्रह्मांड हुँ मैं, वक़्त दरिया का वो किनारा हुँ मैं, दिल से दूसरों का सहारा हुँ मैं, सुबह की किरणों की तरह कोमल हुँ मैं, कितनों नें परखा मुझकों, मानक के तराजू पे तौला मुझको, रग-रग में सिर्फ वफ़ा ही मिली उनको, शक था मेरी खुद्दारी पे जिनको, ऊपर से कठोर, अंदर से मोम हुँ मैं, बेशुमार खुशियों का होड़ हुँ मैं , ग़मज़दा न होने दूँ औरों को, वो खुशियों का अंबार हुँ मैं, चाह कर भी रुक्सत न होने पाए, हर चाहनेंवालें का रकीब हुँ मैं, चंचलता की पराकाष्ठा हुँ मैं, ईमानदारी की पुजारी हुँ मैं, छल-कपट के सख्त खिलाफ़ हुँ मैं, प्रेम और निष्ठा के साथ हुँ मैं, असहाय के लिए मदद हुँ मैं, बुजुर्गों के लिए अदब हुँ मैं, पथिक को छाया हुँ मैं, छाया के लिए वो तरुवर हुँ मैं, जैसी जिसकी व्यवहार हो मुझसे, तैसा ही द्विगुणित बन जाऊं उससे, क्या मैं लिखूं खुद के बारे में, एक खुली किताब हुँ मैं, जो भी चाहे पढ़ ले मुझको...

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गर कोशिश करूं तो कोई मिल ही जायेगा, मगर मेरी तरह तुझसे प्यार कौन कर पायेगा तेरी यादों का अजीम समंदर मुझे डुबायेगा, तेरे साथ बिताए हर पल बहुत याद आएगा जीस्त के जुनून के आगे तू भी शर्माएगा, मेरे पागलपन को कभी तू भी आजमाएगा वक़्त का दरिया है जो यादों को बहाएगा, ख़ुद में डुबोकर, तेरी निगार को भुलाएगा नाचीज़ समझनेवाले वक़्त तुम्हे समझायेगा, जब इस नाचीज़ का भी बख़्त समय आएगा

#Health  गर कोशिश करूं तो कोई मिल ही जायेगा,
मगर मेरी तरह तुझसे प्यार कौन कर पायेगा

तेरी यादों का अजीम समंदर मुझे डुबायेगा,
तेरे साथ बिताए हर पल बहुत याद आएगा

जीस्त के जुनून के आगे तू भी शर्माएगा,
मेरे पागलपन को कभी तू भी आजमाएगा

वक़्त का दरिया है जो यादों को बहाएगा,
ख़ुद में डुबोकर, तेरी निगार को भुलाएगा

नाचीज़ समझनेवाले वक़्त तुम्हे समझायेगा,
जब इस नाचीज़ का भी बख़्त समय आएगा

#Health

10 Love

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निभाते चले गए हम ज़िम्मेदारी, पर इससे क्या फर्क पड़ता है, यहां सभी खुद के लिए जीते है, कितनों को दूसरों से वास्ता नही, और कुछ गैरों के लिए जीते है, ख़ुदा नें सिर्फ इंसान बनाया था, मगर जमीं पर इंसानियत नही है, गरीब होना अभिशाप हो गया है, उन्हें कोई पूछनेवाला तक नही है, मर गया शरीर ऐसे ही पड़ा है, आँचल खिंचता अबोध खड़ा है, अनभिज्ञ है मृत्यु से वो बालक, उसे तो भूख की ज्वाला याद है, मालूम है उसे की ये मेरी माँ है, सोई है अभी पर उठ जाएगी, मेरी भूख को शमन करेगी, मगर उस शैशव को मालूम नही, इस कलुषित संसार को छोड़ चुकी है, अब नही सहने होंगे ताने किसी की, नही खाने होंगे ठोकरे दर-ब-दर, मगर उसकी मृत देह पूछती सवाल कई, मानवता से मांगती अधिकार कई, मानव जब दूसरे मानव के काम न आया, फिर वो मानव कहलाने के लायक नही, असहनीय पीड़ा में है मानवता आज, मगर उनके साहूकारों को फुरसत नही, दूसरों के दुःख पर कोई हर्षित होता, अपनें पर जब आये तो दुःखित होता, यही इंसानों की नियति बन गई है, दुःखित हूँ अब इंसानियत न रहा... - © रविन्द्र श्रीवास्तव "दीपक"

