महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना ।
धियो विश्वा वि राजति
- ऋग्वेद ॥१.३.१२॥
हे देवी सरस्वती, आप अपने विशाल सागर से हमें ज्ञान प्रदान कर रही हैं। कृपया इस ब्रह्मांड को अपनी अपार बुद्धि से सुशोभित करें।
वसन्तपञ्चमी-उत्सवस्य शुभाशया: ।
फैल चूका है अंधियार उजास फिर से चाहिए
हल्ला मचा रहे देशविरोधीयो का उपहास फिर से चाहिए
जो युवाओ के अंतः मन में जला दे देश भक्ति की मशाल
वो ही आजादी वाला सुभाष फिर से चाहिए.....
#जय_हिन्द
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