भीड़ बहुत है दुनिया में, कहीं! आँखो से ओझल ना हो जाऊं,
पकड़ कर चलना हाथ मेरा, कहीं! भीड़ में जुदा ना हो जाऊं,
भरोसा-यकिन-बनाए रखना, कहीं! अजनबी ना हो जाऊं,
पसंद हूँ मैं अपनों की, कहीं! भीड़ में नापसंद ना हो जाऊं,
होड़ लगी है यहाँ, अपनो से अपनों को जुदा करने की,
कुचलकर आगे वाले को, चढ़कर उसमें आगे बड़ने की,
धकेल कर सबको आगे जाना है, आखिरी ऐसा क्या पाना है,
हर चेहरा नया नया सा है यहां, क्या? कोई जाना-पहचाना है,
समझाऊं तो किस-किस को, कहीं! मैं नासमझ ना हो जाऊं,
अरे! कुचलना-धकेलना आता है मुझको भी,
ड़र है मैं इंसान हूँ, कहीं! जानवर ना हो जाऊं..।।
©Motivational writter
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