#ravindrashrivastavaquote #walkingalone #rail #died #Hum  निभाते चले गए हम ज़िम्मेदारी, 
पर इससे क्या फर्क पड़ता है,
यहां सभी खुद के लिए जीते है,
कितनों को दूसरों से वास्ता नही,
और कुछ गैरों के लिए जीते है,
ख़ुदा नें सिर्फ इंसान बनाया था,
मगर जमीं पर इंसानियत नही है,
गरीब होना अभिशाप हो गया है,
उन्हें कोई पूछनेवाला तक नही है,
मर गया शरीर ऐसे ही पड़ा है,
आँचल खिंचता अबोध खड़ा है,
अनभिज्ञ है मृत्यु से वो बालक,
उसे तो भूख की ज्वाला याद है,
मालूम है उसे की ये मेरी माँ है,
सोई है अभी पर उठ जाएगी,
मेरी भूख को शमन करेगी,
मगर उस शैशव को मालूम नही,
इस कलुषित संसार को छोड़ चुकी है,
अब नही सहने होंगे ताने किसी की,
नही खाने होंगे ठोकरे दर-ब-दर,
मगर उसकी मृत देह पूछती सवाल कई,
मानवता से मांगती अधिकार कई,
मानव जब दूसरे मानव के काम न आया,
फिर वो मानव कहलाने के लायक नही,
असहनीय पीड़ा में है मानवता आज,
मगर उनके साहूकारों को फुरसत नही,
दूसरों के दुःख पर कोई हर्षित होता,
अपनें पर जब आये तो दुःखित होता,
यही इंसानों की नियति बन गई है,
दुःखित हूँ अब इंसानियत न रहा...

- © रविन्द्र श्रीवास्तव "दीपक"

Alone चैन को जब आराम मिला, बेचैन हम हुए, बाबस्ता जिंदिगी से हुई, गुमसुम हम हुए, कमबख्त इस दिल का क्या करें, ये कही लगता ही नहीं, आसमां तुझसे पूछुं, कही ये मुहब्बत तो नहीं...! फासलें मिटे, नजदीकियों में इज़ाफ़ा है, जन्नत की हूर हो, कुदरत नें जिसे तराशा है, उसकी उन्हीं चंद सिमटी हुई यादों के साये में मशगूल हूँ, सितारे तुझसे पूछुं, कही ये मोहब्बत तो नहीं...! इल्तिज़ा बस यही है उस अक्स से, मुकम्मल हो दरख्वास्त मेरी इश्क़ के खातिर, बेपनाह हलचल होती है दिल के कोने में, ऐ चाँद ! बता कही ये मोहब्बत तो नहीं...! लाज़मी है की इश्क़ का होना, फितूर-ए-इश्क़ का फितरत में होना, टूटकर तुझमें खोना है, ये दिल कहता हैं, ऐ ख़ुदा ! अब तू ही बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...! ख्वाबों में चुपके से आना तेरा, ख़्वाइशों को मुझसे फरमाना तेरा, मुफ़लिसी को दरकिनार कर, आशना पूरा करूँ, ऐ कायनात ! बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...! दिल के काफी करीब हो तुम, नींद, चैन, मेरी आशिकी सब हो तुम, न जानें क्यूँ मनहूसियत सी लगती है तुम बिन, ऐ वादियों ! बता कहीं ये सच में मोहब्बत तो नही...! बेइंतहां लम्हें गुजारे तुम बिन, उन लम्हों नें बहुत रुलाया है, खुद को रोक न पाऊं, दीदार को तेरे, लाज़मी है कि शायद यही मुहब्बत है.7.. हाँ यही तो मोहब्बत है! - © रविन्द्र श्रीवास्तव "दीपक"

#ravindrashrivastavaquote #alone #ishq #Wo  Alone  चैन को जब आराम मिला, बेचैन हम हुए,
बाबस्ता जिंदिगी से हुई, गुमसुम हम हुए,
कमबख्त इस दिल का क्या करें, ये कही लगता ही नहीं,
आसमां तुझसे पूछुं, कही ये मुहब्बत तो नहीं...!

फासलें मिटे, नजदीकियों में इज़ाफ़ा है,
जन्नत की हूर हो, कुदरत नें जिसे तराशा है,
उसकी उन्हीं चंद सिमटी हुई यादों के साये में मशगूल हूँ,
सितारे तुझसे पूछुं, कही ये मोहब्बत तो नहीं...!

इल्तिज़ा बस यही है उस अक्स से,
मुकम्मल हो दरख्वास्त मेरी इश्क़ के खातिर,
बेपनाह हलचल होती है दिल के कोने में,
ऐ चाँद ! बता कही ये मोहब्बत तो नहीं...!

लाज़मी है की इश्क़ का होना,
फितूर-ए-इश्क़ का फितरत में होना,
टूटकर तुझमें खोना है, ये दिल कहता हैं,
ऐ ख़ुदा ! अब तू ही बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...!

ख्वाबों में चुपके से आना तेरा,
ख़्वाइशों को मुझसे फरमाना तेरा,
मुफ़लिसी को दरकिनार कर, आशना पूरा करूँ,
ऐ कायनात ! बता कहीं ये मोहब्बत तो नहीं...!

दिल के काफी करीब हो तुम,
नींद, चैन, मेरी आशिकी सब हो तुम,
न जानें क्यूँ मनहूसियत सी लगती है तुम बिन,
ऐ वादियों ! बता कहीं ये सच में मोहब्बत तो नही...!

बेइंतहां लम्हें गुजारे तुम बिन,
उन लम्हों नें बहुत रुलाया है,
खुद को रोक न पाऊं, दीदार को तेरे,
लाज़मी है कि शायद यही मुहब्बत है.7..
हाँ यही तो मोहब्बत है!

- © रविन्द्र श्रीवास्तव "दीपक"
